टीएनपी डेस्क(TNP DESK):- महाराष्ट्र की सियासत में उठा-पटक, भूचाल औऱ करवटे लेना आम बात है. महाविकस अगाड़ी के जाने बाद एकनाथ शिंदे की सरकार आयी. इतने पर भी शांति नहीं आयी, तो अब एनसीपी से बगावत महाराष्ट्र विधानसभा के विपक्ष के नेता अजीत पवार ने कर दी . अपने चाचा शरद पवार के खिलाफ विरोध का बिगुल फूंककर सनसनी मचा दिया. महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजीत पवार बन गये औऱ अपने साथ एनसीपी के 40 विधायकों के समर्थन की बात कहकर सबको चौका दिया. चुनौती राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले चाचा शरद पवार को सीधे दे दी औऱ लंबे समय से आंखों में भरी बगावत को भी जमीन पर उतार दिया. महाराष्ट्र के इस राजनीतिक ड्रामे ने देश में बन रहें विपक्ष की एकता को भी हिला दिया. क्योकि शरद पवार इसमे शामिल है. ये तो तय है कि खेल तो हो गया है और अब इसका अंजाम कहां तक पहुंचेगा, इस पर सभी की निगाहें लगी रहेगी.
आगे की रणनीति
एनसीपी के 53 विधायकों में 40 के समर्थन मिलने की आंह भर रहे अजीत पवार की नजर पार्टी पर कब्जा करने की है. लेकिन, उनके सामने रण में राजनीति के धुरंधर माने जाने वाले चाचा शरद पवार खड़े हैं. अजीत इस विद्रोह पर शरद ने भी हुंकार भर दी है . औऱ फिर से पार्टी को खडी करके दिखाने का एलान कर दिया है . यानि आने वाले दिनों में चाचा-भतीजे की रस्साकशी औऱ वजूद की लड़ाई परवान पर दिखेगी.
चाचा शरद के लिए दी कुर्बानी
अजीत पवार ने सियासत में पहला कदम 40 साल पले रखा था. तब वे सिर्फ 20 साल के थे उनकी मुंछें भी ठीक से नहीं उगी थी . उन्होंने चीनी की सहकारी संस्था के जरिए राजनीति का दरवाजे पर दस्तक दिया था . वे लगातार 16 साल तक उस पद पर बनें रहें. साल 1991 में ही वे लोकसभा के लिए चुने गए. लेकिन , हालात ऐसे बनें की चाचा के लिए सीट छोड़ना मजबूरी बन गई . उस वक्त शरद पवार केन्द्र में रक्षा मंत्री बने थे, औऱ उनका सांसद बनना जरुरी थी. यह चाचा के लिए भतीजे अजीत पवार की पहली कुर्बानी थी. इसके बाद वे 1992 से 93 तक महाराष्ट्र के कृषि औऱ बिजली मंत्री रहे. इसके बाद 1995, 1999, 2004, 2009 और 2014 में लगातार बारामती से चुनकर आए औऱ अपनी अहमियत महाराष्ट्र की राजनीति में जतायी.
पांचवीं बार बनें महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम
महाराष्ट्र की राजनीति में अजीत पवार हमेशा अपना राजनीतिक कद बढ़ाते गये. उन्हें नजरअंदाज करने की हिमाकत किसी ने नहीं की . चाचा शरद पवार भी उनकी क्षमता और लिडिरशीप को तरजीह देते थे . अजीत पवार ने पहली बार 2009 में छगन भुजबल की सरकार में डिप्टी सीएम बनें, उन्होंने इसकी इच्छा खुद जाहीर की थी . इसके बाद 2010 में नटकीय अंदाज में उपमुख्यमंत्री बन गये. हालांकि, 2013 में उनके करियर में फिर भ्रष्टाचार का दाग लगा और मुश्किलें उनकी राहों पर आन पड़ी थी. 2019 में उनकी किस्मत जागी और अचानक देवेन्द्र फडणवीस के साथ उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली . हालांकि, काफी हंगामे के बाद शरद पवार ही अजीत को मनाया . महाअगाडी की सरकार बनी तो उद्धव के सीएम बनने के बाद डिप्टी की कमान अजीत पवार ने ही संभाला . अब एकनाथ शिंदे की सरकार पर में पांचवी पर उपमुख्यमंत्री बनें हैं .
राजनीति के चाण्क्य माने जाते हैं शरद पवार
अजीत पवार एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार के बड़े भाई अनंतराव पवार के बेटे हैं. राजनीति तो अजीत को विरासत में मिली. लेकिन उन्हें आगे बढ़ाने का काम शरद पवार ने ही किया . अजीत भी चाचा से ही सियासत का पाठ पढ़ा औऱ अपना राजनीतिक गुरु माना. उनके बताये राह औऱ नक्शे कदम पर ही आगे चले .लेकिन, कहा जाता है कि वक्त अपने साथ कई चिजे साथ लेकर चलता है. जहां बदलाव इसकी नियति औऱ तासीर है. जो कल तक गुरु थे आज उन्हीं की विरासत छीनने पर कोई आमदा है . अजीत के सियासी गुरु शरद पवार का राजनीति में लंबा तजुर्बा रहा है, केन्द्र से लेकर राज्य तक की राजनीति में अच्छी पकड़ रखते हैं. उन्हें मराठा क्षत्रप भी बोला जाता है . लेकिन, आज यह धुरंधर फिर मुश्किल वक्त में घिर गया है. जहां इसबार चुनौती गैरों से नहीं अपनो से ही है .
एनसीपी चीफ शरद पवार को सियासत का चाणक्य कहा जाता है और राजनीति में रोटी पलटने में माहिर भी माना जाता है . लेकिन, इस वक्त उनके भतीजे अजीत पवार ही उनके रोटी पलटने वाला चिमटा लेकर भाग गये हैं. अब देखना है कि चाचा-भतीजे की इस सियासी जंग में विजयी किसकी होती है. क्योंकि, यहा लड़ाई अब एनसीपी के वजूद की हो गयी है.
रिपोर्ट-शिवपूजन सिंह