Patna-अपनी जनसुराज यात्रा से बिहार की किश्मत बदलने ख्वाब लेकर निकले पूर्व चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का सामाजिक संगठन में 8 पूर्व अफसरानों के द्वारा सदस्यता ग्रहण करने की खबर आयी है. बतलाया जा रहा है कि जल्द ही कुछ और सेवानिवृत आईएएस और आईपीएस अधिकारियों का साथ भी प्रशांत किशोर को मिल सकता है.
इसके पहले भी कई पूर्व आईएएस और आईपीएस अधिकारी जनसुराज का दामन थाम चुके हैं. इसमें अजय द्विवेदी, अरविंद कुमार सिंह, ललन यादव, तुलसी हजार, सुरेश शर्मा, गोपाल नारायण सिंह, एसके पासवान और आरके मिश्रा, जितेंद्र मिश्रा और अशोक सिंह का नाम भी शामिल है.
अन्ना आन्दोलन के समय में भी इस सोच ने पकड़ी थी रफ्तार
यहां याद रहे कि अपने शानदार कैरियर की समाप्ति के बाद सामाजिक राजनीतिक संगठनों से जुड़ कर सामाजिक-राजनीतिक बदलाव का यह सपना इसके पहले भी देखा गया था. हाल कि दिनों में अन्ना आन्दोलन के समय भी इस ख्वाब ने रफ्तार पकड़ा था, लेकिन आखिरकार अफसरानों के आसरे जनबदलाव और जनसुराज का यह सुनहरा सपना दम तोड़ गया.
रिटायरमेंट के बाद पॉलिटिक्स में सेटल होने की चाहत
जानकारों का दावा है कि हर आईएएस-आईपीएस की कोशिश रिटायरमेंट के बाद किसी ना किसी फिल्ड में हाथ आजमाने की रहती है, लेकिन उनकी सबसे ज्यादा चाहत राजनीति के क्षेत्र में हाथ आजमाने की होती है, दूसरी बात यह है कि आज भी आम लोगों के बीच आईएएस-आईपीएस के प्रति एक ललक है. आईएएस-आईपीएस को बड़ी हस्ती माना जाता है. आम लोगों के बीच उनकी इसी छवि का दोहन राजनीति के धुरंधरों के द्वारा किया जाता है, इनके जुड़ने से उन्हे मुफ्त में प्रचार प्रसार भी मिल जाता है, चुनाव लड़ने के लिए फंड की चिंता भी दूर हो जाती है. क्योंकि इन अफसरों के पास फंड की कोई कमी तो होती नहीं. पूरी जिंदगी की संचित जमा पूंजी साथ में रहती है.
अफसरान नहीं, जनसुराज का रास्ता जनता के बीच से होकर गुजरता है
लेकिन जहां तक बात जनसुराज की है, तो जनसुराज का रास्ता जनता के बीच से होकर ही गुजरता है, इसका कोई विकल्प और शौर्टकट नहीं है और यह कहने में भी कोई गुरेज नहीं है, कि इन पूर्व अधिकारियों के मुददे और जनता के शिकवे के बीच बहुत बड़ी खाई है, दोनों के सपने अलग-अलग है, और सोचने का तरीका भी एक दूसरे से जूदा है. कई बार तो ये अफसरान जनता के बीच धुलने-मिलने में भी संकोच करते रहते हैं, जनता की राजनीति तो बहुत दूर की कौड़ी है. तीस वर्षों की सेवा के दौरान इनके व्यवहार में जो अकड़ पैदा हो जाती है, अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने का जो भाव पैदा हो जाता है, वह इस जन्म में छुटना मुश्किल हो जाता है. जनसुराज के नाम पर राजनीति तो की जा सकती है, लेकिन जनसुराज की राजनीति सिर्फ आम लोगों के रास्ते से होकर ही गुजरती है.