LS POLL 2024-कांग्रेस की दूसरी सूची के साथ ही पूरे झारखंड में एक नया सियासी कोहराम खड़ा होता दिखने लगा है. अल्पसंख्यक समाज की ओर से हर जगह विरोध और बगावत की खबर है. टिकट वितरण में उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कांग्रेस से जुड़े अल्पसंख्यक नेताओं को घेरा जा रहा है. लेकिन इस सब के बीच चुनावी संग्राम भी मंद-मंद गति से ही आगे बढ़ता दिखने लगा है. इसी में एक सीट है खूंटी लोकसभा का सीट. जहां भाजपा की ओर से एक बार फिर से जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा जीत का ताल ठोक रहे हैं तो वहीं इस अर्जुन रथ पर लगाम लगाने का जिम्मा एक बार फिर से कालीचरण मुंडा के कंधों पर है. इस प्रकार खूंटी के संग्राम में दोनों ही चेहरे पुराने हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों ही भिड़ंत हो चुकी है, और तब एक बेहद दिलचस्प मुकाबले में 1445 कालीचरण मंडा सियासी हार का सामना करना पड़ा था.
क्या इन पांच वर्षों में अर्जुन मुंडा ने खूंटी में अपनी स्थिति को मजबूत बनाया
लेकिन क्या इस सियासी समर में एक बार फिर से अर्जुन मुंडा का परचम फहराने वाला है या इन पांच वर्षों में कालीचरण मुंडा ने अपनी जमीनी ताकत में विस्तार करते हुए अर्जुन रथ पर विराम लगाने का सियासी कुब्बत प्राप्त कर लिया है. इस सवाल को इस अंदाज में भी पूछा जा सकता है कि क्या अर्जुन मुंडा ने इन पांच वर्षों में खूंटी के अखाड़े में इतना झोंका है कि 2019 में जो मुकाबला काफी दिलचस्प मोड़ पर खड़ा हो गया था, और वह हार के कगार तक पहुंच गये थें. इस बार वह उसे पार पाने की स्थिति में है. यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस आदिवासी बहुल सीट से महज 1445 वोटों से जीत के बावजूद भाजपा ने उन्हे जनजातीय मंत्रालय के साथ ही कृषि विभाग का भारी भरकम दायित्व भी सौंपा गया. तो इन भारी भरकम मंत्रालयों से खूंटी जैसे बेहद अविकसित इलाके में विकास की योजनाओं को सरजमीन पर उतारने की कोशिश की गयी है. जिन योजनाओं के बूते इस बेहद कमजोर जीत को बड़ी जीत में तब्दील किया जा सके.
स्थानीय जानकारों का मानना है कि इस फ्रंट पर अर्जुन मुंडा कुछ पिछड़ते नजर आते हैं, क्योंकि पिछले पांच वर्षों में खूंटी में किसी बड़ी योजना को सरजमीन पर उतारने की कोशिश नहीं की गयी, खास कर आदिवासी समाज की आकांक्षाओं को सामने रख कोई खूंटी में कोई स्पेसिफिक योजना सामने नहीं आयी. दावा तो यह भी किया जाता है कि इन पांच वर्षों में अर्जुन मुंडा का खूंटी में कोई सक्रियता भी नहीं देखी गयी, हालांकि बीच बीच में पीएम मोदी को रैलियां जरुर हुई, और उन रैलियों में अर्जुन मुंडा एक बड़े चेहरे के रूप में सामने आये, लेकिन जनसंवाद की स्थिति नहीं बनी.
कालीचरण की चुनौतियां
लेकिन दूसरी ओर कालीचरण मुंडा के बारे में कई आरोप है, पहला आरोप तो भाई भतीजावाद का ही है. यहां ध्यान रहे कि कालीचरण मुंडा भाजपा नेता नीलकंठ मुंडा के भाई है. नीलकंठ मुंडा रघुवर सरकार में मंत्री भी थें, फिलहाल खूंटी सुरक्षित सीट से भाजपा के टिकट पर विधायक हैं. हालांकि दोनों अलग-अलग पार्टियों में हैं. लेकिन दावा किया जाता है कि वर्ष 2019 के मुकाबले में भी नीलकंठ मुंडा अर्जुन मुंडा की जीत के लिए खास सक्रिय नजर नहीं आये थें. जानकारों का दावा है कि इस बार भी यही स्थिति बनती नजर आ रही है. इधर खूंटी में एक वर्ग ऐसा भी है जिसका मानना है कि खूंटी को इस परिवारवाद से उपर उठने की जरुरत है.
अभी साफ नहीं है तस्वीर
हालांकि अभी वह स्थिति नहीं बनी है, जिसमें यह कहा जाय कि कौन बढ़त की ओर बढ़ता दिख रहा है, लेकिन खूंटी में इस बात की चर्चा जरुर है कि झारखंड की सियासत में अर्जुन मुंडा अभी चूके हुए तीर नहीं है, और यदि परिस्थितियां बनी तो एक बार सीएम की कुर्सी भी उनके हिस्से आ सकती है. इस हालत में अर्जुन मुंडा की जीत से भविष्य में खूंटी के विकास का रास्ता खुल सकता है. अब देखना होगा कि जैसै जैसे यह संग्राम आगे बढ़ता है, यह मुकाबला कौन का करवट लेता दिखता है.