TNP DESK- संसद की नयी भवन से संसदीय मर्यादा को चार चांद नहीं लगता, संसद की गरिमा और आने वाले कल की सुनहरी और बहुलतावादी तस्वीर के लिए भाषायी मर्यादा और संवैधानिक आस्था सबसे बड़ी चीज होती है, लेकिन लगता है कि अब यह सब कुछ दिवास्वपन हो चुका है. हमारी संसद की भाषा भी सड़क छाप हो चुकी है. इंडिया गठबंधन ने जिन एंकरों पर विभाजनकारी और नफरती एंजेडा फैलाने का आरोप लगाते हुए बहिष्कार की घोषणा की है, वह तो भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी के उस बयान के सामने कहीं भी नहीं ठहरता, जो उन्होंने बसपा सांसद दानिश अली के संबोधित करते हुए कहा है.
इतनी दोयम और छिछोरी भाषा का इस्तेमाल तो सड़क पर भी करने में शर्म आती है, लेकिन यह संसद में दिया गया बयान है, आतंकवादी-उग्रवादी तक तो फिर भी ठीक था, लेकिन बात को कटूवा तक पहुंच गयी और यह स्थिति तब है, जब बात बात में सबका साथ सबका विकास का नारा उछाला जाता है और संसद की नयी भवन को आने वाले भारत की तस्वीर बतायी जाती है, लेकिन उसी संसद के अन्दर एक अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले सांसद के खिलाफ इस प्रकार की घिनोनी भाषा का इस्तेमाल कर हम देश को कहां ले जा रहे हैं.
और उससे भी हैरत की बात यह है कि जब रमेश बिधूड़ी पूरे आत्मविश्वास के साथ इस तरह की घिनौनी भाषा का इस्तेमाल कर रहे थें, तब उनके बगल में बैठ पूर्व केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन मंद मंद मुस्कान का आनन्द ले रहे थें, जैसे की सब कुछ प्रायोजित प्रहसन का हिस्सा हो, पूर्व निर्धारित हो.
शर्मशार हुआ लोकतंत्र का मंदिर
ध्यान रहे कि पीएम मोदी बार बार संसद भवन को लोकतंत्र का मंदिर कह कर संबोधित करते हैं, उसकी चरण बंदना करते हैं, लेकिन उसी लोकतंत्र के मंदिर में उनका ही सांसद लोकतंत्र के उन मूल्यों को तार-तार करता है, जिसको संवर्धित -पुष्पित करने में इस राष्ट्र ने ना जाने कितनी कुर्बानियां दी है. लोकतंत्र की यह बुनियाद कोई एक दिन में नहीं खड़ी की गयी है, हालांकि इस घटना के बाद बेहद आहत स्वर में राजनाथ सिंह ने अपना खेद प्रकट किया और भाजपा सांसद के पूरे बयान को रिकार्ड से बाहर करने का अनुरोध किया. लेकिन यहां सवाल खेद प्रकट करने और माफी मांगने का नहीं है, सवाल उस मानसिकता है, जिसके कारण इस तरह की भाषा और शब्दावलियों का इस्तेमाल हो रहा हैै, और हमारा लोकतंत्र शर्मसार हो रहा है.