टीएनपी डेस्क (TNP DESK)- जैसे जैसे इंडिया गठबंधन का स्वरुप आकार लेता जा रहा है, इस बात की चर्चा भी तेज होती जा रही है कि भाजपा वक्त के पहले चुनाव का एलान कर सकती है. हालांकि सबसे पहले यह आशंका नीतीश कुमार के द्वारा ही कुछ माह पहले प्रकट की गयी थी और इसके साथ ही नीतीश कुमार ने अधिकारियों को समय रहते सभी अधूरे कामों को पूरा करने का निर्दश भी दे दिया था, लेकिन अब एक बार फिर से यही आशंका पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रकट की है और जिसके बाद नीतीश कुमार अपनी पुरानी आशंका को एक बार फिर से दुरहाते नजर आने लगे हैं.
सबसे पहले सीएम नीतीश ने प्रकट की थी यह आशंका
ध्यान रहे कि जब पहली बार नीतीश कुमार के द्वारा यह आशंका प्रकट की गयी तब विपक्षी गठबंधन बेहद शुरुआती अवस्था में था, इसकी कोई औपचारिक बैठक भी नहीं हुई थी, इसका नामाकंरण भी नहीं किया गया था, लेकिन राजनीति के धुरंधर नीतीश कुमार भाजपा की संभावित चाल को समझ गये थे और इस बात की आशंका प्रकट कर रहे थें कि पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के साथ ही भाजपा लोकसभा के चुनावी जंग का एलान कर सकती है.
इंडिया गठबंधन का खौफ
दरअसल जानकारों का मानना है कि इंडिया गठबंधन की बढ़ती लोकप्रियता और विपक्षी दलों की ताकतवर होती एकजुटता से भाजपा के अन्दर एक बेचैनी है. उसे इस बात का आभास हो गया है कि इस बार का चुनाव 2014 और 2019 की तरह एकतरफा नहीं होने वाला, और इस गठबंधन को जितना वक्त मिलेगा, यह उतनी ही बड़ी मुसीबत बन कर सामने आयेगी और यही से इस आशंका को बल मिल रहा है कि समय पूर्व चुनाव की घोषणा की जा सकती है.
इंडिया गठबंधन का पूरा फोर्मेट अभी आना बाकी है
यहां बता दें कि अभी जबकि इंडिया गठबंधन का पूरा फोर्मेट सामने आया भी नहीं है, सीटों का समीकरण साधा भी नहीं गया है, कौन सा दल किस राज्य में कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा और सबसे बड़ा सवाल यह कि पीएम मोदी के मुकाबले उसका चेहरा कौन होगा? इसका झंडा क्या होगा, इंडिया टुडे और कई दूसरे सर्वेक्षणों में इस बात का दावा किया जाने लगा है कि इंडिया बनाम एऩडीए की यह लड़ाई तेज होती जा रही है और दोनों के बीच वोटों के नजरिये से महज दो फीसदी का अंतर है. हालांकि सीटों के ख्याल से यह अंतर बड़ा है, लेकिन सवाल यह है कि जैसे ही यह गठबंधन अपने स्वरुप में सामने आयेगा, इसका अपना झंडा और चेहरा होगा, यह अंतर और भी सिमट जायेगा और जैसे ही यह दो फीसदी मतों का अंतर पटेगा, सीटों का जो अंतर अभी एनडीए के पक्ष में झुकता नजर आ रहा है इंडिया गठबंधन के पक्ष में आ खड़ा होगा. पूरे देश में तब इंडिया गठबंधन की लहर और भी तेज होगी.
इसी खौफ की काट है समय पूर्व चुनाव की घोषणा
भाजपा इसी खतरे का काट चाहती है, क्योंकि 36 दलों का जो कुनबा जमा कर इंडिया गठबंधन को चुनौती देने का दावा किया जा रहा है, वह दरअसल एक पर्सेप्शन बनाने की कवायद से ज्यादा कुछ नहीं है, क्योंकि यदि आप एनडीए में शामिल दलों का विश्लेषण करें, तो इसमें से किसी का भी कोई बड़ा जनाधार नहीं है, करीबन एक दर्जन दलों का तो कोई विधायक तक नहीं है, जबकि दूसरी इंडिया गठबंधन में राजद, जदयू, तृणमूल, सपा, डीएमके, शिव सेना, एनसीपी जैसी मजबूत जनाधार वाली पार्टियां हैं.
एनडीए के 36 पार्टियों का कोई अस्तित्व नहीं
साफ है कि इनके आगे एनडीए के 36 पार्टियों का कोई अस्तित्व नहीं है, वहां जो कुछ भी है भाजपा और मोदी का चेहरा है, लेकिन सवाल तो यहां उसी पीएम मोदी के चेहरे पर खड़ा हो गया है, और राज्य दर राज्य की हार के बाद भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती पीएम मोदी के चेहरे की विश्वनीयता को बचाये रखने की ही तो है. और यह हालत तब और भी गंभीर हो जाती है, जब संघ परिवार यह हिदायत देता नजर आता है कि अब सिर्फ पीएम मोदी के चेहरे और कट्टर हिन्दुत्व के भरोसे चुनाव नहीं निकाला जा सकता.
जदयू, अकाली दल, शिव सेना में से आज कोई भी एनडीए के साथ खड़ा नहीं
यहां यह भी याद रहे कि कभी एनडीए का मजबूत चेहरा माना जाने वाला जदयू, अकाली दल, शिव सेना में से आज कोई भी उसके साथ खड़ा नहीं है, पिछले नौ वर्षों में जिस एनडीए को भूला दिया गया था, और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के द्वारा यह दावा किया जाने लगा था कि इन क्षेत्रीय दलों का मिटाना ही राष्ट्रवाद है, राष्ट्र की सेवा है, ये दल देश पर एक भार हैं, खुद पीएम मोदी एक अकला सब पर भारी का राग अलाप रहे थें, गठबंधन को किसी की कमजोरी का प्रतीक बता रहे थें, जैसे ही सामने इंडिया की सुनामी आता दिखलायी दिया, उस मृत एनडीए को कोरामिन देने की तैयारी की जाने लगी, नौ वर्ष के बाद एनडीए की बैठक की जाने लगी, लेकिन इस हड़बड़ी में यह भूला दिया कि जिन दलों को आंमत्रित किया जा रहा है, उनका अपना कोई वजूद है या भी नहीं, दलों की विशाल संख्या को अपने साथ खड़ा दिखला कर महज पर्सेप्शन के आधार पर लड़ाई तो नहीं लड़ी जा सकती, क्योंकि अंतिम लड़ाई तो जमीन पर होगी, जहां इन दलों का कोई सामाजिक आधार नहीं होगा.