TNP DESK- अपने विवादित बयानों और राजनीतिक कारनामों की वजह से झारखंड की राजनीति में चर्चा के केन्द्र बिन्दु में रहने वाले जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी ने एक और विवादित टिप्पणी की है, इस बार उनके द्वारा बड़े ही सुनियोजित तरीके से गोड़्डा को मिनी पाकिस्तान बताया गया है, उन्होंने कहा है कि गोड्डा संसदीय सीट एक मिनी पाकिस्तान है, यदि निशिकांत दुबे को राजनीतिक रुप से पैदल करना है तो 2024 में इस संसदीय सीट से किसी हिन्दू को टिकट देना एक राजनीतिक भूल होगी. कोई भी हिन्दू चेहरा, भले ही वह प्रदीप यादव ही क्यों नहीं हो, निशिकांत दुबे को पराजित नहीं कर सकता.
मोदी की आंधी में भी फुरकान अंसारी को महज 49 हजार मतों से हुई थी हार
इरफान अंसारी ने इसे और भी विस्तार से समझाते हुए कहा कि वर्ष 2014 में जब मोदी की आंधी बह रही थी, उस वक्त भी उनके पिता फुरकान अंसारी को महज 49 हजार मतों से पराजय का सामना करना पड़ा था, लेकिन जब वर्ष 2019 में इस सीट से प्रदीप यादव को टिकट थमाया गया तो उन्हे दो लाख से अधिक मतों से पराजय का सामना करना पड़ा. इरफान अंसारी के अनुसार यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यहां कोई मुसलमान चेहरा ही निशिंकात दुबे के राजनीतिक रथ को रोकने की स्थिति में है.
इसलिए इस बार यदि निशिकांत दुबे को पराजित करना है तो पार्टी को किसी ना किसी अल्पसंख्यक चेहरे को यहां से उतारना पड़ेगा. इरफान अंसारी पार्टी को इस सीट पर टिकट देने के पहले एक सर्वे कराने का सुझाव दे रहे हैं, लेकिन साफ है कि उनकी कोशिश इस बार अपने पिता फुरकान अंसारी को टिकट दिलवाने की है, यह सारे दावे उसी ओर इशारा कर रहे हैं.
क्या महागामा सीट पर भी है इरफान की नजर
क्योंकि जिस गोड्डा संसदीय क्षेत्र और महगामा विधान सभा क्षेत्र को इरफान अंसारी के द्वारा मिनी पाकिस्तान बताया जा रहा है, उसी महागामा क्षेत्र से उनकी ही पार्टी के दीपिका पांडेय सिंह अभी विधायक हैं, तो क्या इरफान अंसारी की नजर महागामा क्षेत्र पर भी लगी हुई है.
गोड्डा संसदीय सीट का अंकगणित
ध्यान रहे कि एक अनुमान के आधार गोड्डा संसदीय क्षेत्र में करीबन दो से ढाई लाख यादव, ढाई से तीन लाख मुसलमान, दो लाख ब्राह्मण, ढाई से तीन लाख वैश्य, डेढ़ लाख के करीब आदिवासी, एक लाख के करीब भूमिहार, राजपूत, कायस्थ हैं, इसके साथ ही पचपौनियां जातियों और दलितों की एक बड़ी आबादी है, साफ है कि आंकड़े इरफान अंसारी के दावों की पुष्टी नहीं करतें. हालांकि इस संसदीय क्षेत्र में मुसलमानों की एक बड़ी आबादी है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि यहां यादव, दलित और आदिवासियों की एक बड़ी आबादी भी है, जिनका ध्रुवीकरण जीत और हार तय करती है. यदि इन जातियों को अल्पसंख्यकों का साल मिल जाता है, तो उसकी जीत तय है, लेकिन साथ ही यदि यहां से किसी यादव या आदिवासी को उम्मीदवार बनाया जाता है तो भी जीत का उतना ही चांस है. लेकिन इरफान अंसारी का जोर महज किसी अल्पसंख्यक चेहरे पर है, साफ है कि इस समीकरण को सामने रख उनकी कोशिश महज अपने पिता फुरकान अंसारी के लिए एक टिकट का जुगाड़ करने से ज्यादा कुछ नहीं है.