Ranchi- झारखंड की अस्मिता, पहचान और आम झारखंडियों की आवाज बन कर सियासी जगत में धूमकेतू बन कर छा जाने वाले टाईगर जयराम दीपावली के पहले एक बड़ा धमाका करने की तैयारी में हैं. दावा किया जा रहा है कि स्थापित सियासी दलों से पहले ही टाईगर जयराम झारखंड में लोकसभा 2024 का जंग-ए-एलान कर सकते हैं, और यह एलान सिर्फ मौखिक नहीं होगा, बल्कि इस एलान के साथ ही विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों के लिए उनके पहलवानों की पूरी तस्वीर भी सामने आ जायेगी. प्राप्त जानकारी के अनुसार टाईगर जयराम की नजर रांची, कोडरमा, हजारीबाग, पश्चिमी सिंहभूम, गिरिडीह और जमशेदपुर सीटों पर लगी हुई है. जहां से वह अपने पहलवानों की घोषणा करने की तैयारी में हैं, खबर यह भी है कि उनकी नजर दुमका संसदीय सीट पर भी है, और वह इस सीट पर एक मजबूत पहलवान की खोज में खांटी झारखंडी सियासत का दूसरा चेहरा और बागी तेवर अपनाते रहे झामुमो विधायक लोबिन हेम्ब्रम के संपर्क में हैं.
लोबिन का खंडन
हालांकि लोबिन इन खबरों को खारिज करते हुए कहते हैं कि यह सत्य है कि जयराम महतो ने सम्पर्क करने की कोशिश की थी, लेकिन किसी कारणवश हमारी मुलाकात नहीं हो सकी, जहां तक रही दुमका संसदीय सीट के लिए विचार विमर्श की बात तो इस में कोई तथ्य नहीं है, हालांकि हम जयराम से कई मुद्दों पर सहमति भी रखते हैं, जिस जल जंगल और जमीन की लड़ाई जयराम लड़ रहे हैं, जिस प्रखरता के साथ झारखंडी अस्मिता और पहचान के सवाल को वह सियासी विमर्श का हिस्सा बना रहे हैं, वह निश्चित रुप से काबिलेतारीफ है, लेकिन इसके साथ ही जिस प्रकार जयराम कुड़मी जाति को जनजाति का दर्जा देने की वकालत करते नजर आते हैं, वह आदिवासियों के लिए एक खतरनाक संकेत है. और उसके बाद हमारी राह जूदा हो जाती है, हम किसी भी कीमत पर आदिवासी हित के साथ समझौता नहीं कर सकते. यदि कुड़मी भी आदिवासी घोषित कर दिये जायेंगे तब हम आदिवासियों का क्या होगा? जिस झारखंडी अस्मिता की वकालत जयराम करते नजर आते हैं, वह यहां आकर एक विरोधाभाश का शिकार हो जाता है, और इस हालत में लोबिन कभी भी उसके साथ खड़ा नहीं हो सकता, हालांकि राजनीति में एक दूसरे से मिलना-जुलना बेहद सामान्य सी बात है, और इसी बहुत अधिक तूल नहीं दिया जाना चाहिए.
संथाल के किले को भेदना इतना आसान नहीं
इसके बाद साफ है कि जयराम के लिए संथाल के किले को भेदना इतना आसान नहीं है, लेकिन जिस तरह से जयराम रांची, हजारीबाग, जमशेदपुर और पश्चिमी सिंहभूम पर अपनी नजर बनाये हुए हैं, उसके बाद कांग्रेस की राह मुश्किल होती नजर आने लगी है. क्योंकि यही वह सीटें हैं, जो इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस के खाते में जाता हुआ दिखलायी दे रहा है.
जयराम की इंट्री से भाजपा को मिल सकता है बढ़त
हार जीत की बात को यदि छोड़ भी दें तो यदि वह ठीक ठाक संख्या में वोट काटने में सफल हो जाते हैं तो निश्चित रुप से इन सीटों से भाजपा की राह आसान हो सकती है, और यही कांग्रेस के लिए चिंता का विषय हो सकता है. हालांकि खबर यह भी है कि अभी तक जयराम महतो को चुनाव आयोग की ओर से चुनाव चिह्न का आवंटन नहीं हुआ है, लेकिन दावा किया जा रहा है कि सारी औपचारिकताएं पूर्ण कर ली गयी है, और शायद दीपावली के पहले-पहले चुनाव आयोग की ओर से चुनाव चिह्न का आवंटन भी कर दिया जायेगा, हालांकि उम्मीदवारों की घोषणा के लिए चुनाव चिह्न का होना कोई अनिवार्य शर्त नहीं है, जब तक चुनाव चिह्न का आवंटन नहीं हो जाता. जयराम निर्दलीय प्रत्याशी के बतौर अपने पहलवानों की घोषणा कर सकते हैं.
ध्यान रहे कि हालिया दिनों में जयराम महतो हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडीह में काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं, उनके द्वारा लगातार रैलियां की जा रही है, जनसम्पर्क किया जा रहा है, और बड़ी बात यह है कि उनकी रैलियों में स्वस्फूर्त तरीके से लोगों की काफी भीड़ भी जुट रही है. निश्चित रुप से इस हालत में झामुमो को अपने टाईगर जगरनाथ महतो की याद आ रही होगी, काश! आज यदि जगरनाथ महतो होते तो झामुमो के सामने यह संकट के रुप में नहीं दिखता.