Manipur violence- तमाम कोशिशों के बावजूद मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही, कुकी और मैतेई समुदाय के बीच जारी इस हिंसा में अब तक सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है. गृह मंत्री अमित शाह के दौरे के बाद भी इस हिंसा में कोई कमी नहीं आयी, उल्टे उनके वहां से वापस आते ही हिंसा एक बार और तेज हो गयी, हालत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कुकी समुदाय के द्वारा की गई गोलीबारी में घायल एक मां बेटे को भीड़ ने एसपी की मौजूदगी में ही आग के हवाले कर दिया, जब तक कोई कुछ कर पाता तब तक उन दोनों की सिर्फ राख बची थी.
झामुमो का आरोप पुलिस की मौजदूगी में आदिवासी गांवों को किया जा रहा है टारगेट
इस जारी हिंसा के बीच पक्ष विपक्ष की राजनीति भी रुकने का नाम नहीं ले रही है. मणिपुर हिंसा का ठिकरा भाजपा पर फोड़ते हुए झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि मणिपुर में भाजपा के संरक्षण में आदिवासी गांवों को जलाया जा रहा है. पुलिस की मौजदूगी में वहां आदिवासियों को टारगेट किया जा रहा है, उनकी बस्तियां जलाई जा रही है, भाजपा संरक्षित इस हिंसा में अब तक 85 गांवों को जलाया जा चुका है.
सुप्रियो भट्टाचार्य का दावा असम राईफल्स का हेड मैतेई समुदाय का
सुप्रियो भट्टाचार्य ने भाजपा को इस हिंसा का सीधा जिम्मेवार बताते हुए कहा कि वहां मौजूद असम राइफल्स का हेड मैतेई समुदाय से है और उसी की निगरानी में कुकी, नागा और दूसरे आदिवासी समूहों को निशाना बनाया जा रहा है, यह सब कुछ भाजपा के संरक्षण में हो रहा है.
राज्य की 47 फीसदी आबादी नागा, कुकी और दूसरे आदिवासी समुदायों की
ध्यान रहे कि मणिपुर में नागा, कुकी और दूसरे आदिवासी समूहों की आबादी करीबन 47 फीसदी है, मैतेई समुदाय, जो हिन्दू धर्मलम्बी है, की आबादी करीबन 57 फीसदी है, और ये मुख्य रुप से इंफाल और उसके आसपास में निवास करते हैं. मणिपुर के कुल क्षेत्रफल का करीबन 10 फीसदी हिस्से पर इनकी बसावट है, जबकि कुकी नागा और दूसरे आदिवासी समूहों की बसावट मुख्य रुप से पहाड़ों और पहाड़ी जिलों में है, राज्य की करीबन 90 फीसदी हिस्सों पर इनकी बसावट है.दरअसल मणिपुर में यह हिंसा मणिपुर हाईकोर्ट के फैसले के बाद शुरु हुई, 20 अप्रैल को एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मैतेई समुदाय को आदिवासी सूची में शामिल करने का आदेश सुनाया. जिसके बाद यह हिंसा भड़क उठी, कुकी नागा और दूसरे आदिवासी समूह मैतेई समुदाय को आदिवासी सूची में शामिल करने का विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि इस आदेश के बाद सारी नौकरियां मैतेई समुदाय के पास ही चली जायेगी. यह मूल आदिवासियों के साथ अन्याय होगा.