TNP DESK- देश की निगाहें आज दो महत्वपूर्ण बैठकों की ओर लगी हुई है, एक महाबैठक राजधानी दिल्ली से दूर आईटी हब माने बेंगलुरु में हो रही है, जहां देश के तमाम विपक्षी दलों का जमघट लगा हुआ है, राजनीति के नामचीन धुरंधर वर्तमान राजनीति की दशा और दिशा को बदलने की कवायद में लगे हैं, इन सभी राजनेताओं का अपने-अपने राज्यों की राजनीति में अहम किरदार और बड़ जनाधार है. बात चाहे ममता बनर्जी की हो या नीतीश कुमार की, या फिर हेमंत सोरेन की या अखिलेश की, पिछले नौ वर्षों की केन्द्रीय राजनीति में मोदी उभार के बावजूद इन चेहरों ने राष्ट्रीय राजनीति में अपना चेहरा ओझल नहीं होने दिया, और तमाम आंधियों के बावजूद अपने बुते सत्ता के केन्द्र में बने रहें और मुख्य विपक्ष की भूमिका में रहें.
मोदी के चेहरे के सहारे चुनाव दर चुनाव जितने का दावा करती भाजपा को अब क्षत्रपों के सहारे की जरुरत
वहीं राजधानी दिल्ली में भी एक बैठक चल रही है, और वह भाजपा जो इस बात का अहंकार पालती थी कि उसके पास मोदी को चेहरा है, और उसे इसके अलावे उसे किसी और चेहरे की कोई जरुरत नहीं है. अहंकार इस स्तर तक जा पहुंचा था कि खुद जेपी नड्डा इस बात की घोषणा कर रहे थें कि ये क्षेत्रीय देश पर एक भार हैं, और धीरे धीरे हम क्षेत्रीय दल विमुक्त भारत की ओर अपना कदम बढ़ायेंगे. लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जमीन खिसकता देख वही भाजपा अब उन दलों को भी आंमत्रित करने को बाध्य हो रही है, जिनका वजूद दो चार विधानसभा क्षेत्रों के आगे नहीं दिखता, उपेन्द्र कुशवाहा से लेकर पशुपतिनाथ और राजभर की स्थिति कमोवेश यही है. इन दलों के पास कोई बड़ा जनाधार नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि आज की भाजपा को एक एक सीटों के संघर्ष करना पड़ रहा है और उसके लिए डूबते को तिनका का सहारा वाली स्थिति सामने आ खड़ी हो गयी है. यही कारण है कि अब अधिक से अधिक दलों को अपने साथ खड़ा दिखलाकर एक मजबूत भाजपा का हौवा खड़ा करने की तैयारी की जा रही है.
स्पष्ट जनादेश अभाव में बड़ा हो सकता है इनका किरदार
लेकिन इन दोनों घटकों से अलग भी कई दल आज 2024 की राजनीति का जायजा लेते नजर आ रहे हैं. उनकी निगाहें इन दोनों बैठकों पर टिकी हुई है, और वह किसी भी वक्त किसी करवट बैठ सकते हैं, यदि 2024 में किसी भी गठबंधन को स्पष्ट जनादेश नहीं मिलता है, तो राष्ट्रीय राजनीति के ये केन्द्र बिन्दु बन कर सामने आ सकते हैं. और इनके ही रहमोकरम पर दिल्ली की सत्ता निर्भर करेगी.
ईडी सीबीआई का खौफ गुजरने का इंतजार
तेलांगना के सीएम चन्द्रशेखर राव, आन्ध्रप्रेदश के सीएम जगन मोहन रेड्डी,ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक और चन्द्र बाबू नायडू की गिनती इन्ही क्षत्रपों में की जा सकती है, हालांकि माना यह भी जा रहा है कि 2024 की रणभेरी बजते ही इन क्षत्रपों के सिर से ईडी और सीबीआई का खौफ बहुत हद तक गुजर चुका होगा, और इनके अन्दर की हिचकिचाहट दूर हो चुकी होगी, लेकिन फिलवक्त ये दल दोनों ही किनारों से समान दूरी बना कर बदलती राजनीतिक परिस्थितियों का आकलन में जुटे हैं.