Ranchi-पूर्व सीएम रघुवर दास को ओड़िशा का गर्वनर बनाकर सियासत से वनवास देने के साथ ही झारखंड भाजपा में ऑपरेशन बाबूलाल की शुरुआत होती नजर आने लगी है, वैसे तमाम नेताओं को जिन्हे रघुवर दास के चेहरे पर आपत्ति थी, और महज इसी खुन्दक में पार्टी को अलविदा कह दिया था, या वैसे चेहरे जो रघुवर दास के नेतृत्व में कमल छाप की सवारी करने से इंकार कर रहे थें, जिन्हे इस बात का डर था कि रघुवर दास के रहते उनकी राजनीति आगे नहीं बढ़ने वाली है.
बाबूलाल के नेतृत्व में घर वापसी की कवायद शुरु
अब बाबूलाल के नेतृत्व में इन तमाम चेहरों को एकजूट करने की कवायद शुरु हो चुकी है, और माना जाता है कि बाबूलाल की नजर ऐसे करीबन आधा दर्जन नेताओं पर टिकी है, जो आज या तो कांग्रेस के साथ है, या कांग्रेस भाजपा दोनों से समान दूरी बनाये हुए हैं. हालांकि उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है.
हालांकि इसमें कई चेहरे अभी फिलहाल भाजपा की सवारी करने के बजाय लोकसभा चुनाव का परिणाम और झारखंड विधान सभा चुनाव की डुगडुगी बजने का इंतजार करने की बात कर रहे हैं, इधर चुनाव की रणभेरी बजी और इधर कमल की सवारी का एलान कर दिया जायेगा. इसकी मुख्य वजह पार्टी बदलने के बाद सदस्यता गंवाने की अनिवार्य शर्त है. और आज के दिन कोई भी सत्ता की मलाई को छोड़ने को तैयार नहीं है, हालांकि बाबूलाल की कोशिश चुनाव से पहले अपने पाले में लाकर अभी से एक माहौल बनाने की है.
शैलेन्द्र महतो को साध कर कुड़मी वोटों को अपने पाले में करने की कवायद
जानकारों को मानना है कि इसकी शुरुआत पिछड़ों के कद्दावर नेता और कभी झामुमो के महासचिव रहे शैलेन्द्र महतो के साथ हो सकती है, और इसी महीने उन्हे जेपी नड्डा के हाथों कमल का पटा पहनाया जा सकता है.
ध्यान रहे कि बीड़ी आन्दोलन से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले शैलेन्द्र महतो को कुरमी राजनीति का बड़ा चेहरा माना जाता है, वर्ष 1989 और 1991 में शैलेन्द्र महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर संसद पहुंचने में भी कामयाब रहे थें, नरसिम्हा सरकार में रिश्वत कांड में भी नाम उछला था और बाद में वह सरकारी गवाह भी बने थें, हालांकि बाद में कोर्ट के द्वारा उन्हे आरोप मुक्त कर दिया गया, उनकी पत्नी आभा महतो आज भी भाजपा से जुड़ी हैं, खुद आभा भाजपा के टिकट पर वर्ष 1998 और 1999 में दो-दो बार जमशेदपुर लोकसभा से संसद पहुंचने में कामयाब रही है. लेकिन इस राजनीतिक कदकाठी के बावजूद नरसिम्हा राव सरकार में कैश फोर वोट कांड में नाम आने के बाद शैलेन्द्र महतो राजनीतिक गलियारों से ओझल होते चले गयें.
मधु कोड़ा पर भी है बाबूलाल की नजर
लेकिन अब जबकि बाबूलाल के कंधे पर झारखंड में भाजपा की जमीन तैयार करने की जिम्मेवारी सौंप दी गयी है और रघुवर दास को सियासी वनवास देकर यह साफ कर दिया गया है कि झारखंड भाजपा में सिर्फ बाबूलाल का ही जलबा चलने वाला है, रघुवर टीम के सारे चेहरे अब हासिये पर जाने के लिए अभिशप्त हैं. बाबूलाल एक-एक कर सभी पुराने चहरों को पार्टी में लाने की कवायद शुरु कर चुके हैं.
लेकिन इससे साथ ही उनकी नजर पूर्व सीएम मधु कोड़ा पर भी लगी हुई है. यहां फिर से बता दें कि मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा ही आज के दिन पश्चिमी सिंहभूम से कांग्रेस की टिकट पर सांसद हैं. जबकि खुद मधु कोड़ा वर्ष 2009 में स्वतंत्र उम्मीदवार के बतौर जीत चुके हैं.
रघुवर दास को उनके ही मैदान में पटकनी देने वाले सरयू राय की भी वापसी
इस बीच एक तीसरा नाम जो काफी तेजी से उछल रहा है, वह है पूर्व भाजपा नेता सरयू राय का, यहां याद रहे कि रघुवर दास को सीएम रहते चुनावी अखाड़े में धूल चटाने वाला और कोई नहीं यही सरयू राय थें, दोनों की राजनीतिक प्रतिद्वंधिता सियासी गलियारों में आम है. सरयू राय आज भी चुन चुन कर रघुवर दास के जमाने का भ्रष्टाचार को सामने ला रहे हैं, और उसी भ्रष्टाचार को सामने लाकर हेमंत सरकार की साख पर भी सवाल खड़ा कर रहे हैं. उनका आरोप है कि हेमंत सरकार को जिस शिद्दत से रघुवर शासन काल के भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करनी चाहिए थी, वह नहीं किया गया, किसी ना किसी राजनीतिक विवशता में हेमंत सोरेन कार्रवाई से बचते हुए दिख रहे हैं. या उसके प्रति गंभीर रुख अख्तियार नहीं कर रहे हैं.
कोल्हान के किले को ध्वस्त करना चाहती है भाजपा
यदि इन तीन नेताओं को सामने रख कर देखे तो बाबूलाल की पूरी रणनीति साफ हो जाती है, उनकी कोशिश शैलेन्द्र महतो, मधु कोड़ा और सरयू राय को आगे कर झामुमो का मजबूत किला कोल्हान को ध्वस्त करना है. जानकार मानते हैं कि यह सत्य है कि आज के दिन कोल्हान की सभी विधान सभा सीटों पर झामुमो का कब्जा है. लेकिन यह बात भी सत्य है कि खुद मधु कोड़ा की जमीन पर वहां कमजोर नहीं है. यदि मधु कोड़ा को शैलेन्द्र महतो का जनाधार और सरयू राय की रणनीति का साथ मिल जाये तो भाजपा हेमंत के इस सबसे मजबूत किले को ध्वस्त कर सकती है, और बची खुची कसर को पूरा करने के लिए बाबूलाल खुद है, जो आज भी दिशोम गुरु शिबू सोरेन के बाद आदिवासी समाज का सबसे बड़ा चेहरा हैं.