Ranchi-15 सीटों की मांग पर अड़ी कांग्रेस को नौ सीटें थमा कर राजद सुप्रीमो लालू यादव ने उसे बिहार में घूटने ला ख़ड़ा किया, वही कांग्रेस झारखंड में अपना तेवर दिखलाती दिख रही है. लालू यादव ने जिस पैतरें से उसने मात खाई अब वह उसी पैंतरे का इस्तेमाल झारखंड में करती दिख रही है. उसने लोहरदगा, हजारीबाग और खूंटी से अपने प्रत्याशियों का एकतरफा एलान कर दिया और उसके बाद झारखंड में महागठबंधन के अंदर असंतोष के बादल मंडराने लगे. लोहरदगा में तो चरमा लिंडा ने खुली बगावत का एलान भी कर दिया है. बहुत संभव है कि चमरा लिंडा एक बार फिर से निर्दलीय मैदान में हों और यदि ऐसा होता है तो सुखदेव भगत का संसद जाने के सपने पर एक बार फिर से ग्रहण लग सकता है. ठीक यही हालत हजारीबाग की है, जिस अम्बा को पहले मोर्चे पर उतारे जाने की चर्चा थी. अचानक से भाजपा से जेपी पटेल को लाकर उसका पत्ता साफ कर दिया गया. अब जेपी पटेल मनीष जायसवाल की राह रोकेंगे या अम्बा और उनके पिता योगेन्द्र साव कोई और सियासी गुल खिलायेंगे, कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह सवाल उलझाने लगा है. सियासी जानकारों का दावा है कि जेपी पटेल के पास भले ही एक मजबूत सामाजिक समीकरण है. लेकिन उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हजारीबाग के इस दंगल में अम्बा और योगेन्द्र साव की रणनीति क्या होती है. यदि नाराजगी और गुटबाजी इसी प्रकार बनी रही तो मनीष जायसवाल की राह आसान हो सकती है और इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा कि युवाओं के बीच अम्बा का जो क्रेज है, जेपी पटेल में उसकी झलक दिखलायी नहीं पड़ती, कुल मिलाकर अब तक घोषित खूंटी ही वह सीट है, जहां कांग्रेस कुछ करने की स्थिति में नजर आती है. इस नाराजगी और असंतोष की खबरों के बीच झामुमो ने साफ कर दिया है कि पहले कांग्रेस अपना प्रत्याशी का एलान करे, उसके बाद ही वह अपने पत्ते खोलेगी. दरअसल कांग्रेस के प्रत्याशी चयन से झामुमो के अंदर एक बेचैनी पसरती दिखलायी दे रही है. और यही कारण है कि उसने इशारों ही इशारों में साफ कर दिया है कि थोक भाव में इन कमजोर प्रत्याशियों को मैदान में उतार कर 2024 का मैदान फतह नहीं किया जा सकता. साफ कि झामुमो की नजर कांग्रेस के शेष प्रत्याशियों की लिस्ट पर है. यदि कांग्रेस इसी प्रकार जनाधारविहीन पहलवानों को मैदान में उतारती रही तो झामुमो के द्वारा किसी बड़ा कार्ड खेलने की संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता.
क्या है सियासी और सामाजिक समीकरण
लेकिन यहां सवाल सिंहभूम संसदीय सीट का है, जिसका फैसला कांग्रेस के बजाय झामुमो को करना है. इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि गीता कोड़ा की विदाई के बाद झामुमो की ओर से चाईबासा के दंगल में उसका पहलवान कौन होगा? यहां ध्यान रहे कि संताल के बाद कोल्हान झामुमो का सबसे मजबूत किला है. सिंहभूम संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले सरायकेला विधान सभा से खुद सीएम चंपाई सोरेन, चाईबासा से झामुमो के दीपक बिरुआ, मंझगांव विधान सभा से झामुमो के निरल पूर्ति, जगरनाथ विधान सभा से कांग्रेस का सोना राम सिंकू, मनोहरपुर से झामुमो को एक और बड़ा चेहरा जोबा मांझी और चक्रधरपुर से झामुमो के ही सुखराम उरांव है. यानि कुल छह में महज एक विधान सभा में कांग्रेस का कब्जा है, जबकि भाजपा की कहीं मौजूदगी नहीं है. साफ है कि सिंहभूम सीट के लिए झामुमो के पास ना तो चेहरे की कमी है और ना ही सामाजिक समीकरण की, बावजूद इसके वह इस संसदीय सीट से कांग्रेस की गीता कोड़ा को संसद भेज रही थी. लेकिन झामुमो के इस धैर्य से कांग्रेस ने कोई सबक नहीं ली और चमरा लिंडा जैसा मजबूत जनाधार नेता की मौजदूगी के बावजूद लोहरदगा से सुखदेव भगत के नाम का एकतरफा एलान कर लालू का सियासी नकल की कोशिश की, लेकिन नकल की इस कोशिश वह भूल गयी कि लालू के पास एक मजबूत सामाजिक जनाधार है, जबकि उसकी खुद की जमीन खिसकी हुई है.
वर्ष 2014 में अर्जुन मुंडा को मात दे चुके हैं दशरथ गागराई
अब सवाल उन चेहरों का है, जिस पर झामुमो अपना दांव लगा सकती है, इसमें एक नाम तेजी से सामने आ रहा है वह नाम है खूंटी लोकसभा के अंतर्गत आने वाला खरसांवा विधान सभा से झामुमो विधायक दशरथ गागराई का. यहां याद रहे कि यह वही दशरथ गागराई है, जिन्होंने वर्ष 2014 मे खरसांवा विधान सभा चुनाव में भाजपा के अर्जुन मुंडा को करीबन 12 हजार मतों से सियासी शिकस्त दिया था. जबकि इसी खरसांवा से अर्जुन मुंडा झामुमो के तीर कमान पर वर्ष 1995,2000 विधान सभा पहुंचे थें. बावजूद इसके वह 2014 में दशरथ गागराई के हाथों मात खा गयें. एक दूसरा नाम चक्रधरपुर विधायक सुखराम उरांव का भी है. सुखराम उरांव वर्ष 2004 में आजसू के टिकट पर सिंहभूम लोकसभा चुनाव में उतरें थें, हार के बावजूद इन्हे करीबन 72 हजार वोट मिला था. हालांकि 2013 आते आते वह भाजपा की सवारी कर बैठे, लेकिन सफलता नहीं मिली और 2019 के पहले झामुमो के साथ खड़े हुए और विधान सभा चुनाव में जीत मिल गयी. अब एक बार फिर सुखराम उरांव का सिंहभूम के अखाड़े में उतरने की चर्चा तेज है.
झामुमो से दीपक बिरुआ हो जनजाति का बड़ा चेहरा
ध्यान रहे कि गीता कोड़ा की असली ताकत उनका हो जनजाति समुदाय से आना है. हो जनजाति की इस लोकसभा में काफी बड़ी आबादी है. झामुमो की बात करें तो चाईबासा से विधायक दीपक बिरुआ भी इसी समुदाय से आते हैं, इस हालत में दीपक बिरुआ झामुमो के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो सकते हैं, लेकिन पार्टी का एक बड़ा खेमा का मानना है कि दीपक बिरुआ अपने आप को राज्य की राजनीति से बाहर करना नहीं चाहते, उनका पूरा फोकस अपने विधान सभा और राज्य की राजनीति पर है.हालांकि इसके साथ ही कई और नाम भी चर्चा में है, और एन वक्त पर झामुमो कोई और कार्ड खेल दे, तो अचरज नहीं होगी.
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