Ranchi- सत्ता का खेल भी कितना अजीब होता है, जिस विधान सभा के अन्दर हमारे माननीय एक दूसरे पर व्यंगवाण छोड़ते हैं, अपने विरोधियों पर हमला करने का एक भी मौका गंवाना मुनासिब नहीं समझते, अपने को जनता का सबसे बड़ा रहनुमा बताने और समझाने की होड़ मची रहती है, विरोधी दलों के द्वारा सत्ता पक्ष को तो सत्ता पक्ष के द्वारा विरोधी दलों और उसके नेताओं को मौका परस्त बताया जाता है, विधान सभा के अन्दर हर दिखने वाले इस दृश्य को देख कर तो यही लगता है कि सत्ता पक्ष और विरोधी पक्ष एक दूसरे के घूर विरोधी है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है. बात जब अपने हित की हो, सत्ता की मलाई काटने की हो, संसाधनों का बंटवारा की हो, तब यहां कोई सत्ता पक्ष और कोई विरोधी पक्ष नहीं रह जाता, सब कुछ एक स्वर से पारित कर दिया जाता है, इस बार भी विधान सभा के अन्दर कुछ ऐसा ही होने जा रहा है, पिछले छह वर्षो में आम झारखंडियों की आय में भले ही कोई वृद्धि नहीं हुई हो, उनकी क्रय शक्ति भले ही आज भी वहीं टिकी हुई हो, बल्कि कहें तो उसमें गिरावट ही आई हो, लेकिन हमारे माननीयों ने अपना वेतन बढ़ाने की व्यवस्था कर ली है, वह भी बगैर किसी हो हंगामें के साथ, माननीयों का वेतन में वृद्धि पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में कहीं कोई तकरार नहीं है, एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ नहीं है, बस एक माननीय ने इसकी मांग रखी और दूसरे माननीय ने इसका समर्थन कर दिया और इससे साथ ही विधान सभा में 81 हाथ लहराने लगें.
8 साल में दूसरी वृद्धि
यहां बता दें कि माननीयों के वेतन में 8 साल में यह दूसरी वृद्धि है, दरअसल विधान सभा का बजट सत्र के दौरान ही हमारे माननीयों के द्वारा अपने वेतन में वृद्धि की मांग की उठायी गयी थी, सत्ता पक्ष की इस मांग का विपक्ष का जोरदार समर्थन मिला, और भाजपा विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी की अध्यक्षता में बगैर देरी किये एक समिति गठित कर दी गयी, कहीं कोई विरोध नहीं, कोई हल्ला हंगामा नहीं, और बजट सत्र में गठित समिति ने मानसून सत्र में अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी. अपने रिपोर्ट में माननीय ने वेतन वृद्धि को पूरी तरह से न्यायसंगत करार दे दिया.
वर्षों अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपती है विधान सभा की समितियां
यहां याद रहे कि आम तौर पर विधान सभा की ओर से गठित समितियां वर्षों तक अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपती, लोग बाग भी जाते हैं कि किसी मुद्दे को लेकर कोई समिति भी गठित की गयी थी, लेकिन इस मामले में हमारे माननीयों ने गजब की फुर्ती दिखलायी, सब कुछ नियत समय पर हो गया और विधायकों को मूल वेतन 40 हजार से 60 हजार करने की अनुशंसा कर दी गयी. इसके साथ अतिरिक्त भते आदि तो हैं ही. अब बजट सत्र की तरह मानसून सत्र में भी सत्ता पक्ष और विपक्ष में गजब की एकजुटता दिखलायी देगी, और एक मत और एक स्वर से इसे पारित कर दिया जायेगा.
इस मंहगाई की पहली मार तो हम आवाम पर पड़ी है
लेकिन सवाल यह है कि जिस मंहगाई का रोना रोकर इस वेतन वृद्धि को जायज बताया गया है, वह मंहगाई सिर्फ हमारे माननीयों के हिस्से ही नहीं आयी है, इस मंहगाई की पहली और असली मार तो हम अवाम पर पड़ी है, अच्छा होता अपने वेतन की वृद्धि के पहले हमारे माननीय हमारी मंहगाई की भी समीक्षा कर लेते, तीन सौ रुपया प्रति दिन कमाने वाला दिहाड़ी मजदूर की जिंदगी इस मंहगाई में कहां लटक गयी है, उसका भी अध्ययन कर लिया जाता, 15 से 20 हजार में हमारे जो युवा होटल-ढाबा से लेकर निजी कंपनियों में 10-10 घंटे जी तोड़ पसीना बहा रहे हैं, इस मंहगाई की मार उन पर कितनी घातक हुई है, इसका भी आकलन कर लिया जाता, ध्यान रहे कि हम 2023 में जी रहे हैं, इस वर्ष हमें किसानों की आय दुगनी करनी थी, लेकिन हमारे माननीयों ने अपनी आय दुगनी करने की व्यवस्था कर ली.