Ranchi-झारखंड के सियासी गलियारे में बड़कागांव विधायक अम्बा प्रसाद और झरिया विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह की नाराजगी के दावे किये जा रहे हैं. दावा किया जा रहा है कि 2024 के महजंग के ठीक पहले कांग्रेस के ये दोनों विधायक पंजा को गच्चा देकर कमल की सवारी कर सकते हैं. हालांकि इन दावों में कितनी सच्चाई है, इसका कोई ठोस आधार किसी के पास नहीं है. लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसकी चर्चा जरुर हो चुकी है. हालांकि जानकारों का दावा है कि इन विधायकों का अगला कदम बहुत कुछ राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और तेलांगना के चुनावी नतीजों से तय होगा, यदि इन राज्यों में कांग्रेस की वापसी होती है, तो यह माना जायेगा कि देश का मिजाज बदल रहा है और इसके साथ ही कांग्रेस अपने संकट से बाहर निकल रहा है, उस हालत में कांग्रेस छोड़ कर कमल की सवारी एक मुश्किल भरा फैसला होगा.
पार्टी कार्यक्रमों से दूरी का रहस्य
लेकिन इतना तय है कि इन दोनों विधायकों के द्वारा लगातार पार्टी कार्यक्रमों से दूरी बना ली गयी है, पूर्णिमा नीरज सिंह तो राजधानी रांची में आयोजित मैत्री सम्मेलन से लेकर धनबाद में आयोजित उस लोकसभा समन्वय समिति की बैठक से भी दूर रही. यह वही बैठक थी, जहां मंत्री बन्ना गुप्ता को पार्टी कार्यक्रताओं के विरोध का सामना करना पड़ा था. यह बात बन्ना गुप्ता को इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने लोकसभा समन्वय समिति के साथ ही जिला प्रभारी मंत्री के पद से भी त्यागपत्र देने का एलान कर दिया. हालांकि पूर्णिमा नीरज सिंह की नाराजगी की कोई ठोस वजह सामने नहीं आयी है, लेकिन अम्बा प्रसाद की चाहत सामने आने लगी है.
अपने पिता योगेन्द्र साव के लिए बैंटिंग कर रही है अम्बा
खबर है कि अम्बा पार्टी पर 2024 के लोकसभा चुनाव में हजारीबाग संसदीय सीट से अपने पिता योगेन्द्र साव को उम्मीदवार बनाने का दवाब बना रही है. अम्बा का दावा कि हजारीबाग का सामाजिक समीकरण को देखते हुए योगेन्द्र साव वहां से सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हो सकते हैं. और यदि कांग्रेस उनकी इस मांग को मान लेती है तो 1989 के बाद हजारीबाग से पहली बार कांग्रेस को जीत का स्वाद चखने का मौका मिल सकता है. क्योंकि कांग्रेस 2019 में गोपाल प्रसाद साहू, 2014 और 2009 में सौरभ नारायण सिंह को मैदान में उतार कर कांग्रेस इन दोनों की सियासी ताकत को देख चुकी है, इस हालत में एक बार फिर से उसी पीटे प्यादे पर दांव लगाने से कोई लाभ नहीं होने वाला. लेकिन अन्दरखाने खबर है कि कांग्रेस अभी अम्बा की इस मांग को पूरा करने को तैयार नहीं है और यही अम्बा की नाराजगी की वजह और पार्टी कार्यक्रमों से दूरी का राज है.
बड़कागांव की राजनीति से शुन्य से शिखर तक पहुंचे हैं योगेन्द्र साव
ध्यान रहे कि हजारीबाग संसदीय सीट में बरही, हजारीबाग, मांडू, रामगढ़ और बरकागांव विधान सभा का क्षेत्र आता है. और यही बरकागांव योगेन्द्र साव की कर्मभूमि और जन्मभूमि रही है. और 2009 से 2014 के बीच वह यहां से विधायक रह चुके हैं. हालांकि पूर्व कृषि मंत्री योगेन्द्र साव की प्रमुख पहचान एनटीपीसी आन्दोलन के लेकर बनी, जब उन्होंने किसानों गोलबंद कर एनटीपीसी को जमीन की कीमत को नये सिरे से तय करना पड़ा और किसानों को तीन लाख प्रति एकड़ के बदले 15 लाख प्रति एकड़ का भुगतान करना पड़ा, और यही से बरकागांव विधान सभा में उनकी तूती बोलनी लगी.
किसानों को तो मिला गया जमीन की कीमत, लेकिन बदले में योगेन्द्र साव को मिला मुकदमों का सौगात
हालांकि योगेन्द्र साव के दबाव के कारण किसानों को जमीन का उचित मुआवजा तो मिल गया, लेकिन इसके बदले में योगेन्द्र साव पर अनगिनत मामले दर्ज कर दिये गयें. जिन मुकदमों का सामना वह आज भी कर रहे हैं.
साफ है कि योगेन्द्र साव का शुन्य से शिखर तक की यात्रा इसी बड़कागांव विधान सभा के शुरु होती है. बड़कागांव और इसके निकटवर्ती विधान सभा में योगेन्द्र साव का काफी अच्छी पकड़ मानी जाती है. दावा तो यहां तक किया जाता है कि बड़कागांव से विधान सभा में जीत का परचम फरहाने के लिए योगेन्द्र साव को किसी सियासी दल के सहारे की जरुरत नहीं होती है, उनकी खुद की सियासी जमीन ही काफी मजबूत है. इस हालत में यदि कांग्रेस उन्हे हजारीबाग से मैदान में उतारे तो वह कांग्रेस का 35 वर्षों का सूखा खत्म हो सकता है.
सामाजिक समीकरण भी योगेन्द्र साव के दावों की तस्दीक करता है
यदि सामाजिक समीकरणों की बात करें तो हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक मतदाता मुस्लिम समुदाय का-3.70लाख, कुशवाहा- 4.42 लाख, कुर्मी-2 लाख, ईशाई 70 हजार, वैश्य 2 लाख, जबकि आदिवासी और दूसरे जातियों की आबादी करीबन 1.5 लाख बतायी जाती है. योगेन्द्र साव की नजर इन दो लाख वैश्य आबादी के साथ ही मुस्लिम, ईसाई और दूसरी पिछड़ी जातियों के मतदाताओं पर लगी हुई है.
नामुमकिन नहीं है हजारीबाग का किला, खत्म हो सकता है 35 वर्षों का सूखा
यदि इन आंकड़ों पर गौर करें तो इंडिया गठबंधन के लिए हजारीबाग की जंग कोई मुश्किल पहाड़ नहीं है, लेकिन एक सत्य यह भी है कि आज तक कांग्रेस ने महज दो बार इस सीट पर अपना विजय पताका फहराया है. अंतिम बार कांग्रेस को यहां से वर्ष 1989 में सफलता मिली थी, तब यदुनाथ पांडेय ने दूसरी बार कांग्रेस की झोली में जीत का सौगात दिया था. जबकि अबतक भाजपा के खाते में यह सीट छह बार आ चुकी है.
वाम दलों के हिस्से जा सकता है यह सीट
हालांकि इस बार हजारीबाग की सीट कांग्रेस के खाते में ही रहेगी, इस पर सवालिया निशान लगा हुआ है. मंथनों को दौर जारी है, क्योंकि खबर यह है कि कांग्रेस यह सीट सीपीआई को सौंपने पर विचार कर रही है, क्योंकि 2004 और 1991 के लोकसभा चुनाव में सीपीआई के भुनेश्वर मेहता ने इस सीट पर अपना झंडा बुलंद करने में कामयाबी हासिल किया था, सीपीआई की कोशिश एक बार फिर से यह सीट अपने पाले में करने की होगी. अब देखना होगा कि अम्बा की फरमाइस पर क्या कांग्रेस वाम दलों को इस बात के राजी कर पाती है. और यही से अम्बा के सामने पेंच शुरु होता है.