रांची(RANCHI): झारखंड में स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल किसी से छुपा नहीं है. यहां के अस्पताल बदहाल है, चाहे राज्य के बड़े अस्पताल रिम्स की बात करें या कस्बे के PHC की सभी की स्थिति बेहाल है. अस्पताल के भवन बड़े-बड़े दिखेंगे लेकिन जब उसके अंदर जाएंगे तो अस्पताल के असलियत का अंदाजा हो जाएगा. राज्य में छह मेडिकल कॉलेज भी है, इसके अलावा एक एम्स की भी स्थापना की गई है. इन सभी के बावजूद यहां के गरीब परिवारों को इलाज के लिए भटकना पड़ता है. अस्पताल के बदहाली के पीछे यहां के नेताओं का भी बड़ा हाथ कह सकते है.
रिम्स क्यों है बदहाल
रिम्स में इलाज कराने राज्य के सभी कोने से मरीज पहुंचते है.मरीजों की संख्या हर दिन हजारों में रहती है. रिम्स पहुंचने वाले ज्यादातर मरीज गरीब परिवार से आते है.अस्पताल में पहुंचने के बाद घंटों मशक्कत करना पड़ता है तब जाकर उन्हे बेड नशीब होता है.बेड मिलने के बाद मरीजों को जांच के लिए भी अस्पताल का चक्कर काटना पड़ता है. जांच के लिए फिर नंबर लगाने में काफी देरी होती है. इसके पीछे का कारण यह है कि अस्पताल में मरीजों की संख्या ज्यादा है और उपकरण कम. रिम्स में डॉक्टर की भी कोई कमी नहीं है. लेकिन रिम्स के डॉक्टर ही रिम्स छोड़ बाहर निजी क्लिनिक में समय देते है. इससे रिम्स में भर्ती मरीजों का इलाज सही से नहीं हो पाता है.
रिम्स में उपलब्ध है आधुनिक सुविधाएं
झारखंड का सबसे बड़ा अस्पताल का दर्जा ऐसे ही रिम्स को नहीं मिला है. रिम्स में जो जांच की मशीन उपलब्ध है यह राज्य के किसी निजी अस्पताल में भी नहीं है. जो उपकरण दिल्ली AIMS में है वह सभी रांची के रिम्स में उपलब्ध है. चाहे ICU की बात करें या फिर ट्रामा सेंटर की यहां लगी मशीने पूरी तरह हाई टेक है. अगर रिम्स प्रशासन अस्पताल को दुरुस्त करने की कोशिश करेगा तो आराम से मरीजों को निजी अस्पताल जैसी सुविधाएं मिल जाएगी. सब कुछ होने के बावजूद भी रिम्स बदहाल है.
छह मेडिकल कॉलेज होने के बावजूद भी रिम्स में भीड़
झारखंड में छः मेडिकल कॉलेज है इसके बावजूद भी मरीज सभी जगहों से रिम्स ही पहुंचते है. अगर सभी मेडिकल कॉलेज में भी इलाज की बेहतर व्यवस्था की जाए तो रिम्स में भीड़ कम हो जाएगी. सभी मेडिकल कॉलेज को सिर्फ नाम का कॉलेज कह सकते है. क्योंकि इन कॉलेजों में भी सारी सुविधाएं है लेकिन उसे इस्तेमाल नहीं किया जाता. सभी मेडिकल कॉलेज में प्रतिनियुक्त चिकित्सक भी निजी क्लिनिक पर ध्यान ज्यादा देते है. अस्पताल में पहुंचे मरीजों को सीधे रिम्स रेफ़र कर दिया जाता है. जबकि जो सुविधा रिम्स में है वह सारी सुविधाएं अन्य कॉलेजों में भी उपलब्ध है. अगर स्वास्थ्य विभाग निजी प्रैक्टिस पर रोक लगा दे तो शायद अस्पतालों की हालत में सुधार हो जाएगा.
नेता और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी नहीं चाहते सुधरे अस्पताल के हाल
अबतक आपने पढ़ा की झारखंड में छह मेडिकल कॉलेज है और एक AIMS है. इन सभी अस्पतालों में उपकरण की भी कोई कमी नहीं है. फिर भी अस्पताल बदहाल है. इसके पीछे जिम्मेवार कौन है? यह सवाल का जवाब भी हमने तलाशने की कोशिस किया.अब बताते है कि आखिर राज्य के अस्पताल बदहाल क्यों है. अस्पताल के बदहाली के पीछे कोई और नहीं खुद जनता के चुने हुए नेता है. इसमें अधिकारियों के भी हाथ से इनकार नहीं कर सकते. क्योंकि जब एक निजी अस्पताल खुलने वाला होता है तो उसका उद्घाटन मंत्री, विधायक, सांसद और अधिकारी करते है.और फीता काटने के बाद बयान देते है कि यह अस्पताल मरीजों को बेहतर सुविधा देगा. यहां सभी तरह के इलाज हो सकेंगे. इससे साफ साबित होता है कि नेताओं का भी कुछ ना कुछ जरूर निजी अस्पताल से लगाव होगा. कई अस्पतालों में नेताओं के पैसे लगे होते है. अगर नेता सरकारी अस्पताल को सुधार देंगे तो फिर निजी अस्पताल में मरीज कैसे पहुंचेंगे.
कस्बे और जिले के अस्पताल भी बदहाल
राज्य के सभी प्रखंड और जिलों के अस्पताल भी बदहाल है. हर दिन अस्पताल की बदहाली की भेट कोई ना कोई मरीज चढ़ जाता है. प्रखंड के अस्पतालों में भी प्रतिनियुक्त चिकित्सक निजी क्लिनिक में मशगूल रहते है. अगर मरीज ज्यादा गंभीर स्थिति में अस्पताल पहुंचे तो वहां इलाज की व्यवस्था भी नहीं है. मरीज को सीधे जिले के अस्पताल रेफ़र कर दिया जाता है. ऐसे में मरीज जिला अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देता है. इसकी बदहाली सुधारने में भी कोई नेता रुचि नहीं रखते है