पटना(PATNA)- महिला आरक्षण पर एक और बड़ा हमला बोलते हुए राजद महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष रितु जायसवाल ने इसे लड्डू दिखाकर थाली छिनना बताया है, उन्होंने कहा है कि भाजपा ने महिला आरक्षण के नाम पर एक जुमला फेंका है, यह कैसा आरक्षण है, जिसके बारे में कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि यह कब लागू होगा, यह 2029 में लागू होगा कि 2035 में इसकी जानकारी आज किसी के पास नहीं है, पत्ता नहीं कब जनगणना होगी और उसके बाद परिसिमन की रिपोर्ट आयेगी तब जाकर महिलाओं को आरक्षण देने की कवायद शुरु होगी, और जुमलेबाजी का स्तर यह है कि अगले एक दशक तक महिलाएं खाली हाथ महिला आरक्षण के आने की खुशी में ताली बजाती रहेगी.
आज की तिथि से लागू हो महिला आरक्षण
रितू जायसवाल ने कहा कि यदि सरकार की नियत महिलाओं को आरक्षण प्रदान करने की होती तो इसे आज की तिथि से लागू किया जाता, ना कि इसके एक दशक आगे के लिए छोड़ दिया जाता. साफ है महिला आरक्षण आरक्षण नहीं पीएम मोदी का एक और जुमला है, लेकिन इस जुमलेबाजी में भी ओबीसी महिलाओं का ख्याल नहीं रखा गया, आखिर भाजपा को ओबीसी महिलाओं से क्या दिक्कत थी, वह ओबीसी समुदाय की महिलाओं के लिए संसद के दरवाजे को बंद करना कोई चाहती है, कहने को तो पीएम मोदी अपने को ओबीसी का बेटा बताते हैं, लेकिन बात जब हक देने की आती है, तो उनका हाथ कांपने लगता है, महिला आरक्षण को जिस स्वरुप में लागू किया गया है, वह पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों की महिलाओं का हकमारी के सिवा कुछ नहीं है, यह आरक्षण पिछड़ी जातियों की महिलाओं का संसद पहुंचने के सपने पर ताला लगाने के समान है.
जोर पकड़ रही है पिछड़ी जाति की महिलाओं के लिए कोटा के अन्दर कोटा की मांग
ध्यान रहे कि जबसे संसद का स्पेशल सेशन बुलाकर महिला आरक्षण बिल को स्वीकृति प्रदान की गयी है, राजद, जदयू कांग्रेस, सपा सहित सारे विपक्षी दल इसे पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों की महिलाओं के साथ हकमारी करार दे रहे हैं, उनका दावा है कि आज कोई भी दल महिलाओं को आरक्षण देने का विरोधी नहीं है, लेकिन सवाल वही पुराना है कि क्या हम महिला आरक्षण के नाम पर संसद के दरवाजे सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगों के लिए खोल रहे हैं, क्या हम ऐसा कर अति पिछड़ी और पिछड़ी जाति की महिलाओं के लिए संसद के दरवाजे को बंद नहीं कर रहे हैं. क्या वर्तमान आरक्षण से भगवतीया देवी और मुन्नी देवी जैसी वंचित समुदाय की महिलाओं का संसद की चौखट तक पहुंचना संभव है, साफ है कि यह पिछड़ी जातियों की महिलाओं के सपनों पर ताला लगाने की साजिश है.