टीएनपी डेस्क(TNP DESK) बिहार में अपराधियों के निशाने पर पत्रकार. आखिर ऐसा क्यों ,जबकि राज्य में सुशासन का दावा किया जाता रहा है. 18 अगस्त 2023 को अररिया में पत्रकार विमल कुमार यादव की हत्या की घटना कोई पहली घटना नहीं है. इसके पहले भी पत्रकारों के कत्ल किए जाते रहे हैं.
देखिए आँकड़े
अगर आंकड़े पर गौर करें तो अगस्त 2021 में पूर्वी चंपारण में पत्रकार मनीष सिंह की हत्या कर दी गई थी. नवंबर 21 में मधुबनी में पत्रकार अविनाश झा का मर्डर कर दिया गया था. मई 2022 में बेगूसराय में पत्रकार सुभाष महतो की हत्या कर दी गई थी. अगस्त 22 में जमुई में पत्रकार की हत्या की गई थी. फिर सितंबर 22 में सुपौल के पत्रकार महाशंकर पाठक की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी. इसके पहले अगर नजर दौड़ाएं तो 2016 में बिहार के सिवान में राजदेव रंजन की हत्या कर दी गई थी. इस घटना पर काफी हंगामा मचा लेकिन घटनाएं रुकी नहीं. यह हत्या उस समय की गई थी,जब वह बाइक से कहीं जा रहे थे. हत्या करने का आरोप बाहुबली रहे शहाबुद्दीन के लोगों पर लगा था. राजदेव रंजन हिंदुस्तान अखबार के लिए काम करते थे .
आखिर क्यों बिहार में लगातार पत्रकारों को टारगेट किया जाता है
क्या यह आंकड़े किसी को परेशान नहीं कर सकता है. सवाल नहीं कर सकते कि आखिर क्यों बिहार में लगातार पत्रकारों को टारगेट किया जाता रहा है. उनकी सुरक्षा के क्या इंतजाम किए गए है.18 अगस्त 2023 को अररिया के पत्रकार विमल कुमार यादव को तो घर से बाहर बुलाकर गोली मार दी गई. इतना ही नहीं 2 साल पहले उनके बड़े भाई की भी अपराधियों ने हत्या कर दी थी. उस हत्याकांड के विमल मुख्य गवाह थे. जो भी हो लेकिन विमल कुमार यादव हत्याकांड ने बिहार सरकार पर कलंक का टीका लगा दिया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस घटना को लेकर सामने आना पड़ा. वैसे पुलिस के दावे के मुताबिक हत्याकांड के आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है.
सवाल बड़ा है कि आखिर पत्रकारों को टारगेट क्यों किया जाता है. क्या बिहार में अपराधी इतने बेलगाम हो गए हैं कि उन्हें शासन, प्रशासन का कोई डर नहीं है. जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दावा करते रहे हैं कि बिहार में सुशासन की सरकार चल रही है. अपराध का ग्राफ नीचे की ओर है तो आखिर क्यों पत्रकारों के मर्डर का ग्राफ ऊपर की ओर जा रहा है.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो