Ranchi- कोडरमा के सियासी अखाड़े से निर्दलीय मैदान में उतरने की खबरों के बीच गांडेय से पूर्व विधायक जयप्रकाश वर्मा ने यह दावा कर सनसनी फैली दी है कि माले विधायक विनोद सिंह कोडरमा से इंडिया गठबंधन का अधिकृत उम्मीदवार नहीं है. विनोद सिंह की उम्मीदवारी की घोषणा करते वक्त झामुमो की सहमति नहीं लगी गयी है. इस हालत में विनोद सिंह माले का उम्मीदवार हो सकते हैं. लेकिन उन्हे इंडिया गठबंधन का उम्मीदवार नहीं माना जा सकता. जयप्रकाश वर्मा ने विनोद सिंह की उम्मीदवारी पर सवाल खड़ा करते पूछा कि क्या इंडिया गठबंधन की ओर से इसकी औपचारिक घोषणा हुई है. यह फैसला तो माले का है, और सीपीआई माले के इस फैसले को इंडिया गठबंधन का फैसला कैसे माना जा सकता है, इसके साथ ही जयप्रकाश वर्मा ने कहा कि पार्टी की ओर से उन्हे इस बात का विश्वास दिलाया गया है कि जल्द ही माले के साथ औपचारिक बैठक कर इसका समाधान कर लिया जायेगा, और कोडरमा से झामुमो का उम्मीदवार भी इंडिया गठबंधन का चेहरा होगा. जयप्रकाश वर्मा ने यह भी साफ किया कि वह निर्दलीय मैदान में कूदने नहीं जा रहे हैं, वह झामुमो के टिकट पर ही अखाड़े में कूदेगें.
जयप्रकाश वर्मा निर्दलीय अखाड़े में कूदने की खबर से हिचकोलें खाने लगा था इंडिया गठबंधन
यहां ध्यान रहे कि जयप्रकाश वर्मा के द्वारा निर्दलीय मैदान में कूदने की खबर तेजी से जोर पकड़ रही थी, और इसके कारण लोहरदगा और राजमहल के बाद कोडरमा में भी इंडिया गठबंधन हिचकोलों खाता दिखने लगा था. और इसका कारण कोडरमा संसदीय सीट पर कोयरी कुर्मी जाति की आबादी है, जिस जाति से जयप्रकाश वर्मा आते हैं.एक आकलन के कोडरमा संसदीय सीट पर यादव -2.60 लाख, मुस्लिम-2 लाख, बाभन- 2 लाख, कोयरी कुर्मी- 2.20 लाख, आदिवासी-1.50 लाख, दलित-2 लाख, वैश्य-1.50 हैं. अब तक इंडिया गठबंधन की जीत का पूरा दामोदार मुस्लिम, कोयरी और कुड़मी के साथ ही आदिवासी मतदाताओं की एकजूटता पर टिकी थी, दूसरी ओर भाजपा कोशिश अगड़ी जाति के मतदाताओं के साथ ही यादव और दूसरी पिछड़ी जातियों को एक साथ खड़ा करने की थी, लेकिन जयप्रकाश वर्मा को चुनावी अखाड़े में कूदने के बाद इंडिया गठबंधन के सामने कोयरी जाति में सेंधमारी का खतरा मंडाराने लगा था. इंडिया गठबंधन के लिए जयप्रकाश वर्मा का चुनावी अखाड़े में उतरने का एलान इसलिए भी बड़ा झटका होता, क्योंकि भाजपा यहां बड़े मार्जिन से जीतती रही है, वर्ष 2014 में जहां भाजपा के अन्नपूर्णा देवी को 62 फीसदी मत मिले थें,वहीं तब के महागठबंधन के उम्मीदवार बाबूलाल मरांडी महज 24 फीसदी मतों पर सिमट गये थें. इस हालत में जयप्रकाश वर्मा का निर्दलीय चुनावी अखाड़े में कूदने के बाद इंडिया गठबंधन के सपनों पर पानी फिर सकता था.
राजद के कोर वोटर में पहले ही सेंधमारी कर चुकी है भाजपा
याद रहे कि इस बार भी भाजपा ने वर्तमान सांसद अन्नपूर्णा देवी को ही एक बार फिर से मैदान में उतारा है, अन्नपूर्णा पहले राजद में थी और उनकी गिनती राजद सुप्रीमो लालू यादव के सबसे भरोसेमंद चेहरे में की जाती थी. वर्ष 2000, 2005 और 2009 में लगातार कोडरमा में लालेटन का परचम फहराती रही. लेकिन 2014 में नीरा यादव के हाथों मात खाने के बाद लालटेन को छोड़कर कमल की सवारी का फैसला किया, जिसके बाद भाजपा ने वर्ष 2019 में तात्कालीन झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के खिलाफ कोडरमा लोकसभा से उतारने का एलान कर दिया. बाबूलाल को करीबन चार लाख मतों से पटकनी देती ही अन्नपूर्णा के लिए दिल्ली में मंत्री बनने का रास्ता भी खुल गया. अब वही अन्नपूर्णा इस बार सियासी अखाड़े में है और उनके सामने है झारखंड की सियासत का एक बड़ा चेहरा और माले नेता महेन्द्र सिंह के बेटे विनोद सिंह. पिता महेन्द्र सिंह की हत्या के बाद विनोद सिंह वर्ष 2005, 2009 और 2019 में बागोदर से माले का झंडा बुलंद कर चुके हैं. विनोद सिंह भी कोडरमा की सियासत में एक बड़ा चेहरा है.
यादव और कोयरी मतदाताओं को अपने पाला में खड़ा करना विनोद सिंह की बड़ी चुनौती
लेकिन मुश्किल यह है कि कोडरमा का सामाजिक समीकरण उनके खिलाफ जाता दिख रहा है. इस हालत में विनोद सिंह के लिए यादव और कोयरी मतदाताओं को अपने पाले में खड़ा करना एक मुश्किल टास्क नजर आता है, हालांकि उनके पास समर्पित कार्यकर्ताओं की एक फौज जरुर है, लेकिन यह लड़ाई विधान सभा के बजाय लोकसभा की है और अन्नपूर्णा को कमल थामने के बाद भाजपा वहां एक मजबूत सियासी जमीन पर खड़ी है, यही कारण है कि वर्ष 2019 के मुकाबले में अन्नपूर्णा ने बाबूलाल मरांडी जैसे चेहरे को भी करीबन चार लाख मतों से पटकनी देने में सफल रही. इस हालत में विनोद सिंह को अपनी ना सिर्फ अपनी तैयारी तेज करने होगी, बल्कि सामाजिक समीकरण को भी मजबूत करना होगा
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