रांची(RANCHI): सीएम हेमंत के द्वारा भाजपा को भेड़ियों का झुंड बताने के बाद झारखंड की सियासत में आरोप-प्रत्यारोपों का नया दौर शुरु हो चुका है. जहां सीएम हेमंत भेडियों का झुंड का हवाला देते हुए इस बात का दावा करे रहें कि एक आदिवासी मुख्यमंत्री इन भेड़ियों के झुंड के सामने अकेले खड़ा होकर उनका मुकाबला कर रहा हैं. उनके घात प्रतिघात का सामना कर रहा है, सियासी तिकड़मों का पर्दाभाश कर रहा है. और अपने जीवन का एक-एक क्षण आदिवासी-मूलवासियों के हितों की हिफाजत में न्योछावर कर रहा है.
इस तरह की शब्दावलियों से परहेज करें हेमंत
वहीं भाजपा सीएम हेमंत के इस बयान को उनके सियासी हताशा की परिचायक बता रही है. हेमंत सोरेन के बयान के बाद सियासी मोर्चा खोलते हुए प्रदेश भाजपा प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा ने कहा है कि एक मुख्यमंत्री को इस तरह की शब्दावलियों से परहेज करना चाहिए, वह सीएम हैं, विपक्ष को निशाने पर लेने को स्वतंत्र हैं, यह उनका सियासी हक है, लेकिन एक सियासी पार्टी के कार्यकर्ताओं की तुलना भेड़ियों से करना, कहीं से भी शोभा नहीं देता, यह बयान पूरी तरह से उनकी अपरिपक्वता और सियासी हताशा का परिचायक है.
भाजपा जब भी उनके भ्रष्टाचार को सामने लाती है, पूरा झामुमो अनाप शनाप बयान पर उतारु हो जाता है, लेकिन आज झारखंड के हालत किसी से छूपे नहीं हैं. कदम कदम पर भ्रष्टाचार के कीड़े कुलबुला रहे हैं. झारखंड में ऐसा कौन सा कार्यालय हैं, जहां कोई भी काम बगैर चढ़ावा चढ़ाये होता है, और यह चढ़ावा कौन चढ़ा रहा है, क्या भ्रष्टाचार के ये कीड़े आदिवासी, मूलवासियों और दलितों के जीवन में जहर नहीं घोल रहे हैं, क्या इस भ्रष्टाचार से उनके जीवन में हताशा नहीं पसर रहा है. उनका जीवन दुभर नहीं हो रहा है. शासन व्यवस्था के प्रति उनका भरोसा नहीं टूट रहा है.
हर सवाल को निजी हमला मानते हैं हेमंत
लेकिन यहां तो हालत ही दूसरी है, जब सीएम हेमंत से यह सवाल दागा जाता कि ग्रामीण इलाके में स्वास्थ्य की व्यवस्था चरमरा रही है, अंतिम आशा के साथ जब अपने बीमार परिजनों को खटिया पर टांग कर लोग अस्पताल पहुंचते हैं, तो यह देख कर उनकी आत्मा सिहर उठती है कि यहां तो कोई डॉक्टर ही नहीं है.
लेकिन सीएम हैं की जैसे ही यह सवाल सुनते हैं, अपने आप को आदिवासी का बेटा बताने लगते हैं. आदिवासी गैर आदिवासी की दीवार खड़ी करने लगते हैं, लेकिन वह भूल जाते है कि यहां सवाल आदिवासी गैर आदिवासी का नहीं है, सवाल मूलभूत सुविधाओं को बहाल करने का है, भ्रष्टाचार के उस कीटाणू को समाप्त करने का है, जिसकी जद में आकर आदिवासी, दलितों के साथ ही झारखंड के सामान्य लोगों की हिम्मत टूट रही है.