रांची(RANCHI): लम्बे इंतजार के बाद आखिरकार झामुमो ने अपने प्रत्याशियों का एलान की शुरुआत कर दी. अपनी पहलू सूची में झामुमो ने दुमका से नलीन सोरेन और गिरिडीह से मुथरा महतो को अखाड़े में उतारने का एलान किया है और इस घोषणा के साथ ही सियासी गलियारों में यह सवाल खड़ा होने लगा है कि दुमका जैसे हाईप्रोफाइल सीट पर नलीन सोरेन जैसे अनजाने चेहरे पर दांव लगाने का कारण क्या है? जबकि इसके पहले तक पूर्व सीएम हेमंत और कल्पना सोरेन को अखाड़े में उतरने की चर्चा हो रही थी, सवाल यह भी है कि क्या नलीन सोरेन सीता सोरेन को इस सियासी अखाड़े में पटकनी देने की स्थिति में है.
झामुमो की असमंजस से खुली नलीन सोरेन की राह?
दरअसल सियासी जानकारों का मानना है कि एन लोकसभा चुनाव के पहले सीता सोरेन को साथ छोड़ जाने कारण झामुमो के अंदर एक असमंजस की स्थिति थी. हालांकि सीता सोरेन पलटी मार सकती है, इसकी आशंका काफी पहले से जतायी जा रही थी. काफी अर्से से सीता की नजर मंत्री पद पर थी, जब हेमंत सोरेन सीएम थें, उस वक्त भी सीता सोरेन बीच बीच में अपनी नाराजगी जता रही थी. संथाल में खनन माफियाओं का बढ़ता वर्चस्व के सहारे अपनी सियासी मंशा का इजहार कर रही थी, उधर मां की राह पर चलते हुए बेटियों ने दुर्गा सेना के नाम से सियासी जमीन तैयार करने की मुहिम पर थें. हालांकि बाद के दिनों में परिवार के अंदर एक सहमति बनती भी नजर आयी, लेकिन गीता कोड़ा की विदाई के बाद एक बार फिर से इस बात की चर्चा तेज हो गयी कि कोल्हान की गीता के बाद अब भाजपा की नजर संताल की सीता पर है और सियासी गलियारों में तैरती यह भविष्यवाणी आखिरकार सत्य साबित हुई. सीता सोरेन ने अपनी पलटी के लिए ठीक लोकसभा चुनाव का वक्त चुना. हालांकि खबर यह है कि खुद झामुमो की ओर से भी सीता सोरेन को इस बार दुमका के अखाड़े से उतारने की तैयारी थी. लेकिन शायद सीता सोरेन को अब झामुमो से ज्यादा सुरक्षित ठिकाना भाजपा में नजर आ रहा था. निश्चित रुप से सीता के इस फैसले से झामुमो के अंदर एक खलबली मच गयी और यह परेशानी तब और भी बढ़ती नजर आयी जब भाजपा ने सीता सोरेन को झामुमो का सबसे मजबूत गढ़ दुमका से उतराने का एलान कर दिया. इस हालत में समस्या यह थी कि अब सीता के सामने कौन?
इस गद्दारी की कीमत चुकानी होगी?
कई नाम सामने आये. पूर्व सीएम हेमंत से लेकर कल्पना सोरेन की चर्चा हुई, लेकिन बाद में यह खबर आयी कि सीता सोरेन लोकसभा जाने के बजाय विधान सभा जाने की इच्छुक हैं और उन्होंने गांडेय से चुनाव लड़ने का मन बना लिया है. दूसरी परेशानी यह थी कि सीता सोरेन के सामने झामुमो अपना सबसे मजबूत चेहरा कल्पना सोरेन या पूर्व सीएम हेमंत को अखाड़े में उतार कर इसे प्रतिष्ठा का विषय नहीं बनाना चाहता था. क्योंकि यदि इस सियासी संघर्ष में कल्पना सोरेन या पूर्व सीएम हेमंत की हार होती तो यह अब तक का सबसे बड़ा उलटफेर होता, और यदि यही हार सीता सोरेन के हिस्से आती तो इसे महज एक सामान्य हार मानी जाती. सीता सोरेन और भाजपा के सामने यह राग अलापने ने अवसर होता कि चूंकि यह सियासी शिकस्त उन्हें कल्पना सोरेन या हेमंत के हाथों हुई है, इसलिए यह हार भी उनकी जीत से बड़ा है. झामुमो हार में जीत वाली इस कहानी को आगे बढ़ने देना नहीं चाहती थी. दावा तो यह भी किया जाता है कि झामुमो की ओर से स्टीफन मरांडी से लेकर हेमलाल मुर्मू को भी अखाड़े में उतारने की कोशिश की गयी थी. लेकिन सोरेन परिवार की इस बड़ी बहु के सामने ये सियासी सुरमें मैदान में उतरने को तैयार नहीं थें, क्योंकि उनके दिल में इस पाला बदल के बावजूद अभी भी गुरुजी की इस बड़ी बहु के प्रति पूरा सम्मान है. खबर तो यह भी है कि झामुमो का एक खेमा सीता सोरेन को वाक ऑवर देने की तैयारी में था, ताकि उनकी सीता, जिसके प्रति उनके दिल में काफी आदर और सम्मान रहा है, का सियासी कैरियर सुरक्षित हो जाय. लेकिन झामुमो का एक खेमा का मानना था कि सीता ने पार्टी के पीठ के साथ ही सोरेन परिवार के सीने में छूरा मारा है और उन्हे इस गद्दारी की कीमत चुकानी होगी, और आखिरकार नलीन सोरेन को मोर्चे पर तैनात करने का फैसला किया गया. खबर यह भी है कि खुद सीता सोरेन भी इस सियासी अखाड़े में कल्पना सोरेन या हेमंत का सामना करने को तैयार नहीं थी,और यदि हेमंत सोरेन या कल्पना सोरेन के नाम का एलान उनकी उम्मीदवारी से पहले कर दिया गया होता तो सीता मैदान में कूदने से इंकार भी कर सकती थी. यानि दोनों ही तरफ से एक दूसरे का सामना करने से बचने की कोशिश जारी थी.
क्या है दुमका का सियासी समीकरण
अब बात रही सामाजिक और सियासी समीकरण की, तो दुमका लोकसभा में विधान सभा की कुल छह सीटें आती है. जिसमें शिकारीपाड़ा विधान सभा पर झामुमो (नलीन सोरेन), नाला- झामुमो (रवीन्द्र नाथ महतो), जामताड़ा-कांग्रेस (इरफान अंसारी), दुमका- झामुमो (बसंत सोरेन), जामा भाजपा (सीता सोरेन) और सारथ पर भाजपा (रणधीर कुमार सिंह) का कब्जा है. यानि कुल छह विधान सभाओं में तीन पर झाममो, एक पर कांग्रेस और दो पर भाजपा का कब्जा है, लेकिन सीता सोरेन ने यह सीट झामुमो के टिकट पर ही जीता था, इस प्रकार कुल पांच सीटों पर झामुमो कांग्रेस का कब्जा है. यहां यह भी याद रहे कि सीता सोरेन और नलीन सोरेन दोनों ही इसी लोकसभा से विधायक हैं. जहां सीता सोरेन 2009 से लगातार जामा से जीत दर्ज कर रही है, वहीं नलीन सोरेन कुल सात बार शिकारी पाड़ा में अपना झंडा गाड़े चुके हैं. हालांकि इन दोनों के इस सियासी परचम में गुरुजी का आशीर्वाद का योगदान कितना और इनकी जमीन पकड़ कितनी है, यह एक अलग सवाल है. और इसकी परीक्षा इस लोकसभा सभा चुनाव में होनी है. हालांकि सीता की मुश्किल यह है कि इस बार गुरुजी का आशीवार्द उनके साथ नहीं होगा, जबकि कल्पना सोरेन से लेकर हेमंत खुद नलीन के साथ झंडा गाड़े नजर आयेंगे. इस हालत में जीत किसकी होगी, और हार किसके हिस्से आयेगी एक बड़ा सवाल है, जिसका जवाब तलाशने के लिए हमें फिलहाल कुछ और इंतजार करना होगा, लेकिन इतना निश्चित है कि नलीन सोरेन को सामने लाकर झामुमो ने सीता सोरेन को वॉक ऑवर का अवसर नहीं दिया है. लड़ाई दिलचस्प होने वाली है. जैसे ही दो चार रैलियां होगी, चुनावी समर की औपचारिक शुरुआत होगी, इसकी झलक दिखने लगेगी.