Ranchi- हालांकि पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव को लेकर इंडिया गठबंधन की पूरी गतिविधियां थमी नजर आ रही है. जिस जोर शोर से संयुक्त रैलियों का दावा किया गया था, वह सब कुछ बंद नजर आ रहा है, तत्काल इंडिया गठबंधन के सभी घटक दलों की निगाहें इन विधान सभा चुनावों के परिणाम पर लगी हुई है, जहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच होना है. और अपने तमाम घटक दलों को किनारा कर कांग्रेस सिर्फ अपने दम पर भाजपा को मात देने का दंभ पाल रही है.
इस बीच सियासी जानकारों का मानना है कि यदि इन पांच राज्यों का चुनाव परिणाम कांग्रेस अपने पक्ष में करने में कामयाब हो जाता है तो वह इंडिया गठबंधन पर अपनी शर्तों को थोपता नजर आ सकता है. और यह स्थिति कांग्रेस के लिए तो अच्छी हो सकती है, लेकिन इंडिया गठबंधन की एकजुटता के लिए खतरनाक साबित होगा. क्योंकि इस जीत के साथ ही कांग्रेस की वर्तमान सौम्यता और शिष्टता दरकने लगेगी. उसके अन्दर का अंहकार एक बार फिर से अपने रौद्र रुप में सामने खड़ा होगा. इस हालत में इंडिया गठबंधन का भविष्य क्या होगा. एक बड़ा सवाल है. और इसकी कुछ कुछ झलक मिलने की शुरुआत भी हो चुकी है, जिस प्रकार से कमलनाथ के द्वारा अखिलेश यादव के लिए “कौन अखिलेश” जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया, उसके अपने निहितार्थ हैं. कुछ इसी तरह की शब्दावली यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के द्वारा उछाला गया था.
हकीकत से काफी दूर खड़ा है कांग्रेस
हालांकि सियासी जानकारों का दावा है कि जिस प्रकार से कांग्रेस पांच राज्यों में सरकार बनाने का दावा पेश कर रही है, वह हकीकत से काफी दूर है. इन पांच राज्यों में वह सिर्फ छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने की स्थिति में है, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी ने अपने हठधर्मिता से कांग्रेस को मध्यप्रदेश के मुकाबले से बाहर कर दिया है. या उसकी स्थिति कमजोर कर दी है, दावा किया जाता है कि यदि कांग्रेस ने वक्त रहते यहां दूसरे नेताओं को खड़ा किया होता तो आज वह बेहतर स्थिति में होती. राजस्थान में पहले ही हर पांच वर्ष पर सता बदलने का प्रचलन रहा है, इस बार ऐसा नहीं होगा, कहना मुश्किल है. तमाम सर्वेक्षणों में आज भी भाजपा अपनी बढ़त को बनाये हुए हैं. यदि तेलांगना और मिजोरम की बात करें तो बहुत हद तक कांग्रेस की हालत वहां सुधर सकती है, लेकिन वह सत्ता में वापसी करेगी, यह मुश्किल नजर आता है.
नीतीश नहीं छोड़ी है अपनी आस
लेकिन इंडिया गठबंधन की तमाम पेचदीगियों से अलग और बेहद खामोश नजर आ रहे नीतीश कुमार ने अपनी आस नहीं छोड़ी है. उनकी नजर यूपी के साथ ही झारखंड की सियासत पर बनी हुई है. दावा किया जा रहा है कि इस बार सीएम नीतीश झारखंड से कम से कम एक सीट से जदयू का उम्मीदवार उतारने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, उनकी नजर गिरिडीह और रांची संसदीय सीट पर लगी हुई है.
पांच बार जीत का परचम गाड़ चुके हैं रामटहल चौधरी
यहां ध्यान रहे कि अभी पिछले महीने ही रांची संसदीय सीट से पांच पांच बार जीत का परचम फहरा चुके राम टहल चौधरी की सीएम नीतीश से मुलाकात हुई है. उनके साथ झारखंड से जदयू के राज्य सभा सांसद खिरू महतो भी उपस्थित थें, जिसके बाद यह कयास को बल मिला कि रामटहल चौधरी इस बार जदयू के टिकट पर रांची लोकसभा क्षेत्र से इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार होंगे. लेकिन क्या यह सब इतना सरल तरीके से हो जायेगा, क्योंकि रांची लोकसभा की सीट पर जदयू की जीत का कोई इतिहास नहीं रहा हैं, जबकि कांग्रेस के लिए यह परंपरागत सीट मानी जाती है, वह अब तक आठ बार यहां से जीत दर्ज कर चुकी है. रांची संसदीय सीट से कांग्रेस खेमें से प्रमुख उम्मीवार सुबोधकांत खुद यहां से तीन तीन जीत का परचम फहरा चुके हैं. उनका मुख्य मुकाबला रामटहल चौधरी से होता रहा है. अब जबकि राम टहल चौधरी भाजपा को अलविदा कर जदयू का दामन थामने की तैयारी में हैं, क्या कांग्रेस इतनी आसानी से सीट को कुर्बान करने को तैयार होगी.
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नीतीश के लिए कुछ भी नामुमिन टास्क नहीं
हालांकि जानकारों का दावा है कि सीएम नीतीश यदि चाह लें तो यह कोई नामुमकिन टास्क नहीं होगा. जिन सीटों को यहां कुर्बान किया जायेगा, उसकी भरपाई बिहार में की जा सकती है, जहां उसके जीत का चांस भी बेहतर होगा, इस हालत में कांग्रेस लेकर झामुमो के लिए यह घाटे का सौदा साबित नहीं होगा.
पत्ता खोलने को तैयार नहीं रामटहल चौधरी
वैसे खुद राम टहल चौधरी अभी से अपना पत्ता खोलने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि जब तक सब कुछ तय नहीं हो जाता वह कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है, लेकिन उनके बयान से इतना तो साफ है कि अन्दर खाने खिचड़ी पक रही है. हालांकि अभी तक यह तय नहीं है कि इस सियासी रणनीति में कांग्रेस शामिल है या नहीं. या उससे अभी इस पूरी कहानी से दूर रखा गया है. लेकिन इतना साफ है कि यदि यह सीट जदयू के खाते में जाती है तो यह सुबोधकांत की राजनीति के लिए बड़ा झटका होगा और यह झटका एक बार फिर से उन्हे उनके पुराने और चिर परिचित प्रतिद्वंदी राम टहल चौधरी की ओर से मिलेगा.