Patna-रविशंकर, सुशील कुमार मोदी और लालू यादव को साथ ही जेपी मुवमेंट से सियासी सफर की शुरुआत करने वाले सीएम नीतीश के बाल सखा और उनके सियासी जीवन का सबसे बड़ा संकटमोचक रहे ललन सिंह इन दिनों तमाम मीडिया और अखबारों के सुर्खियों में है. सीएम नीतीश के साथ उनके मनमुटाव की खबरें परोसी जा रही है, दावा किया जा रहा है कि ललन सिंह भी आरसीपी सिंह की राह पर चल चुके हैं. ललन सिंह ने भी पार्टी तोड़ने की जुगत लगायी थी, हालांकि समय रहते यह खबर सीएम नीतीश तक पहुंच गयी और जदयू को तोड़ने का यह कुचक्र अपनी हसरतों तक पहुंचने के पहले ही दम तोड़ गया.
विधायकों के साथ बैठक कर पार्टी तोड़ने की साजिश का आरोप
दावा यह भी है कि पटना के एक होटल में जदयू के करीबन 14 विधायकों की एक गुप्त बैठक हुई थी, जिसमें दूसरे विधायकों के साथ ही ललन सिंह और नीतीश के दूसरे सबसे भरोसेमंद सिपहसलार और पिछले करीबन एक दशक से उर्जा मंत्री का दायित्व संभाल रहे विजेन्द्र प्रसाद यादव की मौजदूगी भी थी. दावा किया जाता है कि सीएम नीतीश के विरुद्ध रचे जा रहे इस सियासी कूचक्र का एन वक्त पर विजेन्द्र प्रसाद यादव ने हवा निकाल दी, और इसके बाद ही ललन सिंह की कुर्सी पर संकट के बादल मंडराने लगे.
हर सियासी भंवर में नीतीश के साथ खड़े नजर आये ललन सिंह
लेकिन यह थ्योरी जितनी सरल लगती है, उतनी है नहीं, क्योंकि यदि हम ललन सिंह का अतीत को खंगालने की कोशिश करें तो ललन सिंह ने भले ही कभी नीतीश के पेट का दांत निकालने की धमकी दी हो, लेकिन इस वाकये को छोड़ कर ललन सिंह हर उस विपदा में नीतीश के साथ खड़े रहें जो उनके राजनीतिक सर्वाइवल के बेहद जरुरी था. ललन सिंह और नीतीश की इस दोस्ती और एक दूसरे पर प्रगाढ़ विश्वास को इससे भी समझा जा सकता है कि 2010 के विधान सभा का वह दौर जब ललन सिंह जदयू का दामन छोड़ कर कांग्रेस के लिए प्रचार की कमान संभाल रहे थें और चुन-चुन कर सीएम नीतीश पर निशाना साध रहे थें, तब भी नीतीश ने इसका प्रतिकार करने के बजाय खामोशी की चादर ओढ़ ली थी, वह सिर्फ इतना ही कहते थें कि उन्हे किसने निकाला है, जदयू तो उन्ही का है, वह जब चाहें जदयू के दरवाजे उनके लिए खुले हैं, और एक साल भी नहीं बिता की ललन सिंह एक बार फिर से सीएम नीतीश के साथ खड़े थें.
इस एक वाकये से समझा जा सकता है कि ललन सिंह के प्रति सीएम नीतीश के दिल में क्या जगह है, जब जब भी नीतीश कुमार राजनीतिक भंवर में फंसते दिखे वह चेहरा कोई दूसरा नहीं था, जिसने उस सियासी भंवर के बीच से नीतीश को सुरक्षित निकाला.
जब लोजपा के 22 विधायकों को एक साथ तोड़कर ललन सिंह ने मनवाया था अपनी रणनीति का लोहा
इसकी एक झलक 2005 के विधान सभा के दौरान भी देखने को मिली थी, यह वह दौर था तब सीएम नीतीश के सामने सीएम की कुर्सी तो थी, लेकिन उसके बीच में कांटे ही कांटे थें. दरअसल 2005 का विधान सभा चुनाव नीतीश के सियासी जीवन के लिए टर्निग प्वाइंट था, फरवरी माह में विधान सभा का चुनाव हुआ था, और विधान सभा के अंदर की तस्वीर त्रिशंकु बन चुकी थी, लालू यादव का तिलिस्म दरक तो जरुर गया था, लेकिन इस त्रिशंकु विधान सभा में नीतीश के लिए कोई जगह नहीं थी.
रअसल इस विधान सभा चुनाव में राजद को 75, जदयू को 55, भाजपा को 37 सीट मिली थी, जबकि रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा के हिस्से 29 सीट आयी थी, इस प्रकार सत्ता की कूंजी रामविलास पासवान के पास शिफ्ट हो गयी थी, और इस संख्या बल पर रामविलास पासवान दावा कर रहे थें कि जब तक राजद किसी मुस्लिम चेहरे को सीएम नहीं बनाती है, वह सरकार को अपना समर्थन नहीं देंगे, रामविलास पासवान ने यहां तक कहा कि उन्होंने सत्ता की चाभी को गंगा में फेंक दिया है. इस हालत में सरकार को बनती नहीं थी, आखिरकार 2005 में ही अक्टूबर माह में एक बार फिर से विधान सभा चुनाव की घोषणा कर दी गयी. लेकिन इसके पहले बिहार का यह खांटी चाणक्य अपना खेल खेल चुका था, ललन सिंह ने तब बिहार की सियासत में भूचाल लाते हुए लोजपा के 22 विधायकों को जदयू का हिस्सा बना दिया था, और जब चुनाव परिणाम आया तो जदयू खुद अपने बूते 88 सीटों तक पहुंच गयी थी, जबकि भाजपा के हिस्से 55 सीट आयी थी. और इस चुनाव परिणाम के साथ ही बिहार की सत्ता से लालू यादव की विदाई हो गयी. लेकिन सबसे अधिक दुर्गति सत्ता की चाभी लेकर घूम रहे रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा के हिस्से में आयी, 29 सीट से वह 10 सीट तक लूढ़क चुका था और इसके बाद बिहार की राजनीति में नीतीश का सिक्का खनकने लगा. जो आज भी किसी ना किसी रुप में बरकरार है.
भाजपा के ऑपरेशन नीतीश का जवाब ऑपरेशन चिराग भी ललन सिंह का ही कमाल
लेकिन ललन सिंह के राजनीतिक कारनामें यही खत्म नहीं होते. 2020 के विधान सभा चुनाव में जब भाजपा ने एनीडए का सहयोगी रहने के बावजूद जदयू के खिलाफ अपना ऑपेरशन शुरु किया, तात्कालीन जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी को विश्वास में लेकर पार्टी तोड़ने की रणनीति अपनाई, चिराग मॉडल के सहारे ऑपेरशन नीतीश को अंजाम दिया तो अचानक से जदयू बिहार में तीसरे नम्बर की पार्टी बन गयी, और भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गयी, इसके बाद भाजपा के अंदर सत्ता के हिलोरें मारने लगा. उनके नेताओं को दिन में हसीन सपने आने लगें. नीतीश की विदाई कर राज्य सभा भेजे जाने की खबरें चलायी जाने लगी. लेकिन ललन सिंह ने एक बार फिर से अपने सियासी कौशल का नमुना पेश किया.
छह में से पांच सांसद चिराग का साथ छोड़ चाचा पारस के साथ खड़े हो गयें
जिस चिराग को आगे कर भाजपा ने ऑपरेशन नीतीश को अंजाम दिया था, ललन सिंह ने तब उसकी हवा निकाल दी, जब खुद लोजपा में ऑपेरशन ललन को अंजाम दिया गया, और यह खेल इतनी खुबसूरती से खेला गया कि चिराग अपनी पार्टी के एकलौते सांसद रह गये, उनके चाचा पशुपति पारस के नेतृत्व में पार्टी के दूसरे पांच सांसदों ने अपनी अलग पार्टी बना ली. इस ऑपरेशन की जब तक चिराग को खबर मिलती, पैर के नीचे से सियासी जमीन खिसक चुकी थी, चाचा मंत्री बन सत्ता का रसास्वाद करते रहें और इधर चिराग अपने को “मोदी का हनुमान” बताने को अभिशप्त हो गयें.
राजद के पांच एमएलसी को एक साथ तोड़ कर राजद के अरमानों पर फेरा था पानी
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ललन सिंह ने सिर्फ लोजपा को ही जब चाहा तोड़ा, याद कीजिये 2020 का वह सियासी प्रकरण जब राजद के पांच एमएलसी कमर आलम, दिलीप राय, रणविजय सिंह, राधा चरण शाह, संजय प्रसाद और बिजेंद्र ने राजद का साथ छोड़ कर जदयू का दामन थामा था, इस राजद के खिलाफ इस कू को अंजाम देने वाला कोई और नहीं यही ललन सिंह थें. और जब आरसीपी सिंह को मोहरा बना कर जदयू को सियासी रुप से ध्वस्त करने का मॉडल तैयार किया जा रहा था, जैसे ही नीतीश को इस भाजपाई ऑपरेशन की भनक लगी, तुरंत इसका काउंटर करने के लिए ललन सिंह को लगाया गया, तब ललन सिंह ने आरपीसी सिंह की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक बड़ा कूचक्र रखा, दरअसल आरसीपी सिंह को उन दिनों एक बेहतरीन रसाईये की खोज थी, और ललन सिंह ने यहीं से अपना चाल चला. आरसीपी सिंह के लिए एक रसोईया का जुगाड़ कर दिया, लेकिन वह रसोईया डीस बनाने से ज्यादा सियासी डीस का उस्ताद था, वह आरसीपी से मिलने आने वाले हर चेहरे पर नजर रखता था. और उसके माध्यम से पल पल की रिपोर्टिंग ललन सिंह को मिलती रहती थी. इसी रसोईये ने यह भेद खोला कि कैसे देर रात यहां भाजपा नेताओं की बैठक होती है, और कैसे नीतीश कुमार और जदयू को जमींदोज करने का प्लान तैयार किया जाता है. और इसी रसोईये की पुख्ता सूचना पर आरसीपी सिंह का राजनीतिक पराभव की शुरुआत होती है. जिस आरपीसी सिंह को कभी भाजपा ने आसमान तक उठा रखा था, नीतीश का साथ छोड़ते ही वह आज किस हालत में हैं कोई उनकी खोज लेने वाला भी नहीं है.
आज उसी ललन सिंह की विदाई
साफ है कि जिस ललन सिंह की विदाई की चर्चा मीडिया और अखबारों में बनायी जा रही है, वह इतना आसान नहीं है, ललन सिंह अपनी मीठी गोली से कब किसका ऑपरेशन कर दें, यह तो सामने वाले शख्स को भी पत्ता नहीं होता, और जब तक इसकी खबर मिलती है, उसकी सियासी प्राण वायू निकल चुकी होती है, इसलिए पटना के जिस होटल में नीतीश के खिलाफ कुचक्र रचने के दावे किये जा रहें हैं, जरुरी नहीं है कि ललन सिंह उसी भूमिका में वहां मौजूद हों. बहुत संभव है कि ललन सिंह को इस कुचक्र की जानकारी मिलते ही वहां पहुंचे और इस प्रकार वह ऑपेरशन की हवा निकाली गयी हो. जो भी ललन सिंह के इस्तीफे को उनके राजनीतिक अवसान से जोड़कर देखने की जल्दबाजी में हैं, ललन सिंह आज भी सीएम नीतीश के सबसे बड़े संकट मोचक है, हालांकि यह वक्त बतायेगा कि ललन सिंह का भविष्य क्या है? लेकिन इतना तय है कि ललन सिंह की चाल अभी खत्म नहीं हुई है. उनका अगला चाल क्या होगा यह तो खुद नीतीश और ललन सिंह को ही पत्ता होगा.
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