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महिला आरक्षण: उत्तर से दक्षिण तक तेज हुई कोटा के अन्दर कोटा की मांग, सत्ताधारी गठबंधन में भी दिखने लगा दरार

महिला आरक्षण: उत्तर से दक्षिण तक तेज हुई कोटा के अन्दर कोटा की मांग, सत्ताधारी गठबंधन में भी दिखने लगा दरार

टीएनपी डेस्क (TNP DESK) महिला आरक्षण राजनीति का वह फसाना है जो हर बार हकीकत में तब्दील होने के पहले दफन हो जाता है, कभी एनडीए तो कभी कांग्रेस की ओर से इसे लागू करने का हसीन सपना तो जरुर दिखलाया जाता है, लेकिन हर बार एक ही सवाल पर आकर यह रुक जाता है कि इस आरक्षण में दलित आदिवासी और पिछड़ी जातियों की भागीदारी कितनी होगी, क्या महिला आरक्षण के सीटों को सामान्य जाति की महिलाओं के लिए खुला छोड़ दिया जायेगा, क्या महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के नाम पर दलित आदिवासी और पिछड़े समुदाय की हकमारी की जायेगी. क्या यह महिलाओं को भागीदारी देने से ज्यादा पिछड़ी दलित जातियों के राजनीतिक वर्चस्व को तोड़ने की साजिश है.

जब शरद यादव ने परकटी महिलाओं का दिया था हवाला

ध्यान रहे कि कभी महिला आरक्षण बिल का विरोध करते हुए शरद यादव जैसे समाजवादी नेता ने भी यही सवाल खड़ा किया था और यह कहते हुए तंज भी कसा था कि महिला आरक्षण के इस स्वरुप से  संसद परकटी महिलाओं से भर जायेगा, हालांकि उनका विरोध महिला आरक्षण को लेकर नहीं था, उनकी मांग सिर्फ इस बिल के अन्दर दलित पिछड़ी और आदिवासी समाज के आने वाली महिलाओं के लिए कोटा के अन्दर कोटा बनाने की थी.

और आज जब मोदी सरकार इस बिल को पारित करने की दिशा में आगे बढ़ती नजर आ रही है, एक बार फिर से यही सवाल राजनीति के केन्द्र में खड़ा हो गया है, उतर से दक्षिण तक इसके विरोध की सुनाई देने लगी है, हालांकि अब भी विरोध महिला आरक्षण को लेकर नहीं है, सवाल वही पुराना है, इस बिल में दलित आदिवासी और पिछड़ी जातियों का क्या होगा.

सत्ता पक्ष में मतभेद

लेकिन पहली बार विरोध की आवाज सत्ता पक्ष से ही निकलती आ रही है, उमा भारती और अनुप्रिया पटेल ने इस बिल का समर्थन के साथ ही दलित आदिवासी और पिछड़ों के सवाल को खड़ा कर एक बार फिर राजनीति के केन्द्र में खड़ा कर दिया है.

भाजपा के गले की हड्डी बन सकती है महिला आरक्षण बिल

ठीक यही स्डैंट जदयू, राजद, सपा, बसपा, डीएमके के साथ ही दूसरी दलित पिछड़ी जातियों की राजनीति करने वाले दलों की ओर से आया है. और यही इसका पेंच फंस सकता है, जिस महिला आरक्षण बिल को भाजपा अपना तुरुप का पत्ता समझ रही है, वही उसके गले की हड्डी भी बन सकती है, क्योंकि जैसे ही भाजपा इसे अपनी सफलता के तौर भी पेश करेगी, दलित पिछड़ी और आदिवासी महिलाओं के सवाल को उठा विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ हमला तेज कर देगा, विपक्षी दलों की रणनीति दलित पिछड़ी और आदिवासी महिलाओं के सवाल को खड़ा कर मोदी सरकार को दलित पिछड़ा विरोधी साबित करने की होगी. और यह स्थिति भाजपा के लिए राजनीतिक घाटे का सौदा हो सकता है.    

Published at:20 Sep 2023 02:26 PM (IST)
Tags:Demand for quota within quota intensified from North to SouthWomen's Reservationcongres sp bsp Rjd jdu Dmk jmm quota within quota
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