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कांग्रेस के टिकट वितरण से अल्पसंख्यक समाज में हाहाकार! क्या झामुमो को मिलने जा रहा एक नया सामाजिक विस्तार

कांग्रेस के टिकट वितरण से अल्पसंख्यक समाज में हाहाकार! क्या झामुमो को मिलने जा रहा एक नया सामाजिक विस्तार

Ranchi-लोकसभा चुनाव की औपचारिक शुरुआत के पहले ही झारखंड कांग्रेस एक नये संकट से गुजरती दिख रही है. जिस अल्पसंख्यक समाज को कांग्रेस का कोर वोटर माना जाता था. गुस्से, विद्रोह और बगावत की खबर उसी अल्पसंख्यक समाज से आ रही है. राजधानी रांची से लेकर जिला मुख्यालयों तक यह आक्रोश फैलता नजर आ रहा है. अल्पसंख्यक समाज का आरोप है कि एक तरफ राहुल गांधी “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” की बात करते हैं. पिछड़े, दलित, आदिवासी समाज के साथ ही अल्पसंख्यकों के लिए सामाजिक-आर्थिक और सियासी इंसाफ की लड़ाई की हुंकार लगाते हैं, वहीं कांग्रेस के टिकट वितरण में दूर दूर तक इसकी झलक देखने को नहीं मिलती. यदि कांग्रेस राहुल गांधी के रास्ते पर चल रही होती तो झारखंड के 15 फीसदी अल्पसंख्यक समाज के हिस्से आज नील बट्टा सन्नाटा नहीं होता, उनके हिस्से भी टिकट आती, और इसके साथ ही राहुल गांधी के उस वादे पर सवाल खड़ा हो गया है, जब सत्ता की ताजपोशी के पहले ही कांग्रेस का यह रवैया है, तो सत्ता प्राप्ति के बाद उसकी नीतियां कैसी होगी?

क्या इस आक्रोश का समाधान निकाल पायेगी कांग्रेस

 अल्पसंख्यक समाज के बीच पसरते इस गुस्से का कांग्रेस क्या समाधान निकालेगी? इसका जवाब तो फिलहाल मुश्किल है, लेकिन टिकट वितरण के बाद अल्पसंख्यक समाज की ओर से मोर्चा संभालने वाले जामताड़ा विधायक इरफान की नजर अभी भी पार्टी आलाकमान पर लगी हुई है, उनका मानना है कि पार्टी जरुर इसका समाधान निकालेगी. उनका दावा है कि इस पूरे प्रकरण में आलाकमान की कोई गलती नहीं है, दोष उनका है, जो आलाकमान को यह फीड बैक देकर दिग्भ्रमित करने की साजिश रच रहे हैं कि मुसलमानों के टिकट देने से सामाजिक ध्रवीकरण तेज होगा और हार का सामना करना पड़ेगा. इरफान  इसके साथ ही यह सवाल खड़ा करते हैं कि इस बात की क्या गारंटी है कि जिन्हे टिकट दिया गया है, उनकी जीत होने वाली है, उनके पास तो एक मजबूत सामाजिक समीकरण भी नहीं है. मुश्किल से दो से तीन फीसदी की आबादी है.

 क्या झामुमो को मिल सकता है एक नया सामाजिक विस्तार  

लेकिन इस सबसे के बीच एक सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि क्या कांग्रेस के इस संकट में झामुमो को अपने सामाजिक सियासी विस्तार के लिए कोई रास्ता खुलता नजर आ रहा है. यह सवाल इसलिए खड़ा हो रहा है कि आखिर इस फैसले के बाद अल्पसंख्यक समाज के पास विकल्प क्या है? क्या वह अपने गुस्से और आक्रोश को सीने में लगाये कांग्रेसी प्रत्याशियों के लिए वोट डालती नजर आयेगी या फिर इस पूरी चुनावी प्रक्रिया से अलग होकर नतीजे का इंतजार करेगी? और यदि वह इसी रास्ते बढ़ने का फैसला करती है तो इसका चुनावी नतीजों पर असर क्या होगा? जिस अल्पसंख्यक समाज को कांग्रेस का कोर वोटर माना जाता है, यदि उसी समाज ने उससे दूरी बना ली तो फिर चुनावी तस्वीर क्या होगी? और क्या झारखंड कांग्रेस के रणनीतिकार भी यही चाहते हैं, उनकी भी मंशा यही है कि इस बार अल्पसंख्यक समाज इस पूरी चुनावी प्रक्रिया से अपने आप को अलग कर इस सियासी जंग का आनन्द भर ले?

 क्या इस नाइंसाफी का नजारा देखेगी झामुमो?

लेकिन इसके साथ ही एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि झामुमो जो आज झारखंड में इंडिया गठबंधन का सबसे बड़ा घटक है, इस पर चुप्पी साधे रहेगा और यदि इसे कांग्रेस का आंतरिक मामला बताकर पल्ला झाड़ने की कोशिश करेगा, और झामुमो इसी रास्ते पर आगे बढ़ता है तो क्या उसे भी अल्पसंख्यक समाज के गुस्से का सामना नहीं करना पड़ेगा? क्या उसका खुद का सामाजिक समीकरण बिगड़ता नजर नहीं आयेगा? कहा जा सकता है कि झामुमो के रणनीतिकार फिलहाल इस पर नजर बनाये होंगे, लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या अल्पसंख्यक समाज जो अब तक मूल रुप से कांग्रेस का कोर वोटर रहा है, झामुमो अपने साथ लाने की कोई रणनीति बना सकता है, ताकि उसका सामाजिक विस्तार हो सके.

सरफऱाज अहमद को राज्यसभा भेज कर झामुमो ने अपना इरादा जाहिर कर दिया  है

यहां यह भी याद रहे कि गांडेय विधायक सरफराज अहमद को राज्य सभा के लिए भेज कर झामुमो ने पहले ही अपना इरादा जाहिर कर दिया है. इस हालत में झामुमो की ओर से अल्पसंख्यक समाज को यह विश्वास दिलाने की कोशिश भी हो सकती है कि फिलहाल तो सारे टिकटों को वितरण हो चुका है, लेकिन यदि अल्पसंख्यक समाज और उसके विधायकों का रुख झामुमो की ओर होता है तो वह भविषय में अपने चुनाव चिह्न पर अल्पसंख्यक समाज को चुनावी अखाड़ में उतार सकता है. यहां ध्यान रहे कि बिहार हो या यूपी अल्पसंख्यक समाज जहां-जहां भी क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत है, वह उसके साथ खड़ी हो चुकी है, और इसके बाद इन राज्यों में कांग्रेस को अपने दुर्दिन देखने पड़ रहे हैं, तो क्या झारखंड में भी अल्पसंख्यक समाज अपनी निष्ठा झामुमो के प्रति बदल सकता है. फिलहाल तो इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है, लेकिन इतना जरुर है कि अल्पसंख्यक समाज के सामने एक बड़ा सियासी प्रश्न खड़ा हो गया है, इस हालत में वह जयराम की नयी नवेली पार्टी के साथ गलबहियां करते हुए धनबाद में एक नया खेल भी कर सकता है.

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Published at:17 Apr 2024 03:39 PM (IST)
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