TNP DESK- बिहार के सीतामढ़ी ज़िले से आई यह खबर जितनी चौंकाने वाली है, उतनी ही सोचने पर मजबूर भी करती है. एक शांत, ग्रामीण और साधारण-सी दिखने वाली इस जगह के आँचल में अचानक ऐसी त्रासदी कैसे पनप गई—यह सवाल हर किसी को विचलित कर रहा है.
जिला अस्पताल की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार अब तक लगभग 7,400 HIV पॉज़िटिव मरीज दर्ज किए जा चुके हैं. इन आंकड़ों ने स्वास्थ्य विभाग की चिंताओं को कई गुना बढ़ा दिया है. लेकिन सबसे दर्दनाक पहलू है इनमें 400 से अधिक मासूम बच्चे भी शामिल हैं, जिन्हें यह संक्रमण उनके माता–पिता से मिला है. सोचिए, जिनके हाथों में खिलौने होने चाहिए थे, वे उम्र से पहले ही दवाईयों पर निर्भर होने को मजबूर हैं.
कैसे बढ़ रही है यह चुनौती?
सीतामढ़ी जैसे क्षेत्रों में जागरूकता की कमी, परीक्षण से जुड़े डर और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच ऐसे बड़े कारण हैं, जिनके चलते HIV संक्रमण समय रहते पता नहीं चल पाता. लोग अक्सर सामाजिक शर्म या भ्रांतियों के कारण अपने लक्षण छुपा लेते हैं, जिसका फायदा संक्रमण को तेजी से फैलने में मिलता है.
बच्चों पर संकट की मार
सबसे कड़वी सच्चाई यही है कि इन मासूम बच्चों की कोई गलती नहीं, फिर भी वे इस आजीवन संक्रमण के साथ दुनिया में कदम रखते हैं. गर्भावस्था, प्रसव या स्तनपान के दौरान HIV संक्रमित माता से बच्चे तक संक्रमण पहुंच सकता है और सीतामढ़ी के आंकड़े इस समस्या की भयावहता को स्पष्ट दिखाते हैं.
आगे की राह, क्या किया जा सकता है?
इस बढ़ते संकट को रोकने के लिए सिर्फ अस्पतालों या प्रशासन की कोशिशें काफी नहीं होंगी. ज़रूरत है जागरूकता बढ़ाने की, ताकि लोग बिना डर और शर्म के परीक्षण करा सकें.
सुरक्षित व्यवहार और संक्रमण के फैलने के तरीकों की सही जानकारी की.
माँ–बच्चे संक्रमण रोकथाम कार्यक्रमों को मजबूत करने की.
सबसे ज़रूरी समाज की मानसिकता बदलने की, ताकि HIV मरीजों के साथ भेदभाव की बजाय सहानुभूति और समर्थन दिया जा सके.
सीतामढ़ी की कहानी हम सबके लिए एक चेतावनी है. यह सिर्फ एक जिले की समस्या नहीं, बल्कि उस सोच का परिणाम है जहाँ जानकारी से ज़्यादा डर और कलंक को जगह दी जाती है. अगर आज प्रयास न किए गए तो आने वाले वर्षों में इसके नतीजे और भी गंभीर हो सकते हैं.
