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‘पॉलिटिक्स का चिराग’, कहीं इस बार फिर से इफ्तार पार्टी के साथ शुरु नहीं हो जाय एक नयी राजनीतिक शुरुआत

‘पॉलिटिक्स का चिराग’, कहीं इस बार फिर से इफ्तार पार्टी के साथ शुरु नहीं हो जाय एक नयी राजनीतिक शुरुआत

पटना-(Patna)  बिहार की राजनीति को देश में सबसे उलझी राजनीति मानी जाती है, यहां राजनीति वह नहीं होती, जिसका बखान राजनीतिक रैलियों में किया जाता है, यहां की राजनीति फल्गु नदी की तरह अंत: सलिला बहती है, बिहार की मिट्टी से दूर खड़े होकर बिहारी राजनीति की विवेचना करने वाले अक्सर यहां चुक जाते हैं. यह बिहार है, यहां बात प्रतीकों में की जाती है, शब्दों के साथ भाव भंगिमा पर भी नजर रखनी पड़ती है.

बिहार की इस अंत: सलिला राजनीति पर बनी हुई है विश्लेषको की नजर

बिहार की इस अंत: सलिला राजनीति पर नजर रखने वालों की नजर इस बार राबड़ी आवास पर सजने वाली इफ्तार पार्टी पर लगी हुई है. क्योंकि पिछले वर्ष ही इसी इफ्तार पार्टी से बिहार की एक सरकार चली गयी थी, बल्कि यह कहें की सरकार तो चलती रही, लेकिन उसके सवार बदल दिये गये और कानों कान किसको को इसकी भनक तक नहीं लगी.

बिहार के चिराग” और “मोदी के हनुमान”

बता दें कि यह पूरी कहानी “बिहार के चिराग” और “मोदी के हनुमान” को लेकर की जा रही है. दरअसल चिराग पासवान की राजनीति खुद भाजपा के लिए भी एक पहेली बनती जा रही है. जब से भाजपा ने सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंपी है, चिराग और उपेन्द्र कुशवाहा की दूरियां भाजपा से बढ़ने से संकेत मिलने लगे है, और इस आग में घी अमित शाह के उस बयान ने भी डाला गया है, जिसमें दावा किया गया है कि भाजपा सभी चालीस सीटों पर चुनाव लड़ेगी और जीत भी हासिल करेगी.

सीएम फेस की लड़ाई

माना जाता है कि इसके बाद चिराग सहित उपेन्द्र कुशवाहा के सामने विकट स्थिति पैदा हो गयी है, इन दोनों का ही सपना था कि भाजपा इन्हे बिहार का सीएम फेस के रुप में सामने कर चुनावी मैदान में उतरेगी. लेकिन सम्राट चौधरी के  राजनीतिक अभिषेक इन दोनों को गहरा राजनीतिक सदमा लगा है.

राबड़ी आवास में आयोजित होने वाले इफ्तार पार्टी पर लगी है सबकी नजर

यही कारण है कि राबड़ी आवास में आयोजित होने वाले इस बार की इफ्तार पार्टी में चिराग पासवान के द्वार शामिल होने की सहमति से ही राजनीतिक कयासों की शुरुआत हो गयी. यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि जब पूरा भाजपा इस इफ्तार पार्टी का विरोध कर रही है, इसे हिन्दूओं का अपमान बता रही है, उसका दावा है कि रामनवमी हिंसा में हिन्दूओं के साथ ज्यादती हुई है, हिंसा और भय के इस दौर में इफ्तार पार्टी का आयोजन सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति है. लेकिन सवाल यह है कि भाजपा की इस राय से हटकर चिराग पासवान ने इफ्तार पार्टी में शामिल होने की सहमति क्यों दी?

नीतीश विरोध पर टिकी है चिराग की राजनीति

यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है, कि चिराग पासवान की पिछले कुछ दिनों की राजनीति नीतीश विरोध पर टिकी हुई है, लेकिन चिराग पासवान उसी सरकार के सबसे बड़े संबल या पार्टनर राजद के दरबार में हाजिरी लगाने से परहेज नहीं करते. यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जिस लालू यादव को भाजपा जंगलराज का जनक बताती है, कथित जंगल राज का ढिंढोरा पिटती है, चिराग उसी राबड़ी दरबार में सेवई-खजूर का आनन्द लेने जा रहे हैं, और लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि चिराग का राबड़ी दरबार में सेवई-खजूर का यह   रसास्वादन भाजपा को तीखा तो नहीं लग रहा.  

Published at:09 Apr 2023 06:00 PM (IST)
Tags:Chirag paswan bihar Politics of bihar Rabari darwar Iftar party Iftar party in Rabari awas
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