Ranchi-आखिरकार सियासी गलियारे में चल रही अटकलबाजियों पर विराम लग गया, पूर्व सीएम हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन ने सक्रिय राजनीति में उतरने का विधिवत एलान कर दिया है, अपने सोशल मीडिया एकाउंट इसकी घोषणा करते हुए कल्पना ने “आज (3 मार्च को) अपने जन्मदिन और कल यानि सोमवार को गिरिडीह में झामुमो के स्थापना दिवस कार्यक्रम में शामिल होने से पहले रविवार को झारखंड राज्य के निर्माता और झामुमो के अध्यक्ष बाबा दिशोम गुरुजी और मां से आशीर्वाद लिया। आज ही सुबह हेमंत जी से भी मुलाकात की. मेरे पिता भारतीय सेना में थे। वह सेना से रिटायर हो चुके हैं। पिताजी ने सेना में रहकर देश के दुश्मनों का डटकर सामना किया। बचपन से ही उन्होंने मुझ में बिना डरे सच के लिए संघर्ष करना और लड़ना भी सिखाया। झारखंडवासियों और झामुमो परिवार के असंख्य कर्मठ कार्यकर्ताओं की मांग पर कल से मैं सार्वजनिक जीवन की शुरुआत कर रही हूं। जब तक हेमंत जी हम सभी के बीच नहीं आ जाते, तब तक मैं उनकी आवाज बनकर आप सभी के बीच उनके विचारों को आपसे साझा करती रहूंगी, आपकी सेवा करती रहूंगी।“ इसके साथ ही #झारखंड झुकेगा नहीं का टैग लगाते हुए लिखा है कि “विश्वास है, जैसा स्नेह और आशीर्वाद आपने अपने बेटे और भाई हेमंत जी को दिया है, वैसा ही स्नेह और आशीर्वाद, मुझे यानी हेमंत जी की जीवन संगिनी को भी देंगे”
लम्बे समय से कल्पना की सियासी इंट्री की हो रही चर्चा
यहां याद रहे कि कल्पना सोरेन की सियासी इंट्री को लेकर सियासी गलियारे में काफी दिनों से कयासबाजियों का बाजार गर्म था, जब गांडेय विधान सभा सीट से कांग्रेस विधायक सरफराज अहमद ने इस्तीफा दिया था, तब भी इस सीट से कल्पना सोरेन के चुनाव लड़ने की खबर सामने आयी थी, फिर इसके बाद जब भुईंहरी जमीन मामले में हेमंत की गिरफ्तारी हुई, तब उस समय भी इस बात की चर्चा तेज थी कि राज्य की कमान कल्पना सोरेन के हाथ में आने जा रही है, लेकिन अन्ततोगत्वा सत्ता की बागडोर दिशोम गुरु के पुराने और वफादार सहयोगी चंपाई सोरेन के हाथ आयी. तब दावा किया गया था कि कल्पना को लेकर सोरेन परिवार में ही विरोध की स्थिति थी. बसंत सोरेन से लेकर सीता सोरेन तक कल्पना के हाथ में सीएम की कुर्सी देने को राजी नहीं है, दावा यह भी किया गया था कि खुद दिशोम गुरु कल्पना के बजाय राज्य की बागडोर बसंत सोरेन के हाथ सौंपने के पक्षधर है, लेकिन ये इन तमाम दावों महज अफवाह साबित हुए, क्योंकि चंपाई सोरेन की ताजपोशी ने साफ कर दिया कि सोरेन परिवार के अंदर सीएम कुर्सी को लेकर कोई संघर्ष की स्थिति नहीं थी, यह सारे दावे महज भाजपा का ख्याली पुलाव थें, क्योंकि ना तो बसंत सोरेन की ताजपोशी हुई और ना ही उन्हे उपमुख्यत्री की कुर्सी सौंपी गयी. जिस सीता सोरेन को लेकर बगावत के दावे किये जा रहे थें, वह सीता सोरेन भी इस सियासी संकट में पूरी ताकत के साथ अपने परिवार के साथ खडी नजर आयी, और बड़ी बात यह रही कि इस संकट की घड़ी में कल्पना सोरेन पूरे सौहादर्य के साथ पूरे परिवार को एकजूट करती नजर आयी. पूरे परिवार में कहीं से भी कोई कटुता नहीं देखी गयी, और आज सारे फैसले खुद चंपाई सोरेन लेते दिख रहे हैं.
कल्पना की चाहत या सोरेन परिवार की सियासी रणनीति
लेकिन अब खुद कल्पना सोरेन ने सियासी दंगल में उतरने का एलान कर दिया है, और इसके बाद सवाल खड़ा होता है कि यह कल्पना की चाहत है, या फिर सोरेन परिवार की सियासी रणनीति. क्या कल्पना की इस सियासी इंट्री के पीछे दिशोम गुरु और हेमंत की सोची समझी रणनीति है. क्या सोरेन परिवार यह मान कर चल रहा है कि हेमंत की गिरफ्तारी के बाद आदिवासी मूलवासी समाज में जो सहानुभूति की लहर है, उस सहानुभूति की लहर को वोट में रुपांतन्तित करने की क्षमता सिर्फ कल्पना के पास है. और रणनीति यह भी है कि एक तरफ चंपाई सोरेन राज्य में सरकार का चेहरा होंगे, तो दूसरी तरफ कल्पना झामुमो की चेहरा होंगी.
आधी आबादी के साथ ही आदिवासी मूलवासियों के बीच कहर ढा सकता है कल्पना का चेहरा
यहां यह भी बता दें कि कल्पना की सियासी इंट्री के पहले ही सियासी जानकारों का यह दावा था कि यदि कल्पना झामुमो की चेहरा बनती है, और पूरे राज्य में घूम घूम कर आदिवासी-मूलवासी मतदाताओं के साथ ही राज्य की आधी आबादी के सामने इस बात को रखती है कि हेमंत की गिरफ्तारी की मूल वजह किसी जमीन का घोटला नहीं, बल्कि भाजपा की आदिवासी मूलवासी विरोधी नीतियों के सामने खडा होना है, जल जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ना है, तो यह बात आदिवासी मूलवासी मतदाताओं के बीच गहरी पैठ बना सकती है, इसके साथ ही कल्पना का राज्य की आधी आबादी के साथ ही युवाओं के बीच भी एक मजबूत चेहरा हो सकती है, अब जबकि कल्पना की सियासी इंट्री की घोषणा हो चुकी है, यह भी साफ हो गया है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में अब कल्पना झामुमो की स्टार प्रचारक बनने जा रही है, और इसके साथ ही भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ने वाली है, एक तरफ हेमंत की गिरफ्तारी के कारण झारखंड की एक बड़ी आबादी में पसरता सामाजिक विक्षोभ और दूसरी तरफ कल्पना का रौद्र रुप भाजपा की राह में कंटीले तार बिछा सकता है.