पटना (PATNA) कभी सीएम नीतीश को सुशासन का चेहरा बताने वाली भाजपा जदयू में अब एक बाहुबली को अपने पाले में करने की होड़ मची है. दोनों ही दलों की हसरत आनन्द मोहन को साध कर बिहार के राजपूत मतदाताओं को अपने पाले में लाने की है. राजपूत मतदाताओं को लुभाने की इस होड़ में इस बात को बेहद खामोशी से भूला दिया गया कि आनन्द मोहन किसी स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में जेल में नहीं गये थें, और ना ही वे कोई स्वतंत्रता सेनानी है, जिसकी खिदमतगारी के लिए पलक पावड़े बिछाये जा रहे हैं.
दलित आईएएस जी. कृष्णैया की हत्या मामले में सजायाफ्ता है आनन्द मोहन
आनन्द मोहन के द्वारा एक युवा-होनहार दलित आईएएस की हत्या की गयी थी. यह कोई आरोप नहीं है, न्यायालय का फैसला है. और उसी न्यायालय का फैसला है, उसी संविधान के तहत दी गयी सजा है, जिसकी कसमें खा खाकर सीएम नीतीश के द्वारा भाजपा पर हमला बोला जाता है, भाजपा को संविधान का दुश्मन बताया जाता है, संविधान पर खतरा बताया जाता है.
सवाल तो भाजपा से भी है, यूपी में किसी डॉन की हत्या पर तो भाजपा के द्वारा खूब जश्न मनाया जाता है? लेकिन राजनीति की दुर्दशा और दोहरेपन की खूबसूरती देखनी हो तो आइये बिहार, और देखिये कैसे वही भाजपा यहां एक डॉन के स्वागत में हर आरजू विनती करने को तैयार बैठी है.
जदयू भाजपा दोनों को ही बहन मायावती की चेतावनी नागवार गुजरी
यही कारण है कि आनन्द मोहन के सवाल पर दोनों ही दलों को बहन मायावती की चेतावनी बेहद नागवार गुजरी है. भाजपा की राजनीति अपनी जगह, लेकिन उस जदयू के द्वारा भी बहन मायावती को भाजपा का बी टीम बताया जा रहा है, जिसके नेता नीतीश कुमार पूरे देश में घूम घूम कर विपक्षी पार्टियों को एकजूट करने का दावा कर रहे हैं. क्या इसी रास्ते विपक्षी पार्टियों को एकजूट किया जायेगा. क्या किसी भी विपक्षी दल के द्वारा एक सवाल खड़ा करते ही उसे भाजपा का बी टीम बतलाकर विपक्ष की एकजूटता कायम की जायेगी?
राजनीतिक जीवन के सबसे दुर्दिन दौर से गुजरती बहन मायावती पर आज भी है 15 फीसदी दलितों का विश्वास
सुविधापरस्त राजनीति के इस दौर में एक-एक वोट के लिए खाक छानते सुशासन बाबू और उनकी पार्टी यह भूल रही है कि अपने राजनीतिक जीवन के सबसे दुर्दिन दौर से गुजरती बहन मायावती के पास आज भी किसी डॉन से ज्यादा वोट है, आज भी उनकी सामाजिक अपील है, जिस यूपी को साधने के लिए नीतीश कुमार अखिलेश यादव से मुलाकात कर रहे हैं, उसी यूपी में आज भी बसपा का करीबन 15 फीसदी मतों पर एकाधिकार है. निश्चित रुप से बसपा का प्रभाव दलितों के बीच है, और आज भी बहन मायावती उन दलितों की भावनाओं को प्रतिबिम्बित करती है. आज भी वह किसी अतीक और किसी आनन्द से ज्यादा प्रभावशाली हैं और यूपी ही क्यों सोशल मीडिया के इस दौर में बिहार के दलित भी बहन मायावती से अनजान नहीं है.
आईएएस जी. कृष्णैया की हत्या को बनाया जा सकता है राजनीतिक मुद्दा
यदि बहन मायावती के द्वारा इसे राजनीतिक मुद्दा बना दिया जाता है, आनन्द मोहन की रिहाई को दलित आईएएस जी. कृष्णैया से जोड़कर प्रचारित-प्रसारित किया जाता है, तब क्या यूपी की राजनीति को साधने चले नीतीश कुमार की राजनीतिक नैया 2024 के चुनाव से पहले ही डूबने के कगार पर खड़ी नहीं हो जायेगी? खबर तो यह भी है कि प्रधानमंत्री की इच्छा पाले सीएम नीतीश की मंशा यूपी से लोकसभा का चुनाव लड़ने की है, शायद वह फूलपुर से चुनावी अखाड़े में उतरें. निश्चित रुप से आनन्द मोहन का यह भूत उन्हे फूलपुर तक पीछा करता नजर आयेगा, उनसे आईएएस जी. कृष्णैया की हत्या पर सवाल पूछे जायेंगे, उस हत्यारे को बचाने में उनकी भूमिका पर सवाल खड़े किये जायेंगे.
भाजपा के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं, दांव चला तो बिहार में भी बढ़ सकता है जनाधार
निश्चित रुप से इस खेल में भाजपा को कुछ भी खोना नहीं है, बिहार में महागठबंधन की राजनीति का कोई तोड़ फिलहाल उसके पास नहीं है, लेकिन यदि मायावती इस रिहाई को दलितों की अस्मिता से जोड़ने में सफल हो जाती है, तो बाजी पलटे या नहीं लेकिन कम से कम भाजपा का हाथ तो सूखा नहीं रहने वाला है.