रांची(RANCHI)- कभी जिसके एक इशारे राजधानी रांची में जमीनों की बोलियां लगती थी, जमीन सेना की हो या सरकारी या फिर आदिवासी नेचर की, यह कोई मायने नहीं रखता था, मायने रखता था तो सिर्फ विष्णु अग्रवाल की चाहत, जमीन पर उसकी नजर पड़ी की नहीं, उसके खुरफाती दिमाग में एक से बढ़कर एक आइडिया क्लिक करने लगता था. उसकी टीम में एक के बढ़कर एक जादूगर थें. जिनके लिए जमीन का फर्जी दस्तावेज बनाना चुटकियों का खेल था और कुछ इसी तरह के खुराफाती दिमाग सेना जमीन घोटाले में भी लगायी गयी थी.
कैसे रची गयी थी सेना की जमीन लिखवाने की साजिश
खबर आ रही है कि सेना की जमीन को जिस कोलकता के शख्स नाम पर निंबधित करवाया गया था, उससे उस जमीन का पावर ऑफ अटौर्नी ले लिया गया था, इस प्रकार जमीन उसके नाम होने के बाद भी उसके पास उक्त जमीन को बिक्री का अधिकार ही नहीं रह गया था.
सूत्रों का दावा है कि यहां धोखाधड़ी सिर्फ सेना, सरकार और आम लोगों के साथ ही नहीं हुई, बल्कि इस गिरोह के खुरफाती आइडिये का शिकार खुद वह शख्स भी हो गया. क्योंकि इस पूरे खेल को अंजाम देने के बदले उसे 10 लाख रुपये देने का वादा किया गया था, इसके बदले में उसे जमीन की रजिस्ट्री अपने नाम करवाकर उसका पावर ऑफ अटॉर्नी इस गिरोह के सदस्यों के के नाम कर देना था, वादे के अनुरुप उसने यह काम किया भी, लेकिन वह 10 लाख रुपया उसे आज तक नहीं मिला.
जिसके नाम की गई थी रजिस्ट्री, अब सुना रहा है अपना दुखड़ा
दावा किया जाता है कि उस शख्स को इसके बदले महज 20 हजार रुपये मिले और कोलकता से रांची का आने जाने का भाड़ा, जब भी वह रांची आता इस गिरोह का एक सदस्य इम्तियाज अली के द्वारा उसे रांची स्टेशन पर रिसीव किया जाता, उसके रहने-सहने की व्यवस्था की जाती, उससे दस्तावेजों पर साइन करावायें जाते और दो हजार रुपये उसके हाथ में देकर उसे कोलकता के लिए विदा कर दिया जाता. अब वह शख्स ईडी के अधिकारियों को अपने साथ हुए धोखाधड़ी की कहानियां सुना रहा है.
जमीन कब्जाने के हजार नुस्खें
लेकिन वह शख्स जो जमीन कब्जाने के हजार नुस्खें लेकर शहर में घूमता फिरता था. राजधानी रांची के पॉस इलाकों के एक-एक खाली प्लौटों की जानकारियां जिसके पास रहती थी. ईडी का सामना होते ही उसकी पूरी अकड़ गायब हो चुकी थी. वह बस अब रोये और तब रोये की स्थिति में था. आंखों में आंसू की बूंदे और चेहरे पर विरानगी और बेचारगी के भाव लिए ईडी के अधिकारियों से कुछ समय देने की गुहार लगा रहा था, अपनी बीमारी का हवाला दे रहा था. जिसके बाद ईडी से उसकी दशा देखी नहीं गयी, सख्त अधिकारियों का दिल भी पसीज गया और बेहद बूझे मन से उसकी मोहलत की मांग को मान ली गयी.