रांची(RANCHI)- एक तरफ भाजपा “हेमंत हटाओ झारखंड बचाओ” के नारे के साथ राजधानी कूच कर गई है, उसका दावा तीन लाख की भीड़ के साथ सचिवालय का घेराव करने की है, इस भीड़ की जुगाड़ के लिए संताल इलाके से स्पेशल ट्रेन चलाने की भी खबरें भी आ रही है, लेकिन ठीक इसके बीच, झामुमो भाजपा को उसी संताल इलाके में आज एक बड़ा झटका देने की तैयारी है.
हेमलाल मुर्मू की घर वापसी
हम बता दें ठीक उसी समय जब भाजपा सचिवालय का घेराव कर रही है, तीन लाख के दावे के बीच अब तक महज 40 से 50 हजार की भीड़ जुटने की खबर है, संताल में भाजपा का कदावर नेता हेमलाल मुर्मू की घर वापसी हो रही है. ध्यान रहे कि 2014 के लोकसभा के पहले हेमलाल मुर्मू ने झामुमो को बड़ा झटका देकर कमल का दामन थाम लिया था, लेकिन 2014 और 2019 के दोनों ही लोकसभा चुनावों में कमल के सहारे दिल्ली पहुचंने का उनका सपना पूरा नहीं हो सका. जिसके बाद हेमलाल के द्वारा घर वापसी की चाहतें सार्वजनिक रुप से अभिव्यक्त की जाने लगी और आखिरकार हेमंत सोरेन की ओर से उनकी घर वापसी को हरी झंडी दिखा दी गयी. जिसकी विधिवत औपचारिकता आज पूरी की जानी है. हेमलाल की घर वापसी के लिए आज भोगनाडीह में विशाल जनसभा का आयोजन किया गया है, जहां खुद हेमंत सोरेन उन्हे एक बार फिर से पार्टी की वफादारी की कसमें खिलवायेंगे.
क्या गर्दिश में है लोबिन हेम्ब्रम का राजनीतिक सितारा
लेकिन हेमलाल मुर्मू की घर वापसी से भाजपा के अन्दर की बेचैनी तो ठीक है, उसकी परेशानी के वाजिब कारण है, लेकिन खबर यह है कि हेमलाल की घर वापसी से लोबिन हेमब्रम का राजनीतिक सितारा गर्दिश में फंसता नजर आ रहा है.
हेमलाल मुर्मू की राजनीतिक औकात एक पीटे हुए प्यादे से ज्यादा की नहीं
वैसे देखा जाय तो लोबिन हेम्ब्रम के सामने हेमलाल मुर्मू की राजनीतिक औकात एक पीटे हुए प्यादे से ज्यादा की नहीं है. दो-दो लोकसभा चुनाव में झामुमो के हाथों हार के साथ ही उन्हे लिट्टीपाड़ा विधानसभा के उपचुनाव में भी झामुमो के साइमन मरांडी के हाथों हार का रसास्वादन करना पड़ा था. जबकि लोबिन हेम्ब्रम की अपनी जमीनी ताकत है, लेकिन दिक्कत है यह है कि आदिवासी-मूलवासियों के सवाल पर लोबिन की प्रखरता झामुमो के लिए भी परेशानी का सबब बना रहता है, हालांकि कई बार लोबिन की खिचीं गयी राजनीतिक लाइन पर ही पार्टी देर सवरे आगे बढ़ती हुए भी दिखलायी देती है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण 1932 का खतियान और मुरुंग पहाड़ पर आदिवासियों के दावे हैं. 1932 के सवाल पर तो विधान सभा के अन्दर ही सीएम हेमंत ने इसे इसे अव्यावहारिक बता दिया था, जबकि मुरुंग पहाड़ को पहाड़ को जैनियों का पवित्र धर्म स्थल बताने पर भी आदिवासी समुदाय ने अपनी नाराजगी दिखलायी थी, हालांकि बाद में हेमंत सोरेन ने अपना राजनीतिक स्टैंड बदला, लेकिन उसके पहले लोबिन अपना राजनीति खेल चुके थें, मुरुंग पहाड़ के नाम पर हेमंत सोरेन की राजनीतिक घेराबंदी की जा चुकी थी. उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा कर दिया गया था.
हेमलाल मुर्मू को आगे कर लोबिन की घेराबंदी की साजिश
लोबिन की यही राजनीतिक प्रखरता कई बार पार्टी और खुद सीएम हेमंत को अखरता रहता है. तब क्या यह माना जाय कि हेमलाल मुर्मू को आगे कर झामुमो ने लोबिन हेम्ब्रम को राजनीतिक घेराबंदी की तैयारी की है. क्या आदिवासी-मूलवासियों के सवाल को झारखंड की राजनीतिक के मुख्य केन्द्र में खड़ा करने की लोबिन की हिमाकत को सजा देने की तैयारी की जा रही है.