टीएनपी डेस्क(TNP DESK)- अभी कुछ दिन पहले ही शरद पवार की बेटी और एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले के एक बयान के देश के सियासी गलियारों में कयासों का बाजार गर्म हो गया था, सुप्रिया सुले ने उस बयान में दावा किया था कि देश और महाराष्ट्र की राजनीति में 15 दिनों के अन्दर भूंकप आने वाला है, ठीक उसके बाद शरद पवार के भतीजे अजीत पवार का भाजपा के साथ सरकार बनाने की खबरें भी चलने लगी, खुद अजीत पवार के द्वारा भी यह कह कर राजनीतिक सनसनी फैला दी गयी कि उनकी सौ फीसदी कोशिश सीएम बनने की है. हालांकि इसके साथ ही उनके द्वारा भाजपा के साथ सरकार बनाने की किसी भी संभावना से भी इंकार कर दिया गया था और दावा किया गया था कि वह अपने अंतिम समय तक एनसीपी के साथ ही रहेंगे. अभी यह तूफान शांत भी नहीं पड़ा था कि अब महाराष्ट्र की राजनीति में चाणक्य माने जाने वाले एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के द्वारा एनसीपी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देनी घोषणा कर दी गयी.
सियासी अटकलों का दौर शुरु
स्वाभाविक रुप से शरद पवार के इस फैसले के बाद महाराष्ट्र और देश की राजनीति में एक बार फिर से सियासी अटकलों का दौर शुरु हो गया है. हालांकि शरद पवार ने अपने इस्तीफे की वजह नहीं बतायी है, लेकिन इस इस्तीफे को उनके उस बयान से जोड़ कर देखा जा रहा है, जिसमें उनके द्वारा कहा गया था कि रोटी को पलटते रहना जरुरी होता है, नहीं तो रोटी कड़ी हो जाती है.
नये चेहरे को आगे बढ़ाने की पहल
शरद पवार की इस घोषणा पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अजीत पवार ने कहा है कि एनसीपी में नये चेहरे को आगे बढ़ाने की एक पंरपरा रही है, यह इस्तीफा भी उसी की एक कड़ी है, लेकिन पार्टी कार्यकर्ता शरद पवार के इस फैसले को स्वीकार करने को तैयार नहीं है, और उनपर इस्तीफा वापस लेने का दवाब बनाने की कोशिश की भी शुरुआत हो चुकी है.
'लोक भूलभुलैया संगति, का विमोचन
याद रहे कि शरद पवार ने यह घोषणा मुंबई के वाईबी चव्हाण सेंटर में अपनी बायोग्राफी 'लोक भूलभुलैया संगति' का विमोचन के वक्त किया है, इस बायोग्राफी में उन्होंने लिखा है कि महाविकास अघाड़ी की सरकार सिर्फ सत्ता का खेल नहीं थी राजनीतिक वर्चस्व की राजनीति करती भाजपा को एक करारा जवाब था. हालांकि अपनी बायोग्राफी में उनके द्वारा शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना प्रमुख उद्भव ठाकरे के द्वारा सीएम पद से इस्तीफा देने को जल्दबाजी का फैसला भी बताया है, उनका दावा है कि उद्भव के इस फैसले से महाविकास अघाड़ी को नुकसान पहुंचा.
बगावतों का इतिहास
यहां बता दें कि शरद पवार का पूरा इतिहास राजनीतिक बगावतों पर टिका है. 1977 में उनके द्वारा कांग्रेस पार्टी के विभाजन के वक्त कांग्रेस (यू) में शामिल होने का फैसला लिया गया था, लेकिन कुछ ही महीनों के बाद वह जनता पार्टी से जा मिले. और जनता पार्टी के समर्थन से महज 38 साल की उम्र में वह सबसे युवा सीएम बनने का खिताव अपने नाम कर लिया. लेकिन राजनीतिक का चक्र कुछ इस प्रकार से चला कि वह 1986 में वह फिर से एक बार कांग्रेस की सवारी कर बैठें. इसके बाद दो दो बार महाराष्ट्र जैसे महत्वपूर्ण राज्य का सीएम बने. लेकिन इनकी बगावत का सिलसिला खत्म नहीं हुआ ता और 1999 में सोनिया गांधी के खिलाफ विदेशी मूल का सवाल उठाते हुए शरद पवार, पीए संगमा और तारिक के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन कर लिया. बावजूद इसके 15 साल तक महाराष्ट्र में राकांपा-कांग्रेस गठबंधन की सरकार भी चलती रही.
सुप्रिया सुले को एनसीपी अध्यक्ष पद सौंपनी की तैयारी तो नहीं है यह इस्तीफा
उनके इस्तीफे की इस घोषणा के पीछे राजनीतिक कारणों की खोज शुरु हो गयी है, बहुत संभव है कि इस बार उनके निशाने पर उनका भतीजा अजीत पवार ही हो, और यह इस्तीफा अपनी बेटी सुप्रिया सुले को एनसीपी प्रमुख की जिम्मेवारी अपनी ही जिंदगी सौंपने की नीयत से की गयी हो.