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प्रधानमंत्री, गृह मंत्री से लेकर बड़े-बड़े नेताओं के बाद भी क्यों हार गया NDA, जानिए वजह

प्रधानमंत्री, गृह मंत्री से लेकर बड़े-बड़े नेताओं के बाद भी क्यों हार गया NDA, जानिए वजह

टीएनपी डेस्क: झारखंड विधानसभा चुनाव के परिणाम आ गए हैं और अब झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार बनने जा रही है. इसके साथ ही झारखंड में लगातार दूसरी बार बीजेपी के हाथ से सत्ता निकल गई. इस चुनाव में झारखंड में बीजेपी का काफी खराब प्रदर्शन रहा. जहां लोकसभा चुनाव में 14 सीटों में एनडीए गठबंधन ने 9 सीटें जीती थी जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा के इंडिया गठबंधन ने 5 सीटें जीती थी. लेकिन इसके बावजूद भी बीजेपी विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायी. झारखंड में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री से लेकर बड़े-बड़े नेताओं ने चुनावी रैली किया. साथ ही कई मुद्दों को भी उठाया लेकिन इसके बावजूद भी भाजपा के सारे मुद्दे झारखंड में काम नहीं आए. जानते हैं कुछ बड़ी वजह है जिसकी वजह से बीजेपी झारखंड में सरकार बनाए में असफल रही.

1.⁠ ⁠झारखंड के असल मुद्दों को नहीं समझ पायी बीजेपी

⁠मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विधानसभा चुनाव जीतने के बाद एक मीडिया चैनल में इंटरव्यू देते हुए कहा कि उन्होंने उन सभी चीजों पर ध्यान दिया जहां भाजपा गलत कर रही थी और इस बात पर जोर दिया कि वह क्या कहे सही कर सकते हैं. तो कहीं ना कहीं यह चीज सही होती हुई दिख रही है. क्योंकि झारखंड में भाजपा असल मुद्दों को नहीं समझ पायी और यह एक बहुत बड़ी वजह रही भाजपा के हारने की।

2. बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दों में उलझी रही भाजपा 

लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद जब हेमंत विश्व शर्मा को विधानसभा चुनाव के लिए सह प्रभारी बनाया गया तो उन्होंने झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठाया. बाद में झारखंड बीजेपी के कुछ नेता भी अपने चुनावी सभा में इसी मुद्दे को दोहराते रहे . अमित शाह नरेंद्र मोदी ने भी जो चुनावी सभाएं झारखंड में की. उन्होंने भी बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर काफी कुछ बातें की. अमित शाह ने अपने चुनावी रैली में कहा था कि एक बार झारखंड में अगर बीजेपी की सरकार बन गई तो मैं वादा करता हूं कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को चुन चुन कर झारखंड से बाहर भेजने का काम करेंगे. वहीं नरेंद्र मोदी ने भी अपने एक चुनावी सभा में कहा कि झारखंड में बांग्लादेशी का मुद्दा बहुत बड़ा है. बांग्लादेशी संथाल परगना और कोल्हान क्षेत्र के लिए बड़ा खतरा है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि झामुमो अपने राजनीतिक फायदे के लिए आदिवासी वोट का इस्तेमाल कर रही है और ऐसे लोगों का साथ दे रही है जो झारखंड के जमीन और जंगल को लूटने में लगे हैं. बीजेपी ने झारखंड में बेटी, रोटी और माटी का भी नारा दिया लेकिन इन तमाम चीजों के बावजूद झारखंड के आदिवासियों पर इसका कोई असर नहीं हुआ. 

3.⁠ ⁠गोगो दीदी फेल महिलाओं ने नहीं दिखाई दिलचस्पी

झारखंड में बीजेपी ने हेमंत सोरेन की मैया योजना का काट निकालने के लिए गोगो दीदी योजना का प्रलोभन महिलाओं को दिया. मैया सम्मान योजना के तहत जहां हेमंत सरकार महिलाओं को ₹1000 प्रति माह दे रहे थे वहीं भाजपा ने गोगो दीदी योजना के तहत ₹2100 देने का वादा किया. लेकिन फिर हेमंत सरकार ने महिलाओं से वादा किया कि अगर उनकी सरकार बन जाएगी तो वह मिलने वाली राशि को प्रति माह ₹2500 कर देंगे. ऐसे में झारखंड में जो योजनाएं ऑलरेडी चल रही थी महिलाओं ने उस पर ही भरोसा जताया और भाजपा की गोगो दीदी योजना यहां पर फेल हो गई. महिलाओं ने गोगो दीदी योजना में दिलचस्पी नहीं दिखाई जिसका बहुत बड़ा फायदा झामुमो को मिला. 

4.⁠ ⁠चम्पई को पार्टी में लाना बड़ा भूल, गलत फीडबैक और सलाह ने डुबोया NDA का नैया 

चंपई सोरेन को पार्टी में लाना भी भाजपा के लिए एक बड़ी भूल साबित हुई. 2019 में हेमंत सोरेन ने जब अपनी सरकार बनाई तो उसके बाद आदिवासियों ने हेमंत पर भरोसा जताया. आदिवासियों को लगा कि हेमंत सोरेन ही  उनके आदिवासी नेता हैं. हालांकि भाजपा ने भी काफी कोशिश की लेकिन आदिवासी झामुमो के साथ ही दिखे. जनवरी में जब हेमंत सोरेन मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल गए तो उसके बाद चंपई सोरेन को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि चंपई ज्यादा दिन सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठ सके. हेमंत के जेल से बाहर आते ही चंपई सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा. चंपई सोरेन झारखंड के कोल्हान क्षेत्र से आने वाले संथाल आदिवासी नेता है और उनकी गिनती भी राज के शीर्ष आदिवासी नेताओं में की जाती है. जब चंपई ने झामूमो से नाराज होकर भाजपा का दामन थामा तो बीजेपी को लगा कि इससे उसे काफी फायदा हो सकता है. चंपई के आने के बाद भाजपा को फायदा तो हुआ लेकिन उतना फायदा नहीं हुआ जितना बीजेपी ने सोचा था. चंपई अपनी सीट सरायकेला पर तो जीत गए लेकिन बाकी आदिवासी सीटों पर उनका जादू नहीं चल पाया. कोल्हान में झारखंड के तीन ज़िले और 14 विधानसभा सीटें आती हैं. 2019 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का यहाँ से पत्ता साफ़ हो गया था और अब उन्हें चंपई सोरेन से बड़ी उम्मीदें थीं. चंपई इस बार भी अपनी सीट सरायकेला से जीत चुके हैं. वहीं जुगसलाई सीट से रघुवर दस की बहू पूर्णिमा साहू और जमशेदपुर पश्चिम से जेडीयू के सरयू रॉय चुनाव जीते. यानी एनडीए को तीन सीट और 11 सीटें 'इंडिया' गठबंधन के खाते में चली गई.

5. हिमांता की ज्यादा सक्रियता फायदे से ज्यादा नुकसान वाला झारखंड में बाहरी पर भरोसे की कमी 

हहिमांता विश्व शर्मा की सक्रियता झारखंड विधानसभा चुनाव में काफी ज़्यादा रही. उन्हें झारखंड विधानसभा चुनाव का सह प्रभारी बनाया गया था. जहां एक तरफ इंडिया ब्लॉक मजबूती से हेमंत सोरेन का समर्थन कर रहा था वहीं दूसरी तरफ बीजेपी की स्टेट यूनिट नहीं बल्कि केंद्रीय नेतृत्व ने इस चुनाव को अपने हाथ में लिया था. ऐसे में लोग बाहरी लोगों पर भरोसा नहीं कर पाए. जिसकी वजह से बीजेपी को यहाँ नुक़सान हुआ.

6. भ्रष्टाचार का मुद्दा भी नहीं आया काम 

हेमंत सोरेन जब जेल गए थे तो भाजपा ने झारखंड में भ्रष्टाचार का मुद्दा खूब उठाया. उन्होंने लोगों तक यह बात पहुंचाने की कोशिश की कि  किस तरह हेमंत सोरेन झारखंड को लूटने में लगे हैं. लेकिन हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद जब उनकी पत्नी कल्पना सोरेन राजनीति में सक्रिय हुई तो उन्होंने जनता के बीच जाकर खूब प्रचार प्रसार किया. कल्पना सोरेन ने सभी विधानसभा क्षेत्र में जाकर रैलियां की और उनकी रैली में काफी भीड़ भी जुड़ती थी. बीजेपी ने कल्पना के राजनीति में आने को परिवारवाद का मुद्दा बना दिया और भ्रष्टाचार और परिवारवाद के मुद्दे में ही अटकी रह गई. लेकिन यह मुद्दा झारखंड में काम नहीं आया. कल्पना सोरेन गांडेय विधानसभा से चुनाव जीत गई और पार्टी की एक बड़ी नेता के रूप में उभरी और उन्होंने जो कैंपेन चलाया उसका फायदा झामुमो को मिला. बीजेपी ने परिवारवाद और भ्रष्टाचार का तो मुद्दा उठाया लेकिन वह कल्पना की काट नहीं ढूंढ पाए.

Published at:24 Nov 2024 02:04 PM (IST)
Tags:Jharkhand news Jharkhand assembly election Jharkhand assembly election results Hemant soren Jharkhand bjp Jharkhand politics Political news Hemant soren newsKalpna sorenPm modiBjp loose jharkhand assembly election
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