रांची(RANCHI)- भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गिरिडीह के झंडा मैदान से हेमंत सरकार को अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार का तमगा दिया है. हेमंत सरकार पर मुसलामानों का तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए जेपी नड्डा ने दावा किया है कि पूरे राज्य में आदिवासियों का धर्मातंरण करवाया जा रहा है, उन्हे सनातन धर्म से दूर किया जा रहा है. पूरे राज्य में लूट की मची हुई है, राज्य में अब तक का सबसे बड़ा जमीन घोटला हुआ है. लेकिन जेपी नड्डा की इस सभा को उसके सहयोगी आजसू के लिए ही खतरे की घंटी बताई जा रही है. दावा किया जा रहा है कि जैसे-जैसे 2024 का समर नजदीक आता जा रहा है, आजसू और भाजपा के रिश्तों में दरार देखी जाने लगी है. जेपी नड्डा के गिरिडीह दौरे को भी इसी रंजिश का नतीजा माना जा रहा है.
रघुवर दास की गलती को दुहराने की तैयारी में जेपी नड्डा
जेपी नड्डा इस बार फिर से ऱधुवर दास की उसी गलती को दुहराने की तैयारी में हैं, जिसके कारण झारखंड में भाजपा का बंटाधार हुआ था. उनकी नजर गिरिडीह संसदीय सीट पर है, वह यहां से भाजपा प्रत्याशी को उतारने की तैयारी कर रहे हैं, यह रैली भी उसी का ही एक हिस्सा है.
सभी 14 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की तैयारी में भाजपा
अन्दरखाने चर्चा इस बात की है कि भाजपा की कोशिश इस बार झारखंड की सभी 14 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारने की है. इस खबर को सामने आते ही आजसू खेमे के अन्दर भी गतिविधियां तेज हो गयी है. ध्यान रहे कि 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने आजसू के साथ मिलकर 13 सीटों पर चुनाव लड़ा था, तब भाजपा को 11 सीटों पर विजय मिली थी, जबकि गिरिडीह संसदीय सीट पर आजसू के चन्द्रप्रकाश चौधरी ने परचम लहराया था. महागठबंधन के हिस्से महज दो सीटें आयी थी.
आजसू से अलग होते ही भाजपा के मतों में आयी थी 18 फीसदी गिरावट
लेकिन उसके बाद हुए विधान सभा चुनाव में आजसू भाजपा ने अलग-अलग राह पकड़ लिया. पूर्व सीएम रघुवर दास को आजसू एक बोझ नजर आने लगा, वैसे भी तब भाजपा की यह सोच बनी थी कि क्षेत्रीय दल देश पर बोझ हैं. क्षेत्रीय दलों के कारण देश को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है, भाजपा की ओर से दबे जुबान क्षेत्रीय पार्टियों को समाप्त करने की बात भी की जा रही थी. भाजपा इस सोच के बाद शिव सेना, जदयू और दूसरे कई क्षेत्रीय दलों से उसके रिश्ते खराब होते चले गयें. लेकिन चुनाव परिणाम ने यह साबित कर दिया कि क्षेत्रीय दलों का राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका है.
कोयरी-कुर्मी और दलित मतदाताओं ने भाजपा से बनायी दूरी
आजसू के अलग होते ही भाजपा के मतों में करीबन 18 फीसदी कमी देखी गयी और 65 पार का नारा जमींदोज हो गया. आजसू के अलग होते ही कोयरी-कुर्मी मतदाताओं ने भाजपा से दूरी बना ली थी, इस प्रकार वोटों के इस विखराव से राज्य में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन की वापसी हुई थी.
खबरों के अनुसार जेपी नड्डा के नेतृत्व में भाजपा एक बार फिर से वही गलती दुहराने जा रही है, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि आज उसे आजसू की पहले से ज्यादा जरुरत है, और वर्तमान राजनीतिक हालात में जब पीएम मोदी को जादू दम तोड़ता नजर आने लगा है, आजसू एक सीट पर समझौता करेगी यह भी मुमकिन नजर नहीं आता