Patna- 2024 में पीएम मोदी का रथ रोकने के लिए पटना में विपक्षी दलों की माथापच्ची जारी है. बैठक को लेकर कयासों का दौर भी जारी है, पूरे देश की निगाहें पटना की ओर लगी हुई है. कई जानकारों का दावा है कि बैठक का मुख्य एजेंडा न्यूनतम साक्षा कार्यक्रम तैयार करना है, जबकि कुछ का दावा है कि बैठक में विपक्ष की से चेहरे की घोषणा की जा सकती है. साफ है कि बंद कमरे की इस बैठक के बारे में लोगों का अलग-अलग आकलन और तर्क हैं.
न्यूनतम कार्यक्रम की घोषणा महज औपचारिकता
लेकिन अब जो खबर आ रही है, कि उपरोक्त मसलें इतने ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि विपक्ष अभी 2024 के लिए चेहरा घोषित करने की हड़बड़ी में नहीं है. और न्यूनतम साक्षा कार्यक्रम महज एक औपचारिकता है, इस पर तो विपक्षी एकता के लिए मेल-मुलाकात के दौरान ही सहमति बन गयी थी, यह भी साफ हो गया था कि विपक्षी एकता की इस मुहिम में किस-किस राजनीतक दल की भागीदारी प्रत्यक्ष तौर पर रहेगी और किन किन दलों का आंतरिक समर्थन मिलेगा, कई ऐसे भी राजनीतिक दल हैं, जिनकी भागीदारी आज भले ही पटना की बैठक में नहीं हो रही हो, लेकिन समय के साथ वह अपनी रणनीति के हिसाब से इसका भागीदार बनेंगे.
मुख्य फोकस बंगाल, यूपी और दिल्ली पर
सूत्रों के अनुसार आज की बैठक का मुख्य फोकस बंगाल, यूपी और दिल्ली को लेकर बनायी जाने वाली रणनीति पर है. दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस यूपी के मैदान में अकेले ही पूरे दम खम के साथ मैदान में उतर सकती है, यहां याद रहे कि कभी सवर्ण जातियों को कांग्रेस का मुख्य जनाधार माना जाता था, आज के दिन यह तबका पूरी तरह से भाजपा के साथ खड़ी है, कांग्रेस की कोशिश इसी सवर्ण मतदाताओं में सेंधमारी की होगी.
यूपी से चुनाव लड़ सकते हैं मल्लिकार्जून खड़गे
दूसरी ओर यह भी दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जून खड़गे को कर्नाटक के साथ ही यूपी के दंगल में उतार सकती है, ताकि बहन दलितों का एक हिस्सा भाजपा और बसपा से झटक कर कांग्रेस के साथ आ जाये और इस प्रकार से अखिलेश यादव की राह को आसान बनाया जा सके.
पंजाब से अलग दिल्ली के लिए बनायी जा सकती है विशेष रणनीति
इसी प्रकार पंजाब से अलग दिल्ली के लिए कांग्रेस और आप एक अलग रणनीति बना सकती है, क्योंकि पिछले दो लोकसभा चुनावों में आप को वहां सफलता नहीं मिली, हालांकि विधान सभा चुनाव में आप को लोगों अपार समर्थन मिलता है, लेकिन लोकसभा चुनाव में वह तीसरे स्थान पर खिसक जाती है, और भाजपा के मुकाबले कांग्रेस खड़ी नजर आती है, इसलिए दिल्ली में कांग्रेस और आप के बीच एक समझौता बन सकता है, ताकि भाजपा की सीटों की संख्या को सीमित किया जा सके. जबकि पंजाब में आप और कांग्रेस अलग-अलग ही लड़ेगी, ताकि भाजपा को वहां कोई स्पेश नहीं मिल सके.
बंगाल में ममता से मुकाबला करते नजर आ सकती है कांग्रेस-लेफ्ट
यही रणनीति बंगाल को लेकर भी बनायी जा सकती है, जानकारों का दावा है कि भाजपा वहां बहुत तेजी से अपना जनाधार खो रही है, जबकि कांग्रेस और लेफ्ट का उभार हो रहा है, रणनीतिकारों का दवाब बंगाल में ममता के मुकाबले कांग्रेस और लेफ्ट को मजबूती से लड़वाने का है, ताकि भाजपा को मुख्य लड़ाई से बाहर किया जा सके. हालांकि दूसरे सभी आकलनों की तरह भी यह भी एक आकलन है, जो सूत्रों की खबर पर आधारित है, फिलहाल सबकी निगाहें बैठक की ओर लगी हुई है.