Ranchi-पिछले तीन महीनों से दो समूहों के बीच सामाजिक तनाव और हिंसा की खबरों के कारण सुर्खियों में रहने वाले मणिपुर से कल राहुल गांधी के काफिले को रोके जाने की खबर आयी. अपने विदेश दौरे के बाद वापस लौटे राहुल गांधी फिलहाल मणिपुर से दौरे पर हैं, इस दरम्यान वह हिंसाग्रस्त दोनों समुदायों से मिलने की कोशिश कर रहे हैं, हिंसा पीड़ितों के लिए बनाये गये कैम्पों में जाकर उनका हालचाल जान रहे हैं, उनकी व्यक्तिगत और सामाजिक असुरक्षा की भावना और संत्रासाना को महसूस करने की कोशिश कर रहे हैं. विपदा की इस घड़ी में उनका हौसला आफजाई कर रहे हैं. हिंसा पीड़ितों यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि सामाजिक घुटन, हिंसा और टूटन के इस बुरे वक्त में पूरा राष्ट्र आम मणिपुरियों के साथ खड़ा है, देश का हर नागरिक विपदा की इस घड़ी में उनके साथ है.
हिंसा पीड़ितों में आत्म विश्वास का संचार
लेकिन हिंसा पीड़ितों में आत्म विश्वास का संचार करते इस कदम को आगे बढ़ाने के बजाय इंफाल के करीबन 20 किलो मीटर दूर उनके काफिले को रोक दिया गया. खबरों के अनुसार उस वक्त राहुल गांधी का काफिला हिंसाग्रस्त पीड़ितों के लिए बनाया गया चूराचांदपुर रिलीफ कैंप की ओर बढ़ रहा था.
राहुल गांधी गो बैक की सच्चाई
काफिले को रोके जाने की खबर ज्योंही राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बनने लगी, हमेशा की तरह सबसे पहले सामने भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा सामने आये, अपेक्षा के अनुरुप उन्होंने दावा कर दिया कि मणिपुर की जनता राहुल गांधी को देखना भी पसंद नहीं करती है, राहुल गांधी गो बैक के नारे लग रहे हैं, जिसके कारण उनके काफिला को रोकना पड़ा.
खुल गयी डबल इंजन की सच्चाई
ध्यान रहे कि मणिपुर में उसी डबल इंजन की सरकार है, जिस डबल इंजन की दुहाई देकर वोट मांगी जाती है, दावा किया जाता कि भाजपा शासित राज्यों में कभी दंगे नहीं होते, शांति अमन तो कायम रहता है कि विकास भी दुगनी गति से होता है. लेकिन संबित पात्रा को राहुल गांधी गो बैक के नारे सुनाई पड़ रहे थें, लेकिन पिछले तीन माह से हिंसा,विद्वेष की आग में जलता मासूमों की चित्कार उन्हे सुनाई नहीं पड़ रही थी, लेकिन महज कुछ घंटों के अन्दर इस सच्चाई से पर्दा भी उठ गया.
सोशल मीडिया की ताकत का हुआ एहसास
हालांकि राष्ट्रीय मीडिया चुपचाप संबित संवाद को ही दिखलाता रहा, वही प्रलाप सुनाता रहा, लेकिन राष्ट्रीय मीडिया के एंकर यह भूल बैठे कि यह सोशल मीडिया का दौर है, और राष्ट्रीय मीडिया की विश्वसनीयता अपने निचले स्तर पर हिचकोलों खा रहा है, कुछ ही देर में सोशल मीडिया राहुल गांधी के गाड़ी को घेर कर विलाप करती महिलाओं से पट गया, राहुल गांधी के काफिले को रोके जाने के बाद लोगों में आक्रोश भड़क उठा, लोग विरोध प्रर्दशन पर उतारु हो गयें, आखिरकार प्रशासन को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े, प्रशासन को यह बात समझ में आ चुकी थी कि दिल्ली के आसरे राहुल गांधी के काफिले का रोकना एक महंगा सौदा है, लोगों का आक्रोश पहले से अंतिम उंचाईयों पर है, काफिला रोके जाने के बाद नाराजागी और भी बढ़ सकती है.
काफिला रोके जाने के बाद सड़क पर विरोध प्रर्दशन की शुरुआत
आखिरकार प्रशासन को हेलिकॉप्टर से चूराचांदपुर जाने की अनुमति देने को बाध्य होने पड़ा, और उसी चूराचांदपुर से वह तस्वीर भी आयी, जिसमें राहुल गांधी पीड़ितों के बीच नास्ता करते देखे जा रहे हैं. राहुल गांधी को सामने बैठा देख हिंसा पीड़ितों में एक आत्मसंतोष दिख रहा था, उन्हे लग रहा था कि चलो मुसीबत की इस घड़ी में डबल इंजन तो काम नहीं आया, उसका कोई प्रतिनिधि सामने नहीं आया, लेकिन कमसे कम कोई तो सामने आया जो नफरत, हिंसा और सामाजिक विद्वेष की इस आग के बीच मुहब्बत की दुकान खोलने का साहस तो कर रहा है.
दिल्ली का मौसम सुहाना है
राहुल गांधी आज भी उसी मणिपुर में हैं, आज भी वह हिंसाग्रस्त कैंपों का दौरा कर रहे हैं, इधर दिल्ली का मौसम सुहाना है, लोग मेट्रो में सफर कर देश और देश के नागरिकों की संत्रासना को समझने की कोशिश कर रहे हैं. आखिरकार सबकी अपनी अपनी प्राथमिकता है, यही इस देश की खूबसूरती है और उसकी ताकत भी.