टीएनपी डेस्क(TNP DESK): JPSC – आपने इसका नाम जरूर सुना होगा. झारखंड के रहने वाले हैं तब तो जरूर ही सुना होगा. हां, कारण अलग-अलग हो सकते हैं. पढ़ने वाले विद्यार्थी इसके सिलेबस और परीक्षा की तैयारी को लेकर जानते होंगे. युवा बड़े अफसर बनने की उम्मीद लेकर इसे जानते होंगे, तो वहीं बाकी लोग इसका नाम हमेशा विवादों में रहने के कारण जानते होंगे. JPSC के नाम विवादों में रहने का अनूठा रिकॉर्ड है. वैसे तो JPSC की स्थापना झारखंड राज्य के गठन के दो साल बाद 2002 में हुई थी. तब से लेकर इस JPSC ने रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बनाए हैं. ये रिकॉर्ड हैं बेहिसाब भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों का.
16 परीक्षाओं में चल रही है सीबीआई जांच
JPSC के नाम जो सबसे बड़ा रिकॉर्ड हैं कि इस संस्था के द्वारा ली गयी 16 परीक्षाओं में सीबीआई जांच चल रही है. एक और रिकॉर्ड ये है कि इसके चेयरमैन से लेकर सदस्यों तक को जेल जाना पड़ा है. JPSC द्वारा ली गयी परीक्षाओं में हुई गड़बड़ी और विवादों में लगभग पांच दर्जन से ज्यादा केस कोर्ट में चल रहे हैं. झारखंड हाई कोर्ट ने अबतक दर्जन से भी ज्यादा बार JPSC के खिलाफ सख्त टिप्पणियां की है. कई मुकदमे ऐसे हैं जिसमें अदालत की कार्यवाही के बीच JPSC ने खुद अपनी गलती भी मान ली.
JPSC क्या है?
JPSC का फूल फॉर्म है Jharkhand public service commission यानि कि झारखंड लोक सेवा आयोग. वैसे तो इस आयोग का नाम अधिकारियों जैसे BDO, SDO, कलेक्टर आदि की नियुक्ति करना है. इसके लिए आयोग परीक्षा के सिलेबस, फॉर्मैट, परीक्षा, क्वेशन पेपर तैयार करना, आंसर चेक करना, इंटरव्यू लेना और रिजल्ट जारी करने से लेकर नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया कराना आयोग का काम है. वैसे तो सिविल सर्विस की परीक्षा हर साल लिये जाने का प्रावधान है. मगर, JPSC का विवादों से इतना गहरा नाता रहा है कि बीते छह सालों में सिर्फ दो ही सिविल सर्विस परीक्षा आयोजित कर पाई. वो भी आखिरी जो सिविल सर्विस परीक्षा आयोजित की गयी वह अकेले ही करीब पांच सालों बाद आयोजित की गयी थी. हालांकि, इसके रिजल्ट में अभ्यर्थियों को ज्यादा देरी नहीं झेलनी पड़ी. मगर, विवादों से ये परीक्षा भी नहीं बच पाया. JPSC ने 20 सालों में 1292 पदों के लिए सिविल सर्विस की कुल सात परीक्षाएं ली है. पहली सिविल सेवा परीक्षा में 64, दूसरी में 172, तीसरी में 242, चौथी में 219, पांचवीं में 269 और छठी सिविल सेवा परीक्षा में 326 पदों पर नियुक्ति हुई. छह परीक्षाओं लेकर में 54 मामले कोर्ट में चल रहे हैं, जबकि सातवीं परीक्षा को लेकर भी चार-पांच याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है. हालांकि सातवीं परीक्षा जो कि 7वीं से 10वीं jpsc परीक्षा कही जाती है. उसमें 252 सीटों पर नियुक्ति हुई है.
लगातार बढ़ते रहे विवाद
JPSC की 7वीं से 10वीं की परीक्षा 2021 में ली गयी थी. इसका रिजल्ट 2022 में आया. यह अब तक का सबसे जल्द रिजल्ट जारी कर नियुक्ति कराने वाली JPSC की परीक्षा थी. मगर, इसकी प्री एग्ज़ाम से ही विवाद शुरू हो गया और रिजल्ट आते-आते तक तो विवादों के ढेर लग गए. रिजल्ट में कुछ ही सेंटर से परीक्षार्थी पास थे. और तो और इसके ज्यादातर उतीर्ण अभ्यर्थियों के रोल नंबर लगातार थे. इस वजह से कई विरोध प्रदर्शन हुए, कोर्ट में मुकदमे भी हुए. JPSC ने संशोधित रिजल्ट भी जारी किया. नियुक्तियां हो गयी, लेकिन केस अभी भी चल ही रहा है. इस परीक्षा को लेकर राजभवन की ओर से JPSC चेयरमैन को तलब भी किया गया.
वहीं इसके पहले हुई छठी सिविल परीक्षा की बात करें तो 2016 की सिविल सर्विस परीक्षा भी हर चरण में विवादों से गुजरी. इसके द्वारा जारी अंतिम रिजल्ट में गड़बड़ी का आरोप है. छठी सिविल सर्विस में प्री परीक्षा का रिजल्ट तीन बार संशोधित हुआ था. प्री एग्ज़ाम का रिजल्ट आने में करीब 360 दिन लगे थे. वहीं इंटरव्यू के बाद नियुक्ति करीब 5 सालों बाद हुई.
आंसर शीट की जांच के ही लोग बन गए अफसर
थोड़ा पीछे चलें तो JPSC ने पहली सिविल सर्विस परीक्षा 2003 में ली थी. 64 पदों के लिए हुई परीक्षा के जरिए नियुक्ति में भ्रष्टाचार के आरोप लगे. इस परीक्षा में ऐसे लोग अफसर बन गए जिनकी कॉपी यानि कि आंसर शीट तक की जांच नहीं हुई थी. इसे लेकर भारी विवाद हुआ. मामले को टूल पकड़ता देख उस समय के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने पूरे मामले की इन्क्वायरी विजिलेंस को सौंप दी. जांच हुई, गड़बड़ी सामने आई. इन गड़बड़ियों के आरोप में JPSC के तत्कालीन दिलीप प्रसाद, सचिव सहित इसके सभी सदस्यों को जेल जाना पड़ा. फिर कोर्ट ने इसकी जांच सीबीआई को सौंप दी. 2005 में सेकेंड सिविल सर्विस परीक्षा भी कुछ इस तरह का ही विवाद सामने आया. इस बार 172 नियुक्ति में से 165 लोगों की नियुक्ति विवादित रही. इस पर भी सीबीआई की जांच चल रही है. इसी तरह का हाल तीसरी, चौथी और पांचवी सिविल सेवा परीक्षा का भी रहा है.
कैसे सुधरेगी स्थिति
JPSC राज्य की सबसे बड़ी संस्थाओं में से एक है. 20 साल में 20 परीक्षाएं कराने की जगह अगर ये संस्था मात्र 7 परीक्षा कराए तो राज्य में बेरोजगारी की स्थिति क्या होगी, ये खुद ही समझ जा सकता है. JPSC में ऐसी गड़बड़ी के कारण सिर्फ नियुक्तियां ही विवादों में नहीं रहती. बल्कि आप सोच सकते हैं कि इन गड़बड़ी के कारण अगर किसी योग्य उम्मीदवार की जगह उससे कम योग्य उम्मीदवार को नियुक्ति मिलती है तो राज्य की स्थिति क्या होगी. JPSC जैसी बड़ी संस्था में ऐसी गड़बड़ी होती रहेगी, तो JSSC या इससे छोटी संस्थाओं की क्या ही बात करें. इन गड़बड़ियों पर ना प्रशासन सख्त है और ना ही सरकार. जब छात्र गड़बड़ी पकड़ते हैं और विरोध करना शुरू करते हैं, तब न्यायालय तो सहयोग करता है, मगर, सरकार और प्रशासन से छात्रों को कोई सहयोग नहीं मिल पाता. ऐसे में आयोग को तो खुद पर लगे आरोप से बचना होगा ही, साथ ही सरकार और प्रशासन को भी इस मामले में कठोर होना होगा, तभी राज्य का भविष्य सुरक्षित हो सकेगा.