रांची(RANCHI): जल जंगल और जमीन झारखंड राज्य की लड़ाई का केन्द्र बिन्दु था, इसके नारे के इर्द-गिर्द पूरी लड़ाई लड़ी जाती रही. पेड़ पौधे, पहाड़ और हरियाली ही झारखंड की पहचान है, राज्य में कुल भौगोलिक भूमि के 23721.14 वर्ग किलोमीटर (29.76 फीसदी) में जंगल है. लेकिन कहीं ना कहीं हम विकास के पथ पर इसे पीछे छोड़ते हुए जा रहे हैं, जो आने वाले दिनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.
जंगल हुए कम
यह एक दुखद सच्चाई है कि जल जंगल और जमीन के नाम पर गठित झारखंड में आज विकास के नाम पर जगंलों को काटा जा रहा है, पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर खनन माफियाओं की नजर है, नदियां नालों में तब्दील हो रही है. ISFR (Indian State of Forest Report) की रिपोर्ट को माने तो पिछले दो सालों में झारखंड के घने जंगलों में करीबन 4 वर्ग किलोमीटर की कमी आयी है. यही कारण है कि झारखंड में हाल के दिनों में जंगली जानवरों का आतंक बढ़ा है. जानवर जंगल छोड़ शहर की ओर भाग रहे हैं.
जंगल छोड़ जानवर शहर की ओर बढ़ रहे
झारखंड में आए दिन जंगली हाथी और अन्य जानवर लोगों की जान ले रहे हैं. हाल की बात करें तो पलामू, गढ़वा और लातेहार में तेंदुए ने चार लोगों की जान ले ली. इसके अलावा हाथी ने कई को मार डाला. इसके अलावा रांची, खुंटी,लोहरदगा, गुमला में भी जंगली हाथी ने उत्पात मचाया है. हर दिन किसी ना किसी क्षेत्र में जंगली जानवर के उत्पात की सूचना आती रहती है. जब जानवर उत्पात मचाता है तो वन विभाग भी हरकत में आता है और जानवर को जंगल की ओर भेजने की कोशिश में लग जाता है. लेकिन एक सवाल सभी के मन में उठता है आखिर जंगल छोड़ जानवर शहर की ओर क्यों बढ़ रहे हैं.
जानवरों को शहर की ओर आने के पीछे जिम्मेदार हम और आप
जंगली जानवरों को शहर की ओर आने के पीछे जिम्मेदार हम और आप हैं. क्योंकि जो जंगल आज से 50 वर्ष पहले था अब उतना घना बचा नहीं. हम विकास के नाम पर विनाश की ओर बढ़ रहे हैं. जंगल जानवरों का घर माना जाता है. लेकिन जब किसी का घर ही उजाड़ देंगे तो वह कहां जाएगा. किसी का घर उजाड़ कर हम सुखी कैसे रह सकते हैं. जंगल कटने से पर्यावरण बर्बाद हो रहा है. लोग नई नई बीमारी के शिकार हो रहे हैं. हमें शुद्ध हवा नहीं मिल रही है. समय पर वर्षा नहीं हो पा रही है. विकास के नाम पर जितनी पक्की सड़क और आलीशान घर बना लें लेकिन सांस लेने के लिए हमें जंगल जरूरी है.
जंगल,पहाड़ बचाने के लिए अदालत प्रयास करेगी
झारखंड में खत्म होते जंगल और पहाड़ के मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था कि झारखंड का गठन पहाड़,जंगल और पर्यावरण को बचाने के लिए हुआ था. सरकार के काम से ऐसा लगता है कि राज्य की अस्मिता को बचाने के लिए गंभीर नहीं है. लेकिन जंगल,पहाड़ बचाने के लिए अदालत प्रयास करेगी. कोर्ट ने सरकार से पूछा कि जब जंगल,पहाड़ नहीं बचेगा तो क्या रहेगा. हमेशा सरकार की ओर से एक शपथ पत्र दिया जाता है कि कहीं अवैध खनन नहीं किया जा रहा है. अदालत सब समझती है.