पटना(PATNA)- जातीय जनगणना का आंकड़ा जारी होते ही बिहार में सियासी सरगर्मी तेज हो चुकी है. पूर्व सीएम और राजद सुप्रीमो लालू यादव ने इन आंकड़ों के आधार पर अब तक सियासी-सामाजिक रुप से वंचित जातियों को उनका हक देने का आह्वान किया है, लालू ने कहा कि भाजपा की तमाम सियासी चालों, षडयंत्रों और तिकड़मों के बावजूद सरकार इस आंकड़ों को जारी करने में सफल रही, अब वह समय आ गया है कि जब हम जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी के नारे को जमीन पर उतारने की शुरुआत करें.
वहीं विपक्ष के द्वारा यह दावा किया जा रहा हैं कि इससे बिहार में एक बार फिर से जाति का युद्घ शुरु हो सकता है, अब हर सामाजिक-राजनीतिक सवाल को जाति के चश्में से देखे जाने की शुरुआत हो सकती है और इसका असर सरकार के कामकाज पर पड़ सकता है.
बिहार ने जाति जनगणना करवा कर देश के सामने नजीर पेश किया
जबकि विपक्ष के इस राय से अलग उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा है कि ‘कम समय में जाति आधारित सर्वे के आँकड़े एकत्रित एवं उन्हें प्रकाशित कर बिहार आज फिर एक ऐतिहासिक क्षण का गवाह बना। दशकों के संघर्ष ने एक मील का पत्थर हासिल किया। इस सर्वेक्षण ने ना सिर्फ वर्षों से लंबित जातिगत आंकड़े प्रदान किये हैं, बल्कि उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति का भी ठोस संदर्भ दिया है। अब सरकार त्वरित गति से वंचित वर्गों के समग्र विकास एवं हिस्सेदारी को इन आंकड़ों के आलोक में सुनिश्चित करेगी। इतिहास गवाह है भाजपा नेतृत्व ने विभिन्न माध्यमों से कितनी तरह इसमें रूकावट डालने की कोशिश की। बिहार ने देश के समक्ष एक नजीर पेश की है और एक लंबी लकीर खींच दी है सामाजिक और आर्थिक न्याय की मंज़िलों के लिए। आज बिहार में हुआ है कल पूरे देश में करवाने की आवाज उठेगी और वो कल बहुत दूर नही है। बिहार ने फिर देश को दिशा दिखाई है और आगे भी दिखाता रहेगा।
जदयू राजद टिकट वितरण में अतिपिछड़ों को दे सकती प्राथमिकता
तेजस्वी के बयान से साफ है कि वह भी राजद सुप्रीमो लालू यादव की तरह ही और राजनीतिक-सामाजिक सहभागिता के सवाल को उठा रहे हैं, और इसका असर आने वाले दिनों में सरकार की नीतियों और बड़े फैसलों पर देखा जा सकता है, वह अति पिछड़ी जातियां जो अब तक अपनी राजनीतिक और सामाजिक हिस्सेदारी को अपर्याप्त बता रही थी, अब उनके पास इस बात का दावा करने का ठोस आधार होगा, क्योंकि बिहार की राजनीति में अब तक कुछ सीमित जातियों का ही असर होता था, जबकि जनसंख्या में उनसे अधिक होने के बावजूद अतिपिछड़ी जातियों की भागीदारी नहीं होती थी, माना जा रहा है कि इसका असर आने वाले लोकसभा और विधान सभा चुनावों के टिकट वितरण में भी देखने को मिल सकता है, खास कर जदयू राजद अति पिछड़ी जातियों के उम्मीदवारों को अधिक मौका दे सकती है, और इसका असर यह होगा कि विधान सभा के अन्दर उनकी संख्या में बढ़ोतरी होगी.
क्या कहता का आंकड़ा
ध्यान रहे कि जातीय जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से बिहार में पिछड़े वर्ग की आबादी-27 फीसदी, अत्यंत पिछड़ों की आबादी-36 फीसदी, अनुसूचित जनजाति-1.68 और अनुसूचित जाति की आबादी-18.65 है. यदि इन आंकड़ों को हम जातिवार देखने की कोशिश करें तो यादव-14 फीसदी, ब्राह्मण-3.36, राजपूत-3.45,भूमिहार-2.86, मुसहर-3,कुर्मी-2.87, मल्लाह- 2.60, कुशवाहा- 4.21, रजक-0.83, कायस्थ-0.060 है.