TNPDESK- इंडिया गठबंधन के सूत्रधार सीएम नीतीश कुमार अचानक से मीडिया से दूरी बनाते दिख रहे हैं, दावा किया जा रहा है कि सीएम नीतीश का यह रुख हालियों दिनों में उनके बयानों को तोड़फोड़ और दूसरे पसमंजर में दिखलाने के बाद हुआ है. जिसके बाद उनके द्वारा किसी भी न्यूज चैनल और प्रिंट मीडिया से दूरी बना ली गयी है.
यहां ध्यान रहे कि अभी चंद दिन पहले ही एक समारोह में सीएम नीतीश ने भाजपा नेताओं की मौजूदगी में इस बात की ओर इशारा किया था कि भले ही वह अलग अलग खेमें है, राजनीतिक रुप से उनके बीच में दूरी है, लेकिन जहां तक व्यक्तिगत रिश्तों का सवाल है, वह आज भी उनके साथ खड़े हैं, पार्टी बदलने से उनकी व्यक्तिगत दोस्ती और रिश्तों में कोई बदलाव नहीं आने वाला है. सीएम नीतीश के इसी बात को कई अखबारों और चैनलों ने इस रुप में प्रचारित कर दिया कि वह एक बार फिर से भाजपा पर डोरे डालने की कोशिश कर रहे हैं, और यह दावा भी किया जाने लगा कि नीतीश कुमार बहुत जल्द ही भाजपा के साथ खड़े हो सकते हैं, और इसके साथ ही इंडिया गठबंधन के अस्तित्व पर सवाल खड़ा किया जाने लगा.
तथ्यहीन रिपोर्टिंग से नाराज हुए नीतीश
बगैर उनके बयान के निहितार्थ को समझे ही कई भाजपा नेताओं ने उनके इस कदम का स्वागत भी कर डाला तो दूसरी तरफ चंद भाजपा नेताओं ने यह दावा कर डाला कि एनडीए के लिए उनके दरवाजे सदा के लिए बंद हो चुके हैं.
दावा किया जाता है कि मीडिया की इसी तथ्यहीन रिपोर्टिंग से नीतीश कुमार को धक्का लगा और उनके द्वारा मीडिया से दूरी बनाने का मन बना लिया गया, जिसके बाद वह अब तक मीडिया से दूरी बनाये हुए हैं, वह ना तो रिपोर्टरों से मिल रहे हैं और ना ही उनके सवालों का जवाब दे रहे हैं.
मीडिया पर पहले भी तंज कसते रहे हैं सीएम नीतीश
यहां ध्यान रहे कि इसके पहले ही नीतीश कुमार मीडिया पर यह कह कर तंज कसते रहे हैं कि आप लोग तो सिर्फ आते हैं, सवाल खड़ा करते हैं, लेकिन उसको छापते थोड़े ही है, आप लोगों के उपर तो दिल्ली का प्रेशर है, जब वहां से आदेश होता है, तब चंद लाइन लिख कर बात को समाप्त कर देते हैं, जबकि हम आपको सबों को हमारी सरकार की बेहतरीन योजनाओं को भी सामने लाना चाहिए था, उसको भी देश दुनिया को बताना चाहिए था, लेकिन आप सब तो एकपक्षीय खबर चलाते जा रहे हैं.
भाजपा आरएसएस का प्रोपगैंडा फैला रहे हैं अखबार और चैनल
यहां यह भी बता दें कि जब से नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन का आगाज किया है, दिल्ली और पटना के कई अखबारों और चैनलों के द्वारा यह प्रोपगंडा फैलाने की कोशिश की जा रही है कि नीतीश कुमार कभी भी इंडिया गठबंधन का साथ छोड़ सकते हैं, कभी यह सवाल उठाया जाता है कि नीतीश कुमार की महात्वाकांक्षा पीएम बनने की है, जबकि वह साफ शब्दों में कह चुके हैं कि उनकी कोई व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं है. यहां तक की उनके द्वारा इस बात का भी संकेत दे दिया गया है कि वह अब इस सीएम की कुर्सी को तेजस्वी को सौंपना चाहते हैं, जैसे ही परिस्थितियां ठीक हो जाती है, वह तेजस्वी को गद्दी सौंप कर अपनी नयी भूमिका के लिए निकल पड़ेंगे. यह नई भूमिका केन्द्र की राजनीति की जरुर होगी, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि वह पीएम पद के उम्मीदवार है.
मीडिया पर लगी हुई बंदिश
नीतीश कुमार ने यह भी कहा था कि हम तो चाहते हैं कि आप पत्रकारों को पहले जैसा लिखने पढ़ने की स्वतंत्रता मिल जाय, जिसके बाद आप जो चाहे खुले मन से लिखे, लेकिन अभी तो आप सबों पर बंदिश है. आप चाह कर भी लिखने की स्थिति में नहीं है, आप सबों के उपर पहरा लगा दिया गया है, हमारी कोशिश इस पहरेदारी को समाप्त करने की है.
लेकिन अब जिस प्रकार से नीतीश कुमार ने मीडिया से दूरी बना ली है, उसके बाद यह सवाल खड़ा होने लगा है कि आखिर इंडिया गठबंधन और जदयू का पक्ष मीडिया में कैसे आयेगा. इसके पहले भी इंडिया गठबंधन के द्वारा कई पत्रकारों को चिह्नित करते हुए उनके कार्यक्रम से दूरी बनाने का एलान किया गया था, लेकिन इस बार नीतीश के नीतीश के निशाने पर सारे पत्रकार हैं.
यहां ध्यान रहे कि नीतीश कुमार के दायें हाथ रहे रहे संजय झा को मीडिया मैनेजमेंट का बड़ा उस्ताद माना जाता है, वह पहले भी भाजपा के साथ मिलकर इस काम को अंजाम देते रहे हैं, तब सवाल खड़ा होता है कि आखिर संजय झा यहां इस काम में कमजोर क्यों पड़ते जा रहे हैं. क्या जदयू आने वाले दिनों में नयी रणनीति के साथ सामने आने वाली है. और क्या इसके लिए विधान सभा चुनावों का इंतजार किया जा रहा है, जिसके बाद इंडिया गठबंधन की ओर से नियुक्त मीडिया मैनेजर संयुक्त रुप से कमान संभालेंगे.
गैर भाजपा शासित राज्यों में भी भाजपा विज्ञापन पर कर रही बेतहाशा खर्च
इधर जानकारों का दावा है कि यह सत्य है कि राज्य सरकारों के द्वारा इन अखबारों और मीडिया चैनलों को काफी बड़ा विज्ञापन मिलता है, लेकिन आज भी इनकी कमाई का मुख्य स्त्रोत केन्द्र से मिलने वाला विज्ञापन हैं, सिर्फ एक राज्य सरकार के भरोसे उनकी भूख नहीं मिट सकती, साथ ही जहां जहां गैर भाजपा दलों की सरकार है, उन राज्यों में भी दूसरे भाजपा राज्यों की तरफ से बड़ा बड़ा विज्ञापन दिया जा रहा है, ताकि इन संस्थानों को राज्य सरकारों पर निर्भर नहीं रहना पड़े और वह खुल कर भाजपा के पक्ष में प्रचार कर सकें. जानकारों तो दावा है कि भाजपा शासित राज्यों और केन्द्र सरकार के द्वारा योजनाओं का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ विज्ञापनों पर खर्च किया जा रहा है, जबकि गैर भाजपा शासित दल इसे जनता की गाढ़ी कमाई की बर्बादी मानती है, यही कारण है कि गैर भाजपा शासित राज्यों के द्वारा बेहद सीमित मात्रा में विज्ञापनों पर खर्च किया जाता है, और नीतीश कुमार को इस मामले में बेहद सख्त है, उनकी कार्यशैली आज भी पुरानी है, जहां विज्ञापनों के लिए कोई स्थान नहीं है, सिर्फ एक होर्डिंग लगा दिया और काम चालू. लेकिन बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में जदयू को अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा, नहीं तो भाजपा के इस दुस्प्रचार का मुकाबला करना मुश्किल होने वाला है. वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि प्रचार के बदले स्वरुप के बाद स्थापित मीडिया चैनलों और अखबारों पर पैसा लगाने के बजाय गैर भाजपा शासित दलों को बेब पोर्टल पर ज्यादा फोकस करना चाहिए, क्योंकि तमाम बंदीशों के बावजूद आज भी इनके अदंर जनसरोकार की गुंजाइश बची हुई है, तब क्या आने वाले दिनों में जदयू अपना फोकस बदलने वाला, देखने वाली बात होगी, क्योंकि यदि हम सिर्फ बिहार की ही बात करें को आज के दिन करीबन हर जिलों में इन वेब पोर्टल की लम्बी फौज खड़ी है, और इनमें कई आज भी अपनी स्वतंत्र साख को बचाये हुए हैं.