रांची(RANCHI)- पटना में विपक्षी दलों की सिंहनाद के बाद इतना तो साफ हो गया है कि 2024 का महासंग्राम भाजपा के लिए अब इतना आसान नहीं रहने वाला है. यही कारण है कि भाजपा विपक्षी दलों की इस युगलबंदी को देख कर एक बार फिर से अपने उन पुराने सहयोगियों का मान-मनौबल करने में जुट गयी है, जिसे वह अब तक लोकसभा में अपनी संख्या बल को देखते हुए भाव देने के मूड में नहीं थी.
अपने पुराने सहयोगियों को एक बार फिर से याद कर रही है भाजपा
याद रहे कि महज चंद माह पहले तक भाजपा इन सभी दलों को अपनी शर्तों के साथ समझौता करने को बाध्य करता दिख रहा था, यहां तक कहा जाने लगा था कि ये क्षेत्रीय दल एक बोझ हैं, इनसे मुक्त होकर ही एक मजबूत सरकार का गठन किया जा सकता है, इस सूची में सिर्फ आप, तृणमूल कांग्रेस, भारत राष्ट्र समिति, वाईएसआर कांग्रेस , राजद, झामुमो, सपा, बसपा जैसे उसके विरोधी दल ही नहीं थें, बल्कि उसके सहयोगी रहे अकाली दल, लोजपा, टीडीपी, जदयू, शिव सेना के प्रति भी उसका यही नजरिया था, उस पर अपने सहयोगी दलों को कमजोर और विभाजित करने का आरोप भी लगा रहा था. लेकिन जैसे ही मजबूत सरकार की राह में बाधा माने जाने ये दल एक साथ खड़े होने लगे, और कुल 17 दलों ने एक सुर से मोदी सरकार के खिलाफ सिंहनाद कर दिया, भाजपा को एक बार फिर से बड़ी शिदद्त से अपने पुराने सहयोगियों की याद आने लगी.
लेकिन कांग्रेस को बता रही है अली बाबा चालीस चोरों का सरगना
ध्यान रहे कि भाजपा के वरिष्ट नेता और पूर्व विधान सभा अध्यक्ष सीपी सिंह ने पटना बैठक के बाद कांग्रेस को अली बाबा चालीस चोरों का सरगना करार दिया है. लेकिन यहां यह भी ध्यान रखने की बात है कि खुद एनडीए में आज भी एक दर्जन से अधिक दल शामिल है, हालांकि कभी उसके सहयोगी रहे जदयू, शिवसेना और अकाली दल ने एनडीए से अपना नाता तोड़ लिया है, लेकिन भाजपा की कोशिश पटना बैठक के बाद भाजपा एक बार फिर से कई क्षेत्रीय दलों को अपने साथ खड़ा करने की मुहिम में जुट गयी है, साफ है कि कांग्रेस को अली बाबा चालीस चोरों का सरगना कहने वाली भाजपा भी इस जमीनी हकीकत को समझ रही है कि 2024 की लड़ाई इन्ही क्षेत्रीय पार्टियों के बुते लड़ी जानी है, और जिसने इन क्षेत्रीय पार्टियों को साध लिया, केन्द्र में उसकी सरकार बननी तय है.
अपने पुराने मुद्दे और चेहरे के सहारे ही चुनावी अखाड़े में उतरने की तैयारी में है भाजपा
यदि हम झारखंड की बात करें तो भाजपा आज भी यहां जमीन पर संघर्ष करने की बजाय अपने पुराने मुद्दे और पीएम मोदी के चेहरा के सहारे ही मैदान में उतरती दिख रही है. नौ वर्षो की सत्ता के बाद भी उसके पास धर्मांतरण और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और बंग्लादेशी मुसलमानों का कथित घुसपैठ के सिवा कोई नया नारा नहीं है, याद रहे कि ये सारे नारे झारखंड में 2019 में ही पिट चुके हैं.
सरना धर्म कोड, पिछड़ों का आरक्षण में विस्तार को मुद्दा बनाने की तैयारी में महागठबंधन
जबकि इसके विपरीत महागठबंधन सरना धर्म कोड, पिछड़ों का आरक्षण में विस्तार, 1932 का खतियान, खतियान आधारित नियोजन नीति का मोर्चा खोलने की तैयारी कर रही है, उसका दावा है कि हमने तो सरना धर्मियों की पहचान के लिए सरना धर्म कोड को विधान सभा से पारित कर राजभवन भेजा था, जिसके की जनगणना के वक्त सरना धर्मलंबियों की पहचान को सके, लेकिन भाजपा ने राजभवन से सरना धर्म कोड के अध्यादेश वापस करवा दिया, यही हाल 1932 का खतियान, खतियान आधारित नियोजन नीति और पिछड़ी जातियों का आरक्षण में विस्तार के साथ हुआ. हमने तो इन सभी मुददों पर विधान सभा से विधेयक पास कर राजभवन भेजा, लेकिन भाजपा और राजभवन की सांठगांठ में इसमें से किसी भी विधेयक को राजभवन की स्वीकृति नहीं मिली. अब यह तो झारखंड की जनता, यहां के आदिवासी-मूलवासी, दलित-पिछड़े को तय करना है कि उनका दुश्मन और दोस्त कौन है?