TNPDESK-एक लम्बे इंतजार के बाद आखिरकार दिल्ली में इंडिया गठबंधन की बैठक खत्म हो गयी, इस बैठक की मुख्य उपलब्धियां क्या रही, इसको लेकर अभी अलग-अलग आकलन का दौर जारी है. लेकिन मुख्य रुप से जिस दो मुद्दों पर लोगों की नजर जमी हुई थी, उसमें से एक था सीट शेयरिंग का विवाद और दूसरा संयोजक और पीएम फेस का सवाल. लेकिन इस बैठक में संयोजक पद के लिए कोई चर्चा नहीं हुई. हालांकि पीएम फेस के रुप में ममता बनर्जी की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष मलिल्कार्जून खड़गे के नाम का एक प्रस्ताव जरुर आया, लेकिन कोई अंतिम सहमति नहीं बन सकी. और खुद मलिल्कार्जून ने इस प्रस्ताव को यह कहकर स्थगित करने की कोशिश की इसका फैसला चुनाव परिणाम के बाद किया जायेगा.
10 दिनों को अंदर खोजा जाना है सीट शेयरिंग का विवाद
या फिर यों कहें कि एक रणनीति के तहत फिलहाल इस मुद्दे को टाल दिया गया, लेकिन इसके साथ ही सीट शेयरिंग के मुद्दे को 10 दिनों को अंदर स्थानीय स्तर पर सुलझाने की बात कही गयी है, राज्यों के स्तर पर स्थानीय क्षत्रपों के साथ मिल-बैठ कर इसका समाधान किया जायेगा. दावा किया गया कि जहां जरुरत महसूस होगी इंडिया गठबंधन के शीर्ष नेताओं का इसमें सहयोग लिया जा सकता है.
लेकिन मूल सवाल यही है कि क्या सीट शेयरिंग का यह विवाद इतनी आसानी से हल होने जा रहा है. क्या स्थानीय क्षत्रप इतनी आसानी से कांग्रेस के लिए स्पेस देने को तैयार होंगे, खुद भाजपा का चाणक्य माने जाने वाला अमित शाह की आशा का केन्द्र बिन्दू भी यही है, उनका दावा है कि यूपी बंगाल में अखिलेश और ममता किसी भी कीमत पर कांग्रेस को स्पेस को रजामंद नहीं होंगे. बंगाल से लेकर यूपी-बिहार-झारखंड तक यह कांटा फंसने वाला है.
वर्ष 2019 में क्या थी सीटों का समीकरण
यदि हम झारखंड के संदर्भ में इस चुनौती को समझने की कोशिश करें तो यह याद रखना होगा कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद, कांग्रेस, जेवीएम और झामुमो एक साथ अखाड़े मे उतरी थी. और तब कांग्रेस-7, जेवीएम-2, जेएमएम-4 और राजद-1 सीटों पर मैदान में थी, लेकिन चुनाव में जेवीएम और राजद का तो खाता भी नहीं खुला था, जबकि कांग्रेस 7 सीट से लड़कर 1 और जेएमएम 4 सीट से लड़कर एक पर जीत हासिल करने में सफल हुई थी. अब यदि हम इन आंकड़ों को विश्लेषण करने की कोशिश करें तो निश्चित रुप से जेएमएम का स्ट्राईक रेट कांग्रेस की तुलना में बेहतर नजर आता है, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जेएमएम मोदी की उस आंधी में अपनी दूमका सीट भी गंवा बैठी थी.
2019 का सहयोगी झारखंड विकास मोर्चा अब भाजपा में हो चुका समाहित
दूसरा बदलाव यह आया है कि दो सीटों पर सीफर सीट लाने वाली बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा आज भाजपा का हिस्सा बन चुकी है. जबकि इंडिया गठबंधन का एक मजबूत घटक जदयू हर दिन झारखंड में अपनी सियासी जमीन को टटोलने की कोशिश में जुटा है. उसके नेताओं का दावा है कि इस बार उसकी भी हिस्सेदारी झारखंड में होगी.
हालांकि झारखंड विकास मोर्चा की सीटों को जदयू को देकर इस विवाद का समाधान किया जा सकता है, लेकिन क्या यह इतना आसान है. यदि आप घटक दल के नेताओं से बात करने की कोशिश करें तो हर कोई एक सूर से यह दावा करता नजर आयेगा कि जब आपस में बैठेंगे तो इसका समाधान निकल जायेगा, लेकिन यदि यह विवाद इतना ही आसान था तो तीन महीनों से अब तक इस विवाद का खात्मा क्यों नहीं हो रहा?
कांग्रेस का पर कतरने की तैयारी में झामुमो
दरअसल खबर यह है कि इस बार जदयू की इंट्री के बाद जेएमएम कांग्रेस के हिस्से की सीटों में कटौती का प्लान तैयार कर रही है, जबकि राजद तब की दो सीटों से आगे जाकर चार सीट पर अपनी दावेदारी पेश कर रही है, राजद की नजर पलामू, चतरा, कोडरमा और गोड्डा संसदीय सीटों पर है, तो जदयू रांची, हजारीबाग और गिरिडीह सीट पर अपनी दावेदारी पेश कर रही है. इस प्रकार देखें तो राजद चार और जदयू तीन के साथ यह आंकड़ा सात तक पहुंच जाता है, दूसरी तरह झामुमो भी इस बार कम से कम सात सीटों पर चुनाव लड़ने का इरादा पाल रही है, इस हालत में बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस के हिस्सा क्या आयेगा? जबकि आज भी सरकार में हिस्सा है, और यदि दिल्ली में सरकार बननी है तो चेहरा भी उसी का होना है.