रांची- हेमंत सरकार का तीन वर्ष पूरा होते ही झारखंड में अब तक बेजान सी दिखने वाली भाजपा अपनी पुरानी रंगत में लौटने की कोशिश करती नजर आ रही है और इसकी शुरुआत हुई है हेमंत हटाओ और झारखंड बचाओ के नारे के साथ.
इस नारे को जमीन तक पहुंचाने के लिए जमीनी जनाधार की किल्लत
लेकिन इस नारे को जमीन पर उतारने के लिए उसे अपने जमीनी जनाधार का आकलन करना बेहद जरुरी होगा. हेमंत हटाओ और झारखंड बचाओ का नारा जितना भी कर्णप्रिय लगे, लेकिन उसे जमीन पर उतारने के लिए भाजपा के पास कार्यकर्ताओं की भारी भीड़ होनी चाहिए.
हालिया वर्षों दिनों में भाजपा की कोई बड़ी सभा या शक्ति प्रर्दशन नहीं
ध्यान रहे कि हालिया वर्षो में भाजपा की ओर से कोई बड़ी सभा या शक्ति प्रर्दशन नहीं किया गया है. हालांकि झारखंड में उसके कुल 11 सांसद है, यदि आजसू को भी इस गठबंधन का हिस्सा माने तो उनके सांसदों की संख्या 12 हो जाती है. लेकिन इसके साथ इस सच्चाई को भी स्वीकार करना होगा कि यह वह दौर था, जब देश की राजनीति में पीएम नरेन्द्र मोदी का जादू बोल रहा था, अब उस जादू में उतार को खुली आंखों से देखा जा रहा है. उनका जादू या तो खत्म हो चुका है, या उसके क्षरण की शुरुआत हो चुकी है.
प्रदेश भाजपा में आपसी गुटबाजी की चर्चा
लेकिन बड़ा सवाल इस शक्ति के उपयोग का है. जानकारों का मानना है कि उपर से अविभाजित और एकजूट दिखने वाली भाजपा संगठन में काफी मतभेद है, संगठन के अन्दर एक साथ कई गुट काम कर रहे हैं. हर गुट की कोशिश जमीन पर दिखने के बजाय दिल्ली दरबार में अपना चेहरा दिखलाने की है.
इस परिस्थिति में तीन लाख कार्यकर्ताओं की भारी भरकम भीड़ जुटाने के दावे पर संदेह किया जाने लगा है. और यह आकलन सिर्फ कांग्रेस और झामुमो जैसे विरोधी दलों का ही नहीं है, बल्कि भाजपा की राजनीति को बेहद नजदीक के देखने वाले जानकारों को भी इस दावे पर अविश्वास जता रहे है. ऐसा भी नहीं है कि भाजपा यह काम कर नहीं सकती है, उसकी सामर्थ्य और सांगठनिक क्षमता पर किसी को अविश्वास नहीं है, यहां सवाल भाजपा के अन्दर की गुटबाजी का है.
इसी गुटबाजी के कारण 2019 में मिली थी हार
याद रहे कि इसी गुटबाजी के कारण ही 2019 में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन हार के बाद यह गुटबाजी कम होने के बजाय और भी बढ़ी है. इसके साथ ही भाजपा के द्वारा जिन मुद्दों को लेकर राजनीति की जा रही है, वे मुद्दे इस प्रदेश के आदिवासी-मूलवासियो के हितों के साथ खड़ा नहीं दिखता. 1932 का खतियान, सरना धर्म कोड, पिछड़ों को आरक्षण, आदिवासी भाषाओं का सवाल जैसे कई मुद्दे हैं, जहां भाजपा की नीतियां आदिवासी मूलवासियों के भावनाओं से दूर जाती दिखती है. भाजपा ने ना तो कभी भी पूरी स्पष्टता के साथ 1932 के खतियान का समर्थन नहीं किया और ना ही उसके द्वारा सरना धर्म कोड और स्थानीय भाषाओं का समर्थन किया गया.
केवल साम्प्रदायिक धुर्वीकरण आसरे सत्ता पाना मुश्किल
साफ है कि किसी भी राज्य की राजनीति वहां से स्थानीय मुद्दों और जनभावनों को केंद्र में रख कर की जाती है, लेकिन इन मुद्दों से इतर उसकी कोशिश साम्प्रदायिक धुर्वीकरण से सत्ता पाने की है. यही कारण है कि उसके द्वारा डीजे को मुद्दा बनाया जाता है. अब कोई भी यह समझ सकता है कि ये मुद्दे कुछ पल किसी को उतेजित तो कर सकता है, लेकिन ये मुद्दे 1932 का खतियान, सरना धर्म कोड, पिछड़ों को आरक्षण, आदिवासी भाषा का विकल्प नहीं हो सकता.
तीन लाख कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटाने का दावा
भाजपा का दावा है कि 11 अप्रैल को उसके तीन लाख कार्यकर्ता सचिवालय का घेराव कर राज्य से हेमंत सरकार को हटाने का शंखनाद करेंगे. इसके लिए एक स्पेशल ट्रेन चलाये जाने की भी खबर आयी है.
अब इसी ट्रेन को लेकर राजनीति की शुरुआत हो चुकी है. कांग्रेस झामुमो की ओर से इस ट्रेन पर निशाना साधा जा रहा है, कल ही झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्च ने कहा था कि चार हजार लोगों की भीड़ जुटाने के लिए स्पेशल ट्रेन चलाने के बजाय बेहतर होता भाजपा शालिमार बाजार में अपनी सभा आयोजित कर लेती, क्योंकि जितने लोगों को ट्रेनों में लाद लाद कर लाने के दावे किये जा रह हैं, उससे ज्यादा भीड़ तो शालिमार बाजार में जुटती है. यदि ठेला-फोकचा वालों को ही एकत्रित कर लिया जाता तो उनका आक्रोश रैली सफल हो जाता.
कांग्रेस का तंज
इधर सचिवालय घेराव पर निशाना साधते हुए कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता राकेश सिन्हा ने कहा है कि यह कार्यक्रम आज तक ही सफल है, कल यह अपना दम तोड़ देगा. डॉलर के मुकाबले रुपया पूरी तरह से धराशायी है. कभी 609वें स्थान पर खड़ा अडाणी की गिनती भाजपा के शासन काल में ही दुनिया के सबसे अमीर लोगों में होने लगी थी. यही है भाजपा का विकास. जिस प्रकार अंग्रेजों ने फूट डालो राज करो की नीति के सहारे हिन्दुस्तान पर राज किया था, आज भाजपा भी उसी रास्ते पर चल पड़ी है. उसकी राजनीति का सरोकार आम झारखंडियों से नहीं है, वह तो बस हिन्दू मुसलमान के विभाजनकारी रास्ते पर चलकर सत्ता हथियाना चाहती है.