रांची(RANCHI)- झारखंड के सियासी गलियारों में अचानक से इस बात की चर्चा तेज है कि बड़कागांव विधायक अम्बा प्रसाद और झरिया विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह अन्दरखाने भाजपा के सम्पर्क में है, और दोनों 2024 लोकसभा के महाजंग से ठीक पहले इंडिया गठबंधन को गच्चा देने की तैयारी में है. यह दावा इस आधार पर किया जा रहा है कि दोनों विधायकों ने हालिया दिनों में पार्टी कार्यक्रमों से अपने आप को अलग कर लिया है, पार्टी के बार-बार के अनुरोध के बावजूद भी सांगठनिक गतिविधियों में उनकी सक्रियता नजर नहीं आ रही, जिस मैत्री सम्मेलन को सफल करने के लिए पार्टी अध्यक्ष राजेश ठाकुर और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय ने अपना पूरा जोर लगाया, उस कार्यक्रम से भी दोनों विधायकों ने दूरी बना ली.
योगेन्द्र साव की सियासी चाहत
हालांकि इस दावे का अभी कोई पुख्ता आधार नहीं है, लेकिन एक चर्चा यह भी तेज है कि अम्बा के पिता और झारखंड की राजनीति के धुरंधर योगेन्द्र साव की चाहत अपनी दूसरी बेटी और बेटे सुमन को सियासी अखाड़े में लॉंच करने की है, लेकिन उसके लिए उन्हे बड़कागांव से बाहर सियासी पिच तैयार करना की मजबूरी है. यह पूरी रणनीति उसी को लेकर बनायी जा रही है.
बड़कागांव विधान सभा में योगेन्द्र साव को किसी राजनीतिक दल के आसरे के जरुरत नहीं
ध्यान रहे कि बड़कागांव विधान सभा में योगेन्द्र साव का जो राजनीतिक पकड़ है, उसको देखते हुए वह वहां किसी पार्टी के टिकट का मोहताज नहीं हैं, वह खुद अपने बूते सीट निकालने की हैसियत रखते हैं, लेकिन जैसे ही वह बड़कागांव से बाहर निकलेंगे, उन्हे किसी पार्टी के सहारे की जरुरत होगी. योगेन्द्र साव इस बात को भी भली भांति जानते है कि कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही अम्बा के साथ परिवार के किसी दूसरे सदस्य को टिकट देने का जाखिम नहीं ले सकती और यहीं से योगेन्द्र साव की रणनीति शुरु होती है.
अम्बा को बड़कागांव की सियासत से दूर कर बेटे सुमन के लिए जगह बनाने की कोशिश
रणनीति यह है कि अम्बा को भाजपा के टिकट पर किसी दूसरे विधान सभा क्षेत्र से मैदान में उतारा जाय, अम्बा की अपनी पर्सनालिटी, कमल का फूल और योगेन्द्र साव का आंतरिक सहयोग से अम्बा के लिए विधान सभा में जाने का रास्ता साफ हो सकता है, जबकि बड़कागांव विधान सभा से वह अपनी दूसरी बेटी या बेटे सुमन को लॉंचिंग पैड प्रदान कर सकते हैं.
पूर्व सीएम रघुवर दास के काफी करीब माने जाते हैं योगेन्द्र साव
यहां यह भी बता दें कि योगेन्द्र साव भले ही कांग्रेस से जुड़कर लम्बे अर्से से राजनीति कर रहे हों, लेकिन पूर्व सीएम रघुवर दास के साथ उनकी नजदीकियां जगजाहिर है, और खुद भाजपा को भी झारखंड की राजनीति में एक मजबूत मूलवासी चेहरे की तलाश है और यदि वह चेहरा अम्बा जैसी तेज-तर्रार पढ़ी लिखी महिला हो तो भाजपा के लिए यह सोने पर सुहागा होगा, और खुद अम्बा का भी सियासी कैरियर उछाल लेने लगेगा.
अम्बा के फैसले से खुद को अलग करने का चाल चल सकते हैं योगेन्द्र साव
रही बात योगेन्द्र साव का कांग्रेस के प्रति प्रतिबद्धता की तो वह अम्बा से यह कह कर पाला झाड़ सकते हैं कि यह फैसला अम्बा का है, उनका इससे कोई लेना देना नहीं है. उनकी प्रतिबद्धता कांग्रेस के साथ अटूट है, और वह आज भी कांग्रेस के साथ पूरे दम खम के साथ खड़े हैं. इसके साथ ही उन्हे बड़कागांव में कांग्रेस का साथ भी मिल जायेगा. लेकिन एक बार फिर से यह बता दें कि यह पूरी तरह से दावों प्रतिदावों का खेल है. एक अफसाना से ज्यादा कुछ नहीं है. क्योंकि ऐसा कोई संकेत योगेन्द्र साव या खुद अम्बा प्रसाद के द्वारा नहीं दिया जा रहा है.
पूर्णिमा नीरज सिंह के सामने भी खड़ी है रागिनी की दीवार
रही बात पूर्णिमा नीरज सिंह को तो कांग्रेस में जो उनकी हैसियत है, जिस प्रकार कांग्रेस उनको प्रमोट कर रही है, उस हालत में उनकी कांग्रेस से नाराजगी का कोई कारण नहीं बनता है. और यदि कुछ क्षण के लिए कांग्रेस छोड़ने की अटकलों पर विश्वास भी कर लें तो सवाल यह खड़ा होता है कि भाजपा में उनकी स्थिति क्या होगी, क्योंकि आज के दिन उनकी भाभी रागिनी सिंह भाजपा में पूरी तरह से सक्रिय है, और भाजपा को पूर्णिमा नीरज से वैसा क्या हासिल होगा, जो रागिनी सिंह के पास नहीं है, दोनों की अपनी अपनी मजबूत पहचान है, और एक पुरानी कहावत है कि एक म्यान में दो तलवार नहीं रखा जा सकता है. यह तब ही संभव है जब रागिनी सिंह अपना पाला बदलने की सोच रहे हों, जिसकी गुंजाइश अभी दूर दूर तक नजर नहीं आती.