Ranchi- 13 जुलाई को पेरिस में अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा है कि भारत विविधता का मॉडल है. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि उन्ही के द्वारा विविधता के इस मॉडल पर सवालिया निशान खड़े किये जा रहे हैं, और कॉमन सिविल को के नाम पर पूरे देश में एक ही मॉडल को थोपने की कोशिश की जा रही है, कॉमन सिविल कोड की बात करने से पहले हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में तीन हजार जातियां, करीबन पच्चीस हजार उसकी उपजातियां और 744 (आदिवासी) नस्लीय समुदायों का निवास है. इन सब की अपनी परंपरा, अपना रहन सहन, खान –पान, उपसंस्कृति, रीति रिवाज और परंपरायें है, उनके अपने कस्टमरी लॉ और आदिवासी प्रथागत कानून है.
कॉमन सिविल कोड के नाम पर प्रथागत कानूनों को जमींदोज करने की कोशिश
सवाल यह है क्या हम कॉमन सिविल कोड के नाम पर आदिवासी समाज के परंपरागत कानूनों को जमींदोज करेंगे? उनके प्रथागत कानूनों पर हम अपने तथाकथित सभ्य कानूनों को थोपेंगे? फिर भारतीय संविधान के तहत उन्हे दिये गये विभिन्न अधिकारों का क्या होगा? उनकी स्वायत्तता का क्या होगा? छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट और संताल टेनेंसी एक्ट का क्या होगा? एक नस्लीय समाज के समाज के रुप में आदिकाल से वह जिस परंपराओं और प्रथागत कानूनों का पालन कर रहे हैं, उसका क्या होगा? कहीं कॉमन सिविल कोड के नाम पर हम आदिवासी समाज पर हिन्दू रीति रिवाज, परंपरा और कानूनों को थोपने की दिशा में आगे तो नहीं बढ़ रहे? और सबसे बड़ा सवाल क्या हम एक मेजॉरिटेरियन सोसाइटी की ओर तो बढ़ रहें. क्या अब बहुसंख्यक आबादी किसी भी कानून का निर्माण उसे अल्पसंख्यक समाज पर थोप सकती है और क्या यह संविधान की मूलभूत भावना के अनुरुप है.
झारखंड से नागालैंड तक कॉमन सिविल कोड का विरोध
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आज झारखंड से नागालैंड तक आदिवासी समाज इस कॉमन सिविल कोड के विरोध में खड़ा नजर आने लगा है. इसी प्रतिरोध की आवाज है आदिवासी महासभा के द्वारा भारतीय विधि आयोग को लिखा गया पत्र.