टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : “कुर्सी है तुम्हारा ये जनाज़ा तो नहीं? कुछ कर नहीं सकते, तो उतर क्यों नहीं जाते?” जब कुमार विश्वास ने इरतिज़ा निशात की इन पंक्तियों को सामने रख मणिपुर हिंसा पर अपने दर्द को बयां किया, तब हमारी सभ्यता की चुलें हिलती नजर आने लगी और इस पसमंजर में उस दर्द को समझने की कोशिश की जाने लगी. जिसकी आग में पिछले तीन महीनों से मणिपुर की आत्मा झुलस रही है और आज पूरा देश खून की आंसू रोने को विवश है.
बड़ी कहानी की छोटी सी स्क्रिप्ट
ध्यान रहे कि आदिवासी बेटियों का नग्न परेड पर आज जो देश में कोहराम है. लानत मलानत का जो दौर चल रहा है. वह एक बड़ी कहानी की छोटी सी स्क्रिप्ट भर नजर आती है. क्योंकि अब जो खबरें आ रही है, उसके अनुसार पिछले कुछ दिनों में मैतेई इलाकों में अवस्थित थानों से हथियारों की बड़े पैमाने पर लूट हुई है, और अब ये सारे हथियार मैतेई संगठनों के पास है. जिसके बुते हिंसा का यह तांडव रचा जा रहा है. अब सवाल यह है कि क्या हथियारों का इस व्यापक पैमाने पर लूट, बगैर सत्ता के सहयोग के किया जा सकता है, और वह भी तब जब की दावा इस बात का है कि मणिपुर में पूरा प्रशासनिक खांचा मैतेई और कुकी अधिकारियों के बीच विभक्त हो चुका है. पहाड़ों पर पदस्थापित कुकी अधिकारी इंफाल घाटी में जाने से इंकार कर रहे हैं. उन्हे वहां अपने मैतेई अधिकारियों से ही जान माल का खतरा नजर आ रहा है और ठीक यही हालत मैतेई अधिकारियों की भी है.
राज्यपाल अनुसुईया की पीड़ा
यह स्थिति तब और भी विकराल नजर आती है जब खुद सीएम एन वीरेन इस बात का दावा करते हैं कि यह वीडियो तो कुछ नहीं है. ऐसे हजारों वीडियो वहां घूम रहे हैं, सैकड़ों प्राथमिकी दर्ज किये जा चुके हैं, उधर राज्यपाल अनुसुईया अपनी पीड़ा का इजहार करती हुई कहतीं है कि मैंने अपने जीवन में ऐसा भयानक मंजर नहीं देखा, और इसकी पल-पल की रिपार्टिंग दिल्ली दरबार में नियमित तौर पर भेजती रही. घटना की शुरुआत तीन मई को होती है, और चार मई को ही सीएम वीरेन सिंह दिल्ली पहुंचते है, गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात होती है, क्या उस मुलाकात में दोनों के बीच मणिपुर के हालत पर चर्चा नहीं हुई थी, यही नहीं उसके बाद में भी वह गृह मंत्री से कई मुलाकात कर चुके हैं.
गृह मंत्रालय के पास सूचना के दूसरे सैंकड़ो दूसरे स्रोत होते हैंं
याद रहे कि गृह मंत्रालय के पास इन स्रोतो से अलग हटकर भी हजारों स्रोत होते हैं, किसी भी राज्य की पल-पल की जानकारियां होती है. तब यह कैसे माना जाय कि दिल्ली दरबार को वहां के विकराल होते हालत की जानकारी नहीं थी. साफ है कि वह सब कुछ जान समझ रहा था. लेकिन उसकी अपनी योजना थी, उसकी नजर वोटों की लहलहाती फसल पर थी. उसके लिए शासन की पवित्रता से ज्यादा जरुरी अपने शासन की निरंतरता की थी.
किस राज्य का राज्यपाल ने इसे बताया अपने जीवन का सबसे खतरनाक मंजर
यह संदेह और तब और भी पुख्ता हो गया जब सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद पूरे तीन महीनों के बाद पीएम मोदी ने मणिपुर पर अपना पहला वक्तव्य दिया. लेकिन उस वक्तव्य में भी उन्होंने देश को मणिपुर में शांति और अमन का भरोसा दिलाने के बजाय वहां के हालत की तुलना राजस्थान और दूसरे प्रदेशों की छिटपुट हिंसा से कर उसकी भयावहता को कमतर दिखलाने की कोशिश की. निश्चित रुप से दूसरे प्रदेशों से हिंसा की खबरें आती हैं, लेकिन मणिपुर के बजाय किस राज्य के सीएम ने इस बात का दावा किया है कि ऐसे यह तो कुछ भी नहीं है. ऐसे सैंकड़ों वीडियो वहां मौजूद हैं, किसी राज्य के राज्यपाल ने कहा कि मैंने अपने जीवन में हिंसा का ऐसा मंजर नहीं देखा. भारत के किस राज्य में पिछले तीन माह से इंटनेट सेवा बाधित है, सवाल तो यह भी है कि इंटरनेट सेवा को बाधित कर हासिल क्या किया जा रहा है. हिंसा पर रोक या सामुदायिक हिंसा की इन खबरों से देश के दूसरे हिस्से में फैलने से रोकना. क्योंकि यदि वहां इंटरनेट सेवा नियमित होती, तो हिन्दुस्तान को जो सच्चाई आज पता लगी वह तो महीनों पहले ही पता लग जाती. क्या यह सही नहीं है कि इंटरनेट सेवा का बाधित करने उद्देश्य कुछ दूसरा ही है.
खत्म हो चुका है कि शासन का इकबाल
चाहे जो हो, इतना साफ है कि मणिपुर में डबल इंजन की सरकार अपनी सार्थकता खो चुकी है. उसका इकबाल खत्म हो चुका है, वहां डबल इंजन की सरकार ट्रिपल प्रॉब्लम लेकर सामने खड़ा है और उसकी परिणति संविधान, सामाजिक समरसता और भारत की आत्मा पर संकट के रुप में सामने खड़ा है