टीएनपी डेस्क(TNP DESK)- कानून मंत्री के रुप में कॉलेजियम सिस्टम को लगातार अपारदर्शी और अलोकतांत्रिक बताने वाले कानून मंत्री किरेन रिजिजू की कानून मंत्रालय से छुट्टी कर दी गयी है, उनके जगह यह जिम्मेवारी अब अर्जुन राम मेघवाल को सौंपी गयी है. किरेन रिजिजू को अब पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की जिम्मेवारी सौंपी गयी है.
ध्यान रहे कि कानून मंत्री किरेन रिजिजू कॉलेजियम सिस्टम को लेकर लगातार हमलावर थें, वह इस सिस्टम को अलोकतांत्रिक और संविधान की मूलभूत भावना के खिलाफ बता रहे थें. उनके बयानों से मोदी सरकार और न्यायपालिका में टकराव की स्थिति बनती जा रही है, किरेन रिजिजू के बयानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक रिट पिटिशन भी दायर किया गया था, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उस रिट पिटीशन को खारीज कर दिया था. लेकिन अब लगता है कि सरकार न्यायपालिका से टकराव की इस स्थिति का समाधान चाहती है, शायद यही कारण है कि किरेन रिजिजू को कानून मंत्रालय से हटाकर न्यायापालिका को संदेश देने की कोशिश की गयी है.
क्या है कॉलेजियम सिस्टम
यहां बता दें कि कॉलेजियम सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के माध्यम से विकसित एक प्रणाली है, जो न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण से संबंध रखती है. भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 सर्वोच्च और उच्च न्यायालय में क्रमशः न्यायाधीशों की नियुक्ति से सम्बद्ध हैं लेकिन इसके विरोधियों का आरोप है कि इस सिस्टम से न्याय़ाधीशों की नियुक्ति में भाई भतीजा वाद का चलन चलता है और कुछ चुनिंदा घराने से जुड़े लोगों की ही अनुशंसा न्यायाधीश पद के लिए की जाती है. और यही कारण है कि देश की सर्वोच्च अदालत सामाजिक न्याय की अवधारणा के कार्यकरता हुआ दिखलाई नहीं देता. आज भी देश की बड़ी आबादी दलित पिछड़े और दूसरे वंचित समुदायों का यहां समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है. किरेन रिजिजू इसकी ही वकालत कर रहे हैं.
कॉलेजियम के बहाने न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकारी हस्तक्षेप की कोशिश
जबकि इसके विपरीत कुछ लोगों का तर्क है कि किरेन रिजिजू की कोशिश न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार का अपर हैंड कायम करने की है, न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार के हस्तक्षेप से न्यायापालिका की स्वतंत्रता प्रभावित होगी.
न्यायिक नियुक्ति आयोग?
लेकिन इस बीच यहां भी ध्यान रखने की जरुरत है कि मोदी सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए वर्ष 2014 में संविधान में 99वें संशोधन के जरिये न्यायिक नियुक्ति आयोग का प्रस्ताव दिया था. इसमें सीजेआई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जजों के साथ केंद्रीय कानून मंत्री और सिविल सोसाइटी के दो लोगों को शामिल किये जाने का प्रस्ताव था, मनोनीत दो सदस्यों में से एक को सीजेआई, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता की ओर से सदस्य बनाया जाएगा. वहीं, दूसरा मनोनीत सदस्य एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक समुदाय से या महिला होगी. लेकिन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एनजेएसी को अवैध घोषित कर दिया, जिसके बाद सरकार और न्यायापालिका के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई थी और किरेन रिजिजू लगातार आक्रमक अंदाज में बयान दे रहे थें.