मधुबनी (MADHUBANI) : आपने कई प्रकार के मेले देखे होंगे. और मेरे शब्द से एक ही दृश्य सामने आया होगा . एक भरा बजार, चारों और सजा दुकान , अलग-अलग झूले, पकवान के दुकान. मगर मधुबनी का ये मेला एक आम मेले से बिल्कुल अलग है. यहाँ कोई झूले का मेला नहीं बल्कि भूतों का मेला लगता है. आपने इस तरह के मेले ना देखे होंगे और ना ही सुने होंगे. रोंगटे खड़ा कर देने वाला यह भूत मेला मधुबनी जिला मुख्यलय से चालीस किलोमीटर की दुर झंझारपुर अनुमंडल के ताजपुर अलपुरा गाँव के पीर बाबा मखदूम शाह की मजार दरगाह पर मनाया जाता है.
अलग-अलग भूत का नजारा
यह मेला प्रतिवर्ष बकरीद से पूर्व साल में एक दिन मनाया जाता है! यहाँ हजारो लाखों लोग पहुंचते है जो सिर्फ भुत भगवाने के लिए आते है. यहाँ भूत भी तरह तरह का आता है कोई रोने वाला भूत है, तो कोई हँसने वाला भूत है, तो कोई नाचने वाला भूत , तो कोई मौन भूत. उन भूतों को यहाँ मौजूद मौलवी चुटकियों में भगा देते है. सारे भूतो को मौलवी चुटकी मे वश में कर लेता है.
मनोकामना होती है पूरी
पीर बाबा मखदूम शाह अपने जमाने के प्रसिद्ध और ख्याति प्राप्त फकीर थे ऐसी मान्यता है जो भी व्यक्ति श्रद्धा के साथ यहां जिस मनोकामना से पहुंचते हैं. पीर बाबा की कृपा से वह खाली हाथ वापस नहीं लौटता. पीर बाबा उसकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. भूत प्रेत बाधा निसंतान लोग यहां बड़ी उत्साह के साथ आते हैं. मजार के सरपरस्त महबूब रजा कमाली ने बताया पीर बाबा मखदूम शाह की मजार काफी प्रसिद्ध है. करीब 700 वर्षों से यह मेला यहां लगता आ रहा है ऐसी मान्यता है जो भी भक्त श्रद्धालु यहां आते हैं पीर बाबा मखदूम शाह उसकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं.
बकरे और कबूतर की बलि
यहां हर धर्म को मानने वाले लोग बड़ी ही आस्था के साथ आते है. बगल के तालाब में स्नान किया जाता है. उसके बाद पीर बाबा की दरगाह पर माथा टेक आ जाता है. शाम ढलने के बाद स्वता शरीर में प्रभावित भूत प्रेत सारी बाधाएं दूर हो जाती है जो भी भक्त इस मनकामना से यहां बलि के रूप में बकरा मुर्गा कबूतर देते हैं. उसे प्रसाद के रूप में यही बना कर खाया जाता है. यहाँ देश के कई राज्यो से लोग भी भूत भगवाने आते है. लोगो को ऐसी मान्यता है कि नि:संतान लोग संतान की चाह को लेकर यहाँ पहुँचते है और मन्नत पूरा होने पर कबूतर मुर्गा खस्सी का कुर्वानी देता है.