Ranchi- मिथुन खरवार, तबरेज अंसारी, संजू प्रधान, जय मुर्मू, शमीम अंसारी, इमाम अंसारी ये कुछ चुनिंदा नाम हैं, ये कोई दुर्दांत अपराधी नहीं थें, समाज के सबसे कमजोर तबके से इनका नाता था, दो जुन की रोटी की व्यवस्था ही इनके जीवन का ध्येय था, लेकिन ये सभी भीड़ की उस मानसिकता का शिकार हो गयें, जिनका विश्वास “जस्टिस ऑन” स्पॉट में है. अलग-अलग समय में अलग अलग भीड़ के हाथों मारे गये, इनके परिजन आज भी कानून और न्याय प्रणाली से इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं. इनकी तो मौत हो गयी, लेकिन इनके परिजन आज इंसाफ की लड़ाई में तिल तिल कर मर रहे हैं.
मणिपुर में क्या हुआ था
कुछ यही कहानी मणिपुर की है, जहां आदिवासी बेटियों के साथ सार्वजनिक बलात्कार कर उनका नग्न परेड करवाय गया था, वहां भी आदिवासी बेटियां भीड़ के हाथों ही अपनी आबरु लूटा रही थी. जिसकी व्यथा से मर्माहत होकर सीएम हेमंत ने राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की गुहार लगायी थी, और मर्माहत शब्दों में कहा था कि अब कहीं से इंसाफ की कोई दिखलायी नहीं देती, सिर्फ और सिर्फ आप ही हमारी आदिवासी बेटियों के इंसाफ दिलवाने का सामर्थ्य रखती है.
हालांकि मणिपुर की सरकार भीड़ की उस मानसिकता के खिलाफ क्या कार्रवाई करेगी, यह अलग विवाद का विषय है, और आदिवासी बेटियों के साथ इस जुल्म को केन्द्र सरकार की भूमिका खुद ही सवालों के घेरे में है.
इसी मानसूत्र सत्र में विधेयक लाने की तैयारी में है हेमंत सरकार
लेकिन भीड़ के द्वारा बरती जानी वाली इस अमानुषिक व्यवहार के खिलाफ हेमंत सरकार के द्वारा आज से 18 महीने पहले मॉब लिंचिंग विधेयक लाया गया था. लेकिन उसकी कई बिन्दुओं से महामहिम रमेश बैस को गहरी आपत्ति थी, उनके द्वारा विधेयक में कई संशोधनों का सुझाव देते हुए बिल को राज्य सरकार को वापस कर दिया गया था. उनकी मुख्य आपत्ति इस बात को लेकर थी कि विधेयक के अंग्रेजी संस्करण के धारा दो के उपखंड (1) के उपखंड 12 में गवाह संरक्षण योजना का जिक्र है, लेकिन हिंदी संस्करण में यह हिस्सा गायब है.
हिंसा/हत्या की रोकथाम विधेयक-2023
अब हेमंत सरकार एक बार फिर से राजभवन के द्वारा सुझाये गये संशोधन के साथ इस बिल को लाने जा रही है, बताया जा रहा है कि इसी मानसून सत्र में इस बिल को भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा/हत्या की रोकथाम विधेयक-2023 के नाम से लाया जा सकता है. सरकार यह मानती है कि किसी भी उन्मादी भीड़ के द्वारा कानून हाथ में लेकर आरोपी की हत्या करना या उसका शारीरिक नुकसान पहुंचाना एक गंभीर अपराध है और इस मानसिकता पर रोक लगाने के लिए लोगों में कानून का भय जरुरी है. कानूनी का यही भय मणिपुर में समाप्त हो चुका है, वहां अब सब कुछ भीड़ के इशारे पर हो रहा है, और उसकी परिणति आदिवासी बेटियों के साथ बर्बरता के रुप में सामने आ रही है.