रांची(RANCHI): दस्तावेज में हेराफेरी कर सरकारी और निजी भूखंड की खरीद बिक्री मामले में गिरफ्तार रांची के पूर्व उपायुक्त आईएएस अधिकारी छवि रंजन का फंसना तय था. उन्होंने इतने सुराख छोड़ रखे थे कि वे बच नहीं सकते थे. इसलिए कहा जाता है कि अपराधी अपने अपराध का साक्ष छोड़ जाता है तभी वह कानून की जद में आता है. ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय ने जब सेना की जमीन की फर्जी खरीद बिक्री के मामले की जांच की तो बहुत कुछ सामने आ गया. सूत्रों के अनुसार प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों को पुख्ता साक्ष्य के साथ यह पता चला कि इस मामले में बड़ी डील हुई है. रांची से लेकर कोलकाता तक पूरा गिरोह काम करता है.
अंचल निरीक्षक ने भी दिया हेराफेरी का प्रमाण
13 अप्रैल को छवि रंजन समेत अंचल कार्यालय के कर्मी और जमीन दलालों के ठिकानों पर छापेमारी की गई थी. इस मामले में 7 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था. 7 में से 3 लोग ऐसे निकले जिन्होंने रांची के पूर्व उपायुक्त रवि रंजन को जेल जाने के रास्ते तैयार कर दिए. अंचल निरीक्षक ने सेना की जमीन के मामले में साफ तौर पर प्रमाण दे दिया कि तत्कालीन उपायुक्त छवि रंजन के ही दिशा निर्देश पर उन्होंने दस्तावेज तैयार किए. सूत्रों के अनुसार कोलकाता के रजिस्ट्री विभाग के अधिकारी त्रिदीप मिश्रा ने बड़ा काम किया. उन्होंने उन दस्तावेजों को सत्यापित कर एक तरह से बड़ा प्रमाण दे दिया कि किस प्रकार से सेना की 4.55 एकड़ जमीन बेची गई.
कैसे फसे छवि
रांची के पूर्व उपायुक्त यानी डीसी छवि रंजन को जब पहली बार ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया तो उनके सामने प्रश्नावली के अनुसार जवाब नहीं झूठ पा रहे थे. कहा जाता है कि छवि रंजन को इसका एहसास हो गया था कि वे फंसने वाले हैं. 4 मई को जब उन्हें दूसरी बार बुलाया गया तो एक तरह से तैयार थे कि वे एरेस्ट हो सकते हैं. बताया जा रहा है कि बड़गाईं अंचल के कर्मचारियों ने पुर्जों में लिखे छवि रंजन के कुछ साक्ष्य भी दिखाए जिनमें सेना की जमीन के संबंध में कच्चा निर्देश दिया गया था. जिसके आधार पर यह जमीन बेची गई. इस प्रकार छवि रंजन आरंभ से ही जमीन के कारोबार में रूचि लेते रहे कुछ ऊपरी दबाव की वजह से कुछ व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण उन्होंने इस तरह के काम किए और भूमि माफिया को संरक्षण दिया. प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों का मानना है कि जमीन से जुड़े इस गोरखधंधे में बड़ी मात्रा में मनी लांड्रिंग यानी धन शोधन हुए हैं.