पटना(PATNA): नीतीश कुमार के नेतृत्व में कई महीनों से जारी विपक्षी एकता की मुहिम को एक बड़ा झटका लगा है. पटना में आयोजित होने वाली यह बैठक तीसरी बार टाल दी गयी है, बताया जा रहा है कि कई विपक्षी दलों की ओर से उसके शीर्ष नेतृत्व के बजाय किसी प्रतिनिधि को भेजे जाने की बात कही जा रही थी. साथ ही कांग्रेस का भी इस बैठक के प्रति रवैया काफी सर्द था, कांग्रेस की ओर से भी इस बैठक में सलमान खुर्शीद को भेजे जाने की बात कही जा रही थी. जबकि सीएम नीतीश की सोच इससे अलग हटकर सभी दलों के प्रमुख चेहरों को एक साथ शामिल करवाने की थी, ताकि सभी फैसले एक ही बैठक में कर लिये जायं. जिसके बाद वह पूरे तामझाम के साथ देश के दौरे पर निकल पड़ें.
क्या ममता और अरबिंद केजरीवाल के समर्थन ने फंसाया पेंच
बहु प्रतिक्षित इस बैठक के स्थगित होने के साथ ही सियासी अटकलों का दौर भी शुरु हो चुका है. जानकारों का मानना है कि जिस प्रकार से बेहद जल्दबाजी में ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने इस बैठक को अपना समर्थन दिया, उसके कांग्रेस के कान खड़े हो गयें, वह विपक्षी एकता की इस मुहिम को अपनी दुरगामी राजनीति का रोड़ा मानने लगी. कांग्रेस को यह लगने लगा कि आज नहीं तो कल पच्छिम बंगाल और दिल्ली में उसकी लड़ाई ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल के साथ ही होनी है. ममता के हाथों पच्छिम बंगाल और अरविंद केजरीवाल के हाथों दिल्ली और पंजाब गंवाने की पीड़ा आज भी कांग्रेस को साल रही है.
कमजोर कांग्रेस सबकी पसंद
जानकारों का यह भी मानना है कि ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों की कोशिश एक कमजोर कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की है, यही कोशिश कुछ दूसरे दलों की भी है. जबकि कांग्रेस की कोशिश अभी किसी सियासी फैसले पर जाने के बजाय छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलांगना और मध्यप्रदेश के चुनावी नतीजों का इंतजार करना चाहती है, वह इन राज्यों के चुनावी परिणामों के आधार पर 2024 के बेहद अंत समय में विपक्षी एकता पर अपना फैसला लेना चाहती है, ताकि यदि इन राज्यों का चुनावी परिणाम उसके आकलन के अनुरुप ही उसके खाते में जाय तो वह एक बेहतर स्थिति में इन दलों के साथ सियासी मोलभाव कर सके.
कांग्रेस की सामंती सोच विपक्षी एकता की राह में सबसे बड़ा रोड़ा
साफ है कि ममता बनर्जी हो या अरविंद केजरीवाल या फिर खुद कांग्रेस सबों की अपनी-अपनी रणनीति है, लेकिन एक बात साफ है कि कांग्रेस अपने सारे जमीन खोने के बावजदू भी अब तक उस सोच से बाहर नहीं निकल पायी है कि कांग्रेस की एक अखिल भारतीय पार्टी है, और इन क्षेत्रीय दलों का उसके साथ रहना उनकी सियासी मजबूरी है, कांग्रेस की यही सामंती सोच और चिंतन विपक्षी एकता की इस मुहिम का बड़ा रोड़ा है, अब देखना होगा कि कांग्रेस इस सोच से बाहर निकलती है या अपने सियासी हरकतों से एक बार फिर से इन सभी दलों को एनडीए के खेमें में जाने को मजबूर करती है.