टीएनपी डेस्क: क्या आपको भी ख्याली दुनिया में जीने की आदत है? अगर हां, तो अभी ही सावधान हो जाइए. क्योंकि, दिन भर अपने ख्यालों में खोये रहना आम बात नहीं है, आप डे ड्रीमिंग डिसऑर्डर (Day Dreaming Disorder) के शिकार हो सकते हैं. अब आप सोच रहे होंगे की एंग्जायटी, डिप्रेशन तो सुना था लेकिन अब ये डे ड्रीमिंग डिसऑर्डर क्या बला है. दरअसल, डे ड्रीमिंग डिसऑर्डर कुछ और नहीं बल्कि दिन भर ख्यालों में खोये रहना है. आइए जानते हैं कि क्या है डे ड्रीमिंग डिसऑर्डर और किसे हो सकता है ये डिसॉर्डर. साथ ही कैसे कर सकते हैं इससे बचाव.
क्या है डे ड्रीमिंग डिसऑर्डर
अक्सर, आपने ये नोटिस किया होगा की आप अपने ख्यालों में घंटों घंटों तक खोए रहते हैं. कोई भी काम करते हुए आप अपने ख्यालों में इतने डूब जाते हैं कि आपको समय का पता ही नहीं लगता. इसे ही डे ड्रीमिंग डिसऑर्डर कहा जाता है. ऐसे में आप सोच रहे होंगे कि सोचना कब से डिसऑर्डर हो गया. लेकिन आपकी जानकारी के लिए आपको बता दें कि, एक दो मिनट के लिए सोचना आम बात है. लेकिन उन्हीं ख्यालों में घंटों खो जाना और अपनी ख्याली सोच को ही सच मान लेना ये डिसऑर्डर है. दरअसल, लोग अपने ख्यालों में इतने खो जाते हैं की उसे ही सच मानने लगते हैं. अपने ख्याली दुनिया में ही वे ऐसी दुनिया बना लेते हैं, जो वो असल जिंदगी में नहीं कर सकते. ऐसे में वे अपनी इस झूठी ख्याली सोच में ही खुश रहते हैं और धीरे धीरे अपनी असल जिंदगी से दूर होते जाते हैं. ऐसे लोग ही डे ड्रीमिंग डिसऑर्डर का शिकार होते हैं.
डे ड्रीमिंग से इन बीमारियों का होता है खतरा
ज्यादातर डे ड्रीमिंग डिसऑर्डर का शिकार वैसे लोग होते हैं, जो ज्यादा स्ट्रेस में होते हैं. ऐसे में कब वे स्ट्रेस और परेशानी से बचने के लिए अपनी ख्याली दुनिया को ही सच मान लेते हैं इस बात का पता तो उन्हें भी नहीं होता. घंटों घंटों तक अपनी ख्याली दुनिया में खो कर वे अपने स्ट्रेस से तो बच जाते हैं लेकिन ये आदत उनके मानसिक स्वास्थ्य को बर्बाद कर देती है. डे ड्रीमिंग डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति अक्सर बेचैनी, एंग्जायटी, डिप्रेशन और ओसीडी यानी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर जैसी बीमारियों का शिकार हो जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 20 करोड़ इस डिसॉर्डर का शिकार हैं.
क्या है इसका इलाज
इस डिसऑर्डर से बचने या इसे ठीक करने के लिए पीड़ित काउंसलिंग का सहारा ले सकते हैं. साइकेट्रिस्ट बिहेवियर और टॉक थेरेपी की मदद से पीड़ित को इस डिसऑर्डर से बाहर निकलने व इसे कंट्रोल करना सिखाते हैं. जरूरत पड़ने पर साइकेट्रिस्ट दवा भी देते हैं.